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कोलकाता की गलियों में मांगी भीख, पढ़ाने की आड़ में अपनों ने कर दिया था बचपन का सौदा

!!गुरुस्वरूप मिश्रा!! आरती (काल्पनिक नाम) का बचपन मुश्किलों भरा गुजरा. उन पर मुसीबतों का पहाड़ भी गिरा, लेकिन उनके धैर्य, हिम्मत और साहस की दाद देनी होगी कि विपरीत परिस्थियों में भी विचलित हुए बगैर वह आगे बढ़ती रहीं. पांच साल की उम्र में कोलकाता की गलियों में भीख मांगीं. अपनों ने पढ़ाई की आड़ […]

!!गुरुस्वरूप मिश्रा!!

आरती (काल्पनिक नाम) का बचपन मुश्किलों भरा गुजरा. उन पर मुसीबतों का पहाड़ भी गिरा, लेकिन उनके धैर्य, हिम्मत और साहस की दाद देनी होगी कि विपरीत परिस्थियों में भी विचलित हुए बगैर वह आगे बढ़ती रहीं. पांच साल की उम्र में कोलकाता की गलियों में भीख मांगीं. अपनों ने पढ़ाई की आड़ में उनका सौदा तक कर दिया. इसके बावजूद आज वह चान्हो के बीजुपाड़ा (टांगर) स्थित किशोरी निकेतन की बच्चियों का भविष्य गढ़ रही हैं. मानव तस्करी पर जागरूकता को लेकर उन्हें दिल्ली में पुरस्कृत भी किया गया है.
जीवन में अंधेरा है, तो सुबह जरूर होगी
आज की तेज रफ्तार जिंदगी में जहां लोग छोटी-छोटी बातों पर मौत को गले लगाने से नहीं हिचकते. वैसे में पांच साल की मासूम उम्र से ही तमाम मुश्किलों को झेलते हुए आगे बढ़कर बच्चियों का भविष्य गढ़ने वाली आरती उन सभी के लिए प्रेरणा हैं. उम्मीद की किरण हैं. उन्होंने साबित किया है कि जीवन में अंधेरा है, तो सुबह जरूर होगी.

कोलकाता की गलियों में मांगती थीं भीख

बचपन की बात पूछते ही आरती के चेहरे पर मायूसी छा जाती है. वह बचपन के उन काले अध्यायों के दर्दनाक पन्नों को पलटते हुए कहती हैं कि मुश्किल से पांच साल की उम्र रही होगी. मां अस्वस्थ रहती थीं. घर का काम भी नहीं कर पाती थीं. लिहाजा घर का काम भी वे सब ही संभालती थीं. पिता ग्रामीण इलाके में कान का इलाज करते थे. इससे घर का गुजारा संभव नहीं था. गरीबी-बेबसी के कारण परिवार के पालन-पोषण को लेकर अपनी दो बहनों और एक भाई के साथ वह कोलकाता की गलियों में भीख मांगा करती थीं.

अपनों ने पढ़ाने की आड़ में कर दिया मेरा सौदा
बचपन में स्कूल का मुंह नहीं देख सकी थी. शायद भीख मांगना ही नियति बन गयी थी. घर में सबसे छोटी बेटी थीं. मेरे पिता के परिचित मित्र ने उनसे अनुरोध किया कि वह उनकी छोटी बेटी को अपने घर रखकर पढ़ाना चाहते हैं. लाचारी थी ही, पिता ने झट से हां कहते हुए मुझे उनके साथ भेज दिया. पिता के मित्र कोलकाता से उन्हें दिल्ली गए. एक दिन बमुश्किल उन्हें अपने घर पर रखा. दूसरे ही दिन किसी दूसरे के यहां भेज दिया. माजरा समझ नहीं पायी. इस कारण विरोध नहीं कर सकी. बाल मन को यह भान तक नहीं था कि उनका सौदा कर दिया गया है.
तिल-तिल कर रोज मरती थी
नए मालिक के घऱ घरेलू काम करने लगी. सुबह उठकर बर्तन साफ करने, खाना बनाने, बच्चों को स्कूल जाने के लिए तैयार करने, कपड़े साफ करने समेत कई काम रोजाना करते देर रात हो जाती थी. तिल-तिल कर रोज मरती थी. थोड़ा आराम करने पर मालिक-मालकिन उनकी पिटाई भी किया करते थे. आरती कहती हैं कि बच्ची थी, आखिरी कितना काम कर सकती थी. पूरे परिवार का काम कैसे कर पाती ? इसके बावजूद कोई मुरौव्वत नहीं दी जाती थी. क्रूरता की हद पार हो गयी थी.
एक दिन मिला मौका, भाग गयी
आरती बताती हैं कि किसी रिश्तेदार के यहां रात में पार्टी थी. मालिक-मालकिन और उनके बच्चे घर में उन्हें बंद पर पार्टी में चले गये. भगवान की कृपा थी. घर बंद करने के दौरान एक खिड़की खुली रह गयी थी. आव देखा न ताव. मौका मिलते ही वह परिंदे की तरह उड़ गयीं. रास्ते में उन्हें पुलिस मिली. उन्होंने आपबीती बताई तो पुलिस ने उन्हें कोलकाता चाइल्ड लाइन के पास भेज दिया, ताकि अपने परिवार के पास जा सकूं, लेकिन उन्हें अपने परिवार का पता याद नहीं आ रहा था. वर्ष 2011 में वह रांची चाइल्ड लाइन के जरिये भारतीय किसान संघ के चान्हो प्रखंड के बीजुपाड़ा (टांगर) स्थित किशोरी निकेतन में आ गयीं.
खुद की तकदीर बदली, अब दूसरों को गढ़ रही हैं
वर्ष 2011 में भारतीय किसान संघ द्वारा संचालित बहुमुखी शिक्षा केंद्र में नौ माह का प्रशिक्षण लीं. वर्ष 2013 में मांडर के कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय में नौवीं कक्षा में पढ़ाई शुरू की और वर्ष 2015 में वह मैट्रिक पास कर गयीं. अभी न सिर्फ वह बीए की पढ़ाई कर रही हैं बल्कि किशोरी निकेतन की बच्चियों का भविष्य भी गढ़ रही हैं. यहां की 19 बच्चियों को न सिर्फ वह पढ़ाती हैं बल्कि डांस करना भी सिखाती हैं. मानव तस्करी, बाल मजदूरी, बाल विवाह को लेकर उन्हें जागरूक भी करती हैं.
मानव तस्करी पर जागरूकता के लिए हो चुकी हैं पुरस्कृत
चान्हो इलाके में नुक्कड़ नाटक के जरिये ग्रामीणों को मानव तस्करी समेत अन्य सामाजिक कुरीतियों को लेकर जागरूक करने के कारण आरती को दिल्ली में पुरस्कृत किया गया था. तत्कालीन थल सेना अध्यक्ष जनरल विक्रम सिंह ने उन्हें सम्मानित कर हौसला अफजाई की थी.
जीने का मकसद मिल गया है-आरती
आरती कहती हैं कि एटसेक के राज्य प्रमुख व भारतीय किसान संघ के सचिव संजय कुमार मिश्रा ने उनका आत्मविश्वास बढ़ाया. बेनाम जिंदगी को जीने का मकसद दिया. वह खुद मानव तस्करी का शिकार हुईं हैं, लेकिन बेहद खुशी है कि वह न सिर्फ चान्हो के बच्चों को इससे जागरूक कर रही हैं, बल्कि कई बच्चियों को गढ़कर नयी जिंदगी दे रही हैं.

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