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रांची :आंदोलनकारी चिह्नितीकरण आयोग का काम दो माह से ठप

रांची : झारखंड-वनांचल चिह्नितीकरण आयोग का काम पिछले दो महीने से ठप है. आंदोलनकारियों को चिह्नित करने की दिशा में काम नहीं हो रहा है. दस फरवरी को आयोग का कार्यकाल खत्म हो गया है. अवधि विस्तार को लेकर अब तक गृह विभाग ने कोई निर्णय नहीं लिया है. कैबिनेट ने पहले ही छह-छह महीने […]

रांची : झारखंड-वनांचल चिह्नितीकरण आयोग का काम पिछले दो महीने से ठप है. आंदोलनकारियों को चिह्नित करने की दिशा में काम नहीं हो रहा है. दस फरवरी को आयोग का कार्यकाल खत्म हो गया है. अवधि विस्तार को लेकर अब तक गृह विभाग ने कोई निर्णय नहीं लिया है.
कैबिनेट ने पहले ही छह-छह महीने के लिए दो बार अवधि विस्तार की स्वीकृति दी है. गृह विभाग को अवधि विस्तार की औपचारिकता पूरी करनी है. इससे पूर्व आयोग को पुनर्गठन के बाद एक बार अवधि विस्तार मिल चुका है. सूचना के मुताबिक आयोग के पास लगभग 60 हजार आवेदन लंबित है़ं अवधि विस्तार के इंतजार में लगभग दो महीने गुजर गये, अब बचे चार महीने में ही आयोग को काम करना है.
इन आवेदनों की जांच करनी है. गृह विभाग की ओर से अवर सचिव स्तर के एक नोडल पदाधिकारी को भी पदास्थापित करना है. पूर्व में गृह विभाग के अधिकारी सेवानिवृत्त हो चुके हैं. आयोग को गृह विभाग की ओर से दूसरा कोई अधिकारी उपलब्ध नहीं कराया गया है.
उल्लेखनीय है कि वर्ष 2012 में चिह्नितीकरण आयोग का गठन किया गया था. संसाधन के अभाव में कई वर्षों तक आयोग का काम सुचारू रूप से शुरू नहीं हो पाया. इसके बाद आयोग का पुनर्गठन किया गया. तीन सदस्यीय आयोग में सेवानिवृत्त न्यायाधीश विक्रमादित्य अध्यक्ष और डॉ देवशरण भगत, सुनील फकीरा सदस्य बनाये गये है़ं
संसाधन की कमी, चिह्नितीकरण की प्रक्रिया में परेशानी : आयोग के पास हजारों की संख्या में आंदोलनकारियों के आवेदन आये हैं. इनकी जांच की प्रक्रिया लंबी है.
इसमें आयोग को पर्याप्त संसाधन की जरूरत है. आयोग के पास अधिकारी और कर्मियों की कमी है़ ऐसे हजारों आवेदन हैं, जिसमें आंदोलनकारी पर किसी तरह का कोई मामला दर्ज नहीं हुआ है. थाने में आंदोलन से संबंधित कोई रिकॉर्ड नहीं है.
आयोग इन आवेदन को जिला व प्रखंड में भेज कर पुष्ट कराता है. इसमेें कई तरह के मानक रखे गये है़ं जिला में आयोग के काम देखने के लिए नोडल अफसर की जरूरत है. प्रखंड स्तर पर सीओ और बीडीओ के पास आवेदन भेजे जाते है़ं आंदोलनकारियों की पहचान करने वाले पुराने लोग भी नहीं रहे़
आंदोनकारियों की आर्थिक स्थिति दयनीय, नहीं है कागजात : आयोग द्वारा चिह्नितीकरण का काम कई वजह से धीमा है. इधर, पुराने आंदोलनकारियों की आर्थिक स्थिति दयनीय है़ झारखंड अलग राज्य की लड़ाई लड़नेवाले कई आंदोलनकारी गुमनामी की जिंदगी जी रहे हैं.
आंदोलनकारी पहचान की प्रक्रिया में आंदोलनकारियों से पार्टी की सदस्यता का प्रमाण, आंदोलन के दौरान अखबारों की खबरों में नाम, आंदोलन के दौरान बैठकों या दस्तावेज में उल्लेख के साथ-साथ दो विख्यात आंदोलनकारियों की अनुशंसा की आवश्यकता है. ऐसे कई आंदोलनकारी हैं, जिनके पास ऐसे कागजात नहीं हैं. इनको पहचानने वाले पुराने लोग भी नहीं बचे. ऐसे आंदोलनकारियों की पहचान के लिए भी आयोग अपने स्तर से कार्रवाई कर रहा है़
दो हजार लोगों को मिल रहा है पेंशन : आयोग की अनुशंसा पर सरकार फिलहाल लगभग दो हजार आंदोलनकारियों को पेंशन दे रही है.
आंदोलनकारियों में असमंजस की स्थिति है. आयोग के काम पर सवाल उठाये जाते हैं. चिह्नितीकरण के काम में हो रही देरी की तकनीकी वजह है, लेकिन सबको नहीं समझाया जा सकता है. काम में तेजी लाने के लिए निर्णय मेें देरी नहीं होनी चाहिए. आयोग पर प्रश्न चिह्न खड़ा ना हो, इसके लिए संवेदनशीलता से विचार करना होना चाहिए़
डॉ देवशरण भगत, आयोग के सदस्य

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