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रांची : अब जनी शिकार में जानवरों का वध नहीं

मनोज खूंटी के कई गांवों में हुई नयी परंपरा की शुरुआत रांची : खूंटी जिला के कुछ गांवों में इस बार जनी शिकार बिल्कुल अलग अंदाज में शुरू किया गया है. आदिवासी समाज के लोग इसे नयी परंपरा की शुरुआत मान रहे हैं. समाज के लोगों का मानना है कि आदिवासी समाज में इस तरह […]

मनोज
खूंटी के कई गांवों में हुई नयी परंपरा की शुरुआत
रांची : खूंटी जिला के कुछ गांवों में इस बार जनी शिकार बिल्कुल अलग अंदाज में शुरू किया गया है. आदिवासी समाज के लोग इसे नयी परंपरा की शुरुआत मान रहे हैं.
समाज के लोगों का मानना है कि आदिवासी समाज में इस तरह की जागरूकता लोगों की सोच बदलने में मददगार साबित होगी. बैठक कर लोगों ने निर्णय लिया कि इस बार किसी के पालतू जानवरों काे भी नहीं मारा जायेगा. वन्य प्राणियों के साथ किसी भी तरह की अमानवीय हरकत नहीं की जायेगी. समाज के लोग भी विलुप्त होती प्रजातियों के संरक्षण में सहयोग करेंगे.
12 साल में एक बार जनी शिकार आता है. इसमें महिलाएं पुरुषों का वेश धारण कर पालतू जानवरों का शिकार करती हैं. खूंटी के एदल सांगा पड़हा का दायरा 56 गांवों में है. इसमें से 12 गांवों में जनी शिकार का आयोजन हो रहा है.
इसमें डूंगरा, काला माटी, सील्दा, डडोल, डुंडू, हुंडिंग, डाग, दरजी, पोड़ा, हरदाग, बारुगुटू, शोहदाग, डाहू, चितैर आदि शामिल हैं. इन गांवों के लोगों ने आपसी सहमति से इस बार जनी शिकार के स्वरूप में बदलाव किया है. बड़ा पड़हा राजा सोमा मुंडा, ग्राम प्रधान कमल सांगा, दुआ भगत, मार्गो सांगा व अन्य बड़े-बुजुर्गों ने बैठक कर यह तय किया है कि इस बार जनी शिकार के नाम पर वन्य प्राणियों का शिकार नहीं किया जायेगा.
रिवाज निभायी जायेगी : ग्रामीणों ने बैठक कर तय किया है कि इस बार जनी शिकार में महिलाएं, युवतियां पारंपरिक हथियार लेकर पुरुषों का वेश धारण कर शिकार के लिए निकलेंगी, लेकिन किसी भी जानवरों का जबरन शिकार नहीं करेंगी.
जो भी जनी शिकार का जत्था निकलेगा और जिस भी गांव में प्रवेश करेगा, उनका पारंपरिक तरीके से स्वागत किया जायेगा. गांव के लड़के-लड़कियां फूल-माला, पानी लेकर गांव के अंदर आनेवाली जनी शिकार के जत्था का स्वागत करेंगे. इसकी शुरुआत एक मई से हो गयी है. महिलाओं का गांव में हाथ-पैर धोकर व माला पहना कर गांव में प्रवेश कराया गया.
नाच-गाने के साथ मनोरंजन : पहली बार जनी शिकार में ग्रामीणों ने गाजे-बाजे के साथ जनी शिकार के लिए निकले जत्थे का मनोरंजन किया. पुरुष वेश में निकली महिलाएं और युवतियां का उत्साह बढ़ाया गया.
ग्रामीणों ने तय किया है गांव में शिकार के नाम पर आये जत्थे के सामने मुर्गा छोड़ा जायेगा. बिना हथियार का इस्तेमाल किये मुर्गा को जिंदा पकड़ना होगा. मुर्गा शिकार करने आनेवाली टीम को दिया जायेगा. एक गांव में जत्थे की सरदारनी को पगड़ी और एक खस्सी सौंपा गया. इसे सरदारनी ने लौटा दिया. शिकार में शामिल महिलाओं के लिए गांव में शरबत, पानी, चना और गुड़ की व्यवस्था की जा रही है. यह आयोजन 10 मई तक चलेगा.
आर्थिक नुकसान होता था गरीबों काे: जनी शिकार के नाम पर जबरन पालतू पशुओं का भी शिकार किया जाता था. इससे गरीब परिवारों को आर्थिक नुकसान होता था . इसके मद्देनजर भी ग्रामीणों ने बैठक कर परंपरा से अलग कुछ करने का तय किया है.

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