रांची : 65 साल की उम्र तक पहुंचते – पहुंचते लोग आमतौर पर थक जाते हैं. रांची के इंद्रजीत सिंह कुछ अलग है. वह न सिर्फ जिम में चार – पांच घंटे पसीना बहाते हैं, बल्कि पावर लिफ्टिंग के क्षेत्र में युवा पीढ़ी के प्रेरणास्त्रोत है. पिछले पचास सालों से सक्रिय इंद्रजीत सिंह ने कामयाबी का कई नया रिकार्ड बनाया है. हाल ही में उन्हें इंटरनेशनल पावर लिफ्टिंग का अंतरराष्ट्रीय रेफरी बनाया गया है. बता दें कि अंतरराष्ट्रीय रेफरी बनने बनने के लिए लिखित और प्रैक्टिकल परीक्षा देनी पड़ती है. प्रैक्टिल के लिए उन्हें 100 बार लिफ्ट उठाना पड़ा. रेफरी के अलावा इंद्रजीत सिंह के करियर में कई उपलब्धियां दर्ज हैं.
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पावरलिफ्टिंग के क्षेत्र में मिसाल हैं 65 साल के इंद्रजीत सिंह
रांची : 65 साल की उम्र तक पहुंचते – पहुंचते लोग आमतौर पर थक जाते हैं. रांची के इंद्रजीत सिंह कुछ अलग है. वह न सिर्फ जिम में चार – पांच घंटे पसीना बहाते हैं, बल्कि पावर लिफ्टिंग के क्षेत्र में युवा पीढ़ी के प्रेरणास्त्रोत है. पिछले पचास सालों से सक्रिय इंद्रजीत सिंह ने कामयाबी […]
आज वह नयी पीढ़ी को ट्रेनिंग देते हैं. उनके साथ जिम में आधे से भी कम उम्र के लोग होते हैं. पावरलिफ्टिंग को अपना सबकुछ मानने वाले इंद्रजीत सिंह बताते हैं कि उन्होंने सिर्फ बॉडी बिल्डींग और फिटनेस के लिए पावरलिफ्टिंग करते थे, लेकिन धीरे – धीरे रुचि बढ़ी तो उन्होंने चैम्पियनशिप में भी हिस्सा लेने लगे.
इंद्रजीत सिंह ने 1975 में बिहार स्टेट लेवल बेंच प्रेस चैम्पियनशिप में उन्होंने गोल्ड मेडल हासिल की और लिम्का बुक ऑफ रिकार्ड में नाम दर्ज करवाया है. 11 सालों तक यह रिकार्ड टूट नहीं पाया था. 1984 के एशियन चैम्पियनशिप, इंडोनेशिया में उन्होंने 100 किलो के कैटेगरी में सिल्वर मेडल हासिल की. छह साल बाद चीन में भी उन्होंने गोल्ड हासिल कर पावरलिफ्टिंग में नयी ऊंचाई को छुआ. 2002 और 2004 में उन्होंने गोल्ड, सिल्वर और कांस्य पदक जीता. 2008 वर्ल्ड चैंपियनशिप यूएसए में उन्हें चौथा स्थान हासिल हुआ. यहीं नहीं इंद्रजीत सिंह की नजर अब नयी प्रतिभाओं को तलाशने में हैं. उन्होंने बताया कि दो आदिवासी लड़कियों को चैम्पियनशिप में हिस्सा लेने के लिए दुबई भेजने की तैयारी कर रही है.
रांची में पावरलिफ्टिंग के भीष्म पितामह कहे जाने वाले इंद्रजीत सिंह की जिंदगी में एक मौका ऐसा भी आया. जहां उन्हें लगने लगा कि अब वह पावरलिफ्टिंग नहीं कर पायेंगे. 1971 में पटना में आयोजित पावरलिफ्टिंग के दौरान 2017 किलोग्राम वजन उठाने के दौरान कूल्हे की हड्डी अचानक टूट गयी. डॉक्टरों ने सलाह दी कि अब वह पावरलिफ्टिंग नहीं कर पायेंगे.एथेलेटिक्स में शाटपुट और डिस्कस थ्रो करना शुरु कर दिया. इसमें भी राज्य में स्थान बनाया. तीन साल बाद फिर से जिम पहुंचे और एक बार फिर पावरलिफ्टिंग का सफर शुरू हुआ तो थमा नहीं. तब से लेकर आज तक 11 गोल्ड मेडल जीत चुके हैं.
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