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कृषि एक्सपोर्ट जोन है झारखंड

-वाइबी प्रसाद- एक्सपोर्ट (निर्यात) व्यापार शुरू से ही मानव सभ्यता की प्रगति के साथ जुड़ा रहा है. एक्सपोर्ट को देश की समृद्धि इंजन कहा गया है. आज का सर्वशक्तिशाली राष्ट्र अमेरिका का भी उत्थान कपास और तंबाकू के आधारभूत संरचनाओं को प्राथमिकता देते हुए कृषि एक्सपोर्ट को प्रमुखता दी और अभी कुल 30 कृषि एक्सपोर्ट […]

-वाइबी प्रसाद-

एक्सपोर्ट (निर्यात) व्यापार शुरू से ही मानव सभ्यता की प्रगति के साथ जुड़ा रहा है. एक्सपोर्ट को देश की समृद्धि इंजन कहा गया है. आज का सर्वशक्तिशाली राष्ट्र अमेरिका का भी उत्थान कपास और तंबाकू के आधारभूत संरचनाओं को प्राथमिकता देते हुए कृषि एक्सपोर्ट को प्रमुखता दी और अभी कुल 30 कृषि एक्सपोर्ट जोन देश में स्थापित हैं.

वहीं पांच अतिरिक्त जोन पर काम चल रहा है. इस क्रम में 29 नवंबर 2002 को महानिदेशक विदेश व्यापार, भारत सरकार ने कृषि एक्सपोर्ट जोन, झारखंड की स्वीकृति प्रदान की. तत्कालीन सीएम बाबूलाल मरांडी और तत्कालीन केंद्रीय वाणिज्य राज्य मंत्री राजीव प्रताप रुडी के प्रयास से 15 फरवरी 2003 को झारखंड सरकार और भारत सरकार के कृषि निर्यात उपक्रम अपीडा के बीच सब्जी निर्यात के संदर्भ में औपचारिक एकरारनामा हस्ताक्षरित हुआ.

नई दिल्ली स्थित उद्यान विकास वित्त कंपनी ने विस्तृत सर्वेक्षण के उपरांत राज्य सरकार को अनुशंसित किया कि प्रथम चरण में निम्नलिखित प्रखंडों को कृषि एक्सपोर्ट जोन (एइजेड) के कमांडर क्षेत्र में सम्मिलित किया जाये, जिसे राज्य सरकार ने स्वीकृत किया.

एक्सपोर्ट-1

चयन का आधार

– रांची हवाई अड्डा से निकट

– व्यावसायिक सब्जी उत्पादन की परंपरा, उद्यमी किसान, आधुनिक तकनीक के प्रति रुचि

– बागवानी विकास के लिए अनुकूल वातावरण, उपयुक्त मिट्टी और उत्पादन की क्षमता

राज्य सरकार द्वारा यह भी अनुशंसा स्वीकृत की गयी कि शुरू में सिंगापुर, मलेशिया, जापान और दक्षिण कोरिया में झारखंड की सब्जियों के लिए बाजार लक्षित हो और फ्रेंच बीन, मटर छीमी, शिमला मिर्च, खीरा, ब्रोको लाइ, ऐड पैरागास, बेबी कार्न और स्वीट कॉर्न, टमाटर और गोभी के निर्यात हेतु निर्मित हो. इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए वर्गीकरण की रणनीति ‘ऑपरेशन फ्लड’ को अपनाने पर जोर दिया.

एक्सपोर्ट-2

राज्य सरकार ने नागरिक उड्डयन मंत्रलय से बिरसा हवाई अड्डा के प्रांगण में एक्सपोर्ट यार्ड के निर्माण हेतु प्रयास शुरू किया. राज्य विस द्वारा पारित राज्य बजट (वर्ष 2003-04) में छह लाख रुपये का प्रारंभिक उपबंध हुआ. किंतु 18.3.2003 को ई सरकार गठित हुई. नये मुख्यमंत्री, नये मुख्य सचिव और नये अध्याय के शुरू से कृषि एक्सपोर्ट जोन का अस्तित्व ही लुप्त हो गया. चयनित प्रखंडों में सब्जी किसानों को समूहों से संगठित कर समूह, कलस्टर और फेडरेशन के ढ़ांचे में सुव्यवस्थित ढांचा निर्माण चरणबद्ध किसानों के प्रशिक्षण, कौशल विकास और सशक्तिकरण और सफाई, ग्रेडिंग, प्रसंस्करण, भंडारण, पैकेजिंग और विपणन की संबंधित योजना राज्य सरकार की कार्य सूची से निष्कासित हो गयी.

प्रशासन. राज्य मिशन 32 सदस्यीय जेनरल परिषद द्वारा शासित है और कार्यकारिणी समिति में 18 सदस्य है. प्रधान सचिव कृषि और गन्ना विकास विभाग के अध्यक्ष है और राज्य कृषि सेवा के वरीय अधिकारी प्रबंधन निदेशक के पद पर पदस्थापित है. पूर्ण ढांचे में सहकारिता विभाग गायब है. जन केंद्रित सांस्थिक आधार के अभाव और ढांचागत विकास के कारण मिशन क्षमता विहीन दिखाई पड़ रहा है.

झारखंड बागवानी मिशन की आठ वर्षो में सबसे बड़ी चूक

-किसानों को समूहों, समितियों, संघों में ढांचागत संगठित नहीं कर पाना

-चरणबद्ध, कालबद्ध प्रशिक्षण, कौशल उन्नयन के माध्यम से उनका क्षमता विकास नहीं करना है.

सैम पिट्रोदा कहते हैं : टेक्नोलॉजी तकनीक प्लस संस्था है और प्रस्तुत संदर्भ में बागवानी किसानों की सशक्त समिति, संघ बागवानी टेक्नोलॉजी का स्वत: अहम पार्टनर है. इस पार्टनर शिप के अभाव में मिशन अर्थहीन है. झारखंड में मिशन ने प्रारंभिक वर्षो में रामकृष्ण मिशन को एनजीओ के रूप में पार्टनर बनाया था. क्यों मिशन ने मिशन का परित्याग कर दिया.

वित्त स्रोत : वित्त प्रबंधन

वर्ष 2005-06 से 2013-14 तक उद्यान विकास मद में मिशन के खाते में 605 करोड़ रुपये प्राप्त हुए हैं. सूचना के अनुसार 2006-07 में प्राप्त 30 करोड़ रुपये में सिर्फ 10 करोड़ रुपये ही व्यय हुए. समन्वित बागवानी विकास के हित में वांछित है कि राज्य सरकार के उद्यान निदेशालय और टेक्नोलॉजी मिशन को विभिन्न स्रोतों में प्रत्येक वर्ष प्राप्त निधियों को कॉमन पूल के रूप में उत्पादक कार्यो में प्राथमिकता के आधार पर व्यय किया जाये और दोनों का पूर्ण कनवर्जेस सुनिश्चित हो. महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी अधिनियम 2005 को 2009 में संशोधित कर बागवानी कार्यो में मनरेगा वित्तीय उपलब्ध का निवेश स्वीकृत किया गया है. विकास आयुक्त तथा प्रधान सचिव कृषि विभाग ग्रामीण विकास विभाग की पहल से मिशन को वन विभाग की तरह पर्याप्त राशि प्राप्त हो सकती है. मनरेगा के अंतर्गत 1,12,307 कूप योजनाएं और 1,11,896 तालाब योजनाएं उपलब्ध है. इस दिशा में भी पहल कर सब्जी क्षेत्रफल में विस्तार संभव है.

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