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शिक्षा के अधिकार को मजबूती से लागू करें

रांची: झारखंड राइट टू एजुकेशन फोरम, नेशनल राइट टू एजुकेशन फोरम और यूनिसेफ की ओर से सोमवार को ‘शिक्षक और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा’ पर राज्य स्तरीय परामर्श का आयोजन किया गया. इसमें अर्थशास्त्री डॉ रमेश शरण ने कहा कि सरकार नियम बनाये कि सभी सरकारी शिक्षकों के बच्चे सरकारी स्कूलों में ही पढ़ें. शिक्षकों को स्वयं […]

रांची: झारखंड राइट टू एजुकेशन फोरम, नेशनल राइट टू एजुकेशन फोरम और यूनिसेफ की ओर से सोमवार को ‘शिक्षक और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा’ पर राज्य स्तरीय परामर्श का आयोजन किया गया. इसमें अर्थशास्त्री डॉ रमेश शरण ने कहा कि सरकार नियम बनाये कि सभी सरकारी शिक्षकों के बच्चे सरकारी स्कूलों में ही पढ़ें. शिक्षकों को स्वयं अपनी गरिमा पहचान कर अपनी भूमिका तय करनी होगी.

शिक्षक संघ के राज्य समन्वयक परशुराम तिवारी ने कहा कि शिक्षक अपने काम के माध्यम से आत्मसम्मान, सृजनशीलता स्वपहचान विकसित करें. यूनिसेफ के विनय पटनायक ने कहा कि गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए बाल विवाह, बाल मजदूरी, पलायन आदि को रोकना जरूरी है. परामर्श का आयोजन होटल ग्रीन होराइजन में किया गया था. इस अवसर पर पत्रकार मधुकर व जेआरटीइएफ के राज्य संयोजक अवध किशोर सिंह ने कहा कि शिक्षा के अधिकार को मजबूती प्रदान कर हम उन्नति का मार्ग प्रशस्त कर सकते हैं.

आरटीइएफ फोरम के राष्ट्रीय समन्वयक अंबरीश राय ने कहा कि समानांतर शिक्षा व्यवस्था व कोठारी कमीशन के सुझावों से शिक्षा का स्तर सुधर सकता है. यूनिसेफ के विनय पटनायक ने कहा कि शिक्षक संघ को सरकार के साथ मिल कर चलना होगा. स्नेहा पालित ने शिक्षा से संबंधित आंकड़े प्रस्तुत किये. उन्होंने कहा कि शिक्षा के अधिकार कानून के अनुसार प्राथमिक स्कूूलों में 60 प्रतिशत बच्चों का नामांकन नहीं हुआ है. एनसीपीसीआर की रंजना सिंह ने समानांतर शिक्षा, संसाधन सहित अन्य मुद्दों की चर्चा की. झारखंड राज्य प्राथमिक शिक्षक संघ के राज्य समन्वयक संजय सिंह ने कहा कि विद्यालय प्रंबधन समिति को प्रभावी बनाना जरूरी है. धन्यवाद ज्ञापन सच्चिदानंद ने किया.

65 फीसदी शिक्षकों को आरटीइ की जानकारी नहीं
इस अवसर पर अवध किशोर सिंह ने ‘असर’ और ‘लीड्स’ की साझा सर्वे र्पिोर्ट पर चर्चा की. उन्होंने बताया कि झारखंड में 66 बच्चों पर एक शिक्षक उपलब्ध है. 65 प्रतिशत शिक्षकों को शिक्षा के अधिकार कानून के प्रावधानों की पूर्ण जानकारी नहीं. 65 प्रतिशत स्कूलों में ही पीने योग्य पानी उपलब्ध है.

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