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रांची : परमाणु ऊर्जा संयंत्र के लिए उपकरण बनायेगा एचइसी

मॉस्को में एचइसी और रूसी कंपनी ओकेबीएम के साथ हुआ समझौता रांची : एचइसी ने रूस की कंपनी ओकेबीएम के साथ समझौता किया है. यह समझौता परमाणु ऊर्जा संयंत्र के लिए उपकरण बनाने के उद्देश्य से किया गया है. मॉस्को में शुक्रवार को हुए समझौते पर एचइसी की ओर से निदेशक मार्केटिंग राणा एस चक्रवर्ती […]

मॉस्को में एचइसी और रूसी कंपनी ओकेबीएम के साथ हुआ समझौता

रांची : एचइसी ने रूस की कंपनी ओकेबीएम के साथ समझौता किया है. यह समझौता परमाणु ऊर्जा संयंत्र के लिए उपकरण बनाने के उद्देश्य से किया गया है. मॉस्को में शुक्रवार को हुए समझौते पर एचइसी की ओर से निदेशक मार्केटिंग राणा एस चक्रवर्ती और ओकेबीएम की ओर से वीवी पेट्रोनिन ने हस्ताक्षर किये.
इस संबंध में एचइसी के कंपनी सचिव अभय कंठ ने बताया कि संयुक्त स्टॉक कंपनी आइआइ एफ्रिकांटोव ओकेबीएम परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में विश्व की अग्रणी कंपनी है. कंपनी पीएचडब्ल्यूआर प्रेसेराइज्ड हैवी वाटर रिएक्टर और वोडा वोडा इनर्गो रिएक्टर (700 मेगावाट से 1000 मेगावाट क्षमता तक) का निर्माण करती है. कंपनी को डिजाइनिंग और उच्च वैज्ञानिक इंजीनियरिंग के क्षेत्र में 60 से अधिक वर्षों का अनुभव है. श्री कंठ ने बताया कि एचइसी इस्पात और खनन क्षेत्र के अपने पारंपरिक व्यापार को व्यापक करते हुए अब रक्षा और परमाणु ऊर्जा जैसे क्षेत्रों में उपकरण का निर्माण करेगा. इससे एचइसी के व्यवसाय में बढ़ोतरी होगी. भारत सरकार देश में 700 मेगावाट के 10 परमाणु ऊर्जा संयंत्र लगाना चाहती है. इसमें एचइसी की भूमिका अहम होगी.
वर्तमान समझौते के दायरे में 700 मेगावाट पीएचडब्ल्यूआर यानी स्टीम जेनरेटर, कैलंड्रिया, इंड शील्ड और इनलेट-आउटलेट हेडर जैसे चार प्रमुख उपकरण की तकनीक रूसी कंपनी एचइसी को देगी. 10 परमाणु रिएक्टर की कुल लागत करीब 36,000 करोड़ की होगी. इसमें एचइसी द्वारा जो चार उपकरण की तकनीक पर समझौता हुआ है, उसकी लागत करीब 20,000 करोड़ होगी. समझौता से एचइसी का वार्षिक व्यवसाय करीब 150 से 200 करोड़ रुपये बढ़ेगा. वहीं एचइसी की टीम ने पानी जहाज के उपकरण की तकनीक के लिए ब्लास्टिक सीप यार्ड और रूबिन कंपनी का भी दौरा किया.
देश में 10 परमाणु रिएक्टर के निर्माण में एचइसी की होगी अहम भूमिका
यह समझौता एचइसी के लिए मील का पत्थर साबित होगा. मेक इन इंडिया के तहत एचइसी में अधिक से अधिक उपकरण बनाये जायेंगे. पहले इस तरह के उपकरण विदेशों से मंगाये जाते थे, जो महंगा पड़ता था. अब इसका निर्माण देश में ही होगा. इस समझौते के लिए पूरी टीम को बधाई.
अभिजीत घोष, एचइसी के सीएमडी

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