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रांची : जनजातीय इलाके वाले 250 एकड़ में होगी पपीते की खेती
मई में खूंटी के कर्रा प्रखंड से होगी शुरुआत रांची : कल्याण विभाग के तहत कार्यरत झारखंड ट्राइबल डेवलपमेंट सोसाइटी (जेटीडीएस) जनजातीय इलाके में बेहतर अाजीविका के लिए कार्य कर रहा है. इसी के तहत सूकर व बकरी पालन के बाद अब बागवानी का काम होगा. इसकी शुरुआत खूंटी व दुमका जिले से हो रही […]
मई में खूंटी के कर्रा प्रखंड से होगी शुरुआत
रांची : कल्याण विभाग के तहत कार्यरत झारखंड ट्राइबल डेवलपमेंट सोसाइटी (जेटीडीएस) जनजातीय इलाके में बेहतर अाजीविका के लिए कार्य कर रहा है.
इसी के तहत सूकर व बकरी पालन के बाद अब बागवानी का काम होगा. इसकी शुरुआत खूंटी व दुमका जिले से हो रही है. दोनों जगह जमीन चिह्नित कर वहां पौधे लगाने के लिए गड्ढे तैयार कर लिये गये हैं.
सबसे पहले खूंटी के कर्रा प्रखंड की पांच एकड़ जमीन पर पपीता के पौधे लगाये जायेंगे. मई माह से यहां पौधे लगने लगेंगे. इसके बाद दुमका में यह काम होगा. जेटीडीएस ने ताइवान की दो प्रजातियों रेड लेडी तथा रेड क्विन का चयन पपीता की बागवानी के लिए किया है. खूंटी व दुमका की पांच-पांच एकड़ जमीन पर कुल 10 हजार पौधे लगाये जाने हैं.
पौधा राष्ट्रीय बागवानी शोध संस्थान पलांडू तथा बिरसा कृषि विवि कांके रांची तैयार कर रहा है. वहीं बीज व तकनीकी मदद देकर स्थानीय ग्रामीणों से भी पौधे तैयार कराये जा रहे हैं. जहां पौधे लगेंगे, वह जमीन स्थानीय रैयतों की है, जो टांड़ जमीन है. विशेषज्ञों के अनुसार झारखंड की ऐसी जमीन रसीले फलों की बागवानी के उपयुक्त है.
दरअसल, जेटीडीएस राज्य के कुल 14 जिलों में कार्यरत है. इनमें से संताल परगना प्रमंडल के साहेबगंज, पाकुड़, जामताड़ा व गोड्डा को छोड़ कर, जहां बरबट्टी की खेती हो रही है, पपीता की बागवानी होगी. पहले चरण वाले 10 एकड़ के बाद पहले 50 एकड़ तथा अंतत: फरवरी 2019 तक 250 एकड़ में पपीता की खेती का निर्णय हुआ है.
पपीता की बेहतर प्रजातियां हैं रेड लेडी व रेड क्विन
कृषि विशेषज्ञों के अनुसार यह पपीता की बेहतर प्रजातियां हैं. जिनमें पपीता के छिलके पतले होते हैं तथा तीखापन नहीं होता. वहीं इन प्रजातियों के पपीते खाने में स्वादिष्ट होते हैं तथा इनके पौधों में रोग रोधक क्षमता अधिक है.
रेड लेडी का आकार जहां बड़ा होता है, वहीं एक रेड क्विन पपीता का वजन अधिकतम एक किलो तक ही होता है. दोनों प्रजातियों के एक पौधे से अौसतन 60 किलो पपीता सालाना उत्पादन होता है.
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