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ग्रामीण इलाकों में ‘मिनी स्टार्टअप’ से जिंदगी बेहतर बना रहीं महिलाएं-1

आठ मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस है, यह दिवस समर्पित है महिलाओं को, देश-समाज के प्रति उनके योगदान को. आज महिलाएं सशक्त हैं ना सिर्फ अपने अधिकारों के प्रति बल्कि वे खुद को आर्थिक रूप से भी सबल कर रही हैं. आर्थिक स्वतंत्रता महिला सशक्तीकरण की दिशा में ठोस कदम है. विशेषकर ग्रामीण महिलाएं खुद […]

आठ मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस है, यह दिवस समर्पित है महिलाओं को, देश-समाज के प्रति उनके योगदान को. आज महिलाएं सशक्त हैं ना सिर्फ अपने अधिकारों के प्रति बल्कि वे खुद को आर्थिक रूप से भी सबल कर रही हैं. आर्थिक स्वतंत्रता महिला सशक्तीकरण की दिशा में ठोस कदम है. विशेषकर ग्रामीण महिलाएं खुद को अभूतपूर्व तरीके से डेवलप कर रही हैं और समाज को नयी दिशा दे रही हैं. भले ही वे छोटे पैमाने पर काम कर रही हैं, लेकिन उनका ‘मिनी स्टार्टअप’ शानदार है.

सालो देवी ने बदली घर की आर्थिक स्थिति

-रूबी खातून-

रांची (झारखंड) : रांची जिले के अनगड़ा प्रखंड के अनगड़ा कलस्टर से लगभग सात किलोमीटर दूर है सिरका गांव, जहां की सालो देवी महिला समूह से जुड़ कर खुद को गरीबी से बाहर निकाल चुकी हैं. सालो देवी वर्ष 2007 में ‘जागृति सखी मंडल’ (स्वयं सहायता समूह) से जुड़ीं और अपने परिवार की आर्थिक स्थिति सुधारने में जुट गयीं. अभी तक सालो देवी अपने समूह से 90 हजार रुपये तक का लोन ले चुकी हैं. सबसे पहले सालो देवी ने समूह से पांच हजार रुपये का लोन लिया और दो बकरियां खरीदीं.

इसकी अच्छी तरह देखभाल करने के कारण बकरियों की संख्या में बढ़ोत्तरी होने लगी. इसकी बिक्री पर अच्छी आमदनी भी हुई. बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाने के इरादे से सालो देवी ने समूह से एक बार फिर 10 हजार रुपये का लोन लिया. इससे उन्होंने अपने दो बेटों का नाम प्राइवेट स्कूल में लिखवाया. बच्चों का नामांकन कराने के बाद उन्होंने घर की मरम्मत के लिए पांच हजार रुपये का लोन लिया. इसी बीच उन्होंने व्यवसाय करना चाहा. कुछ समय बाद समूह से 50 हजार रुपये का बड़ा लोन लिया.

इस लोन से सालो ने एक जेनरल स्टोर खोला. सालो देवी बताती हैं कि जब वो समूह से नहीं जुड़ी थीं, तब उनकी हालत बेहद खराब थी. वो खुद एक गरीब परिवार की बेटी हैं, जिसके कारण पढ़ाई पूरी नहीं कर पायी थीं. इस बीच शादी हो गयी. ससुराल में भी स्थिति अच्छी नहीं थीं. इन हालातों के बीच सालो देवी हमेशा सोचती थीं कि जिस तरह से उन्होंने गरीबी में जिंदगी गुजारी है, उस तरह की जिंदगी अपने बच्चों को नहीं देंगी. इसके बाद सालो देवी काम करने के लिए घर से बाहर जाने लगीं.

बच्चों को घर में छोड़ कर बाहर काम के लिए जाना उन्हें बिल्कुल पसंद नहीं था. काम करने के कारण वो अपने बच्चों को पूरा समय भी नहीं दे पा रही थीं. सालो बताती हैं कि जब वो बच्चों को छोड़ कर काम करने के लिए जाती थीं, तो बच्चे उन्हें देख कर रोने लगते थे. बच्चे बोलते थे कि छोड़कर मत जाओ. बच्चों की जिद देख कर सालो देवी को भी रोना आ जाता था. वो सोचती थीं कि किस तरह से गरीबी के चक्रव्यूह से बाहर निकला जाये और घर के आस-पास काम करके बच्चों को समय दिया जाये. इस दौरान सालो देवी के घर के आस-पास की महिलाओं ने एक समूह बनाने के बारे में सोचा और ‘जागृति सखी मंडल’ का गठन हुआ. यहां पर सभी महिलाएं बचत करने लगीं, ताकि बचत की राशि समय पर काम आ सके. जागृति महिला समूह को जेएसएलपीएस से जोड़ा गया. जेएसएलपीएस से जुड़ने के बाद सभी महिलाओं को प्रशिक्षण मिला. प्रशिक्षण के दौरान बताया गया कि किस तरह से महिलाएं समूह से जुड़कर गरीबी को मिटा सकती हैं.

जेएसएलपीएस से लिया प्रशिक्षण

इसके अलावा किस तरह से महिलाएं सखी मंडल को और बेहतर बना सकती हैं. जेएसएलपीएस से प्रशिक्षण मिलने के बाद सालो देवी के अंदर आत्मविश्वास आया और उन्हें यह लगने लगा कि वो भी अपने परिवार को गरीबी से बाहर निकाल सकती हैं. समूह से जुड़ने व हर गतिविधियों में सक्रिय रहने के कारण कुछ दिनों के बाद सालो ने समूह से लोन लेकर काम करना शुरू किया और आज उनकी अपनी किराना दुकान है. अब उन्हें काम के लिए घर से बाहर नहीं जाना पड़ता है. घर में बच्चों को पूरा समय भी दे पा रही हैं. दुकान से प्रतिदिन पांच सौ से हजार रुपये तक की आमदनी हो जाती है, इससे परिवार में खुशहाली लौट आयी और सभी खुशहाल जिंदगी जी रहे हैं.

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