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श्वेत क्रांति की ओर ले जा रही मेधा, जानिए कैसे शुरू हुई झारखंड में मेधा की यात्रा?
II मनोज सिंह II झारखंड राज्य दुग्ध उत्पादक महासंघ का मैनेजमेंट कर रहा है बोर्ड रांची : झारखंड में नेशनल डेयरी डेवलपमेंट बोर्ड (एनडीडीबी) श्वेत क्रांति लाने की दिशा में काम कर रहा है. केंद्र सरकार और राज्य के कुछ प्रगतिशील किसानों के प्रयास से बोर्ड ने 2014 में झारखंड में काम करना शुरू किया […]
II मनोज सिंह II
झारखंड राज्य दुग्ध उत्पादक महासंघ का मैनेजमेंट कर रहा है बोर्ड
रांची : झारखंड में नेशनल डेयरी डेवलपमेंट बोर्ड (एनडीडीबी) श्वेत क्रांति लाने की दिशा में काम कर रहा है. केंद्र सरकार और राज्य के कुछ प्रगतिशील किसानों के प्रयास से बोर्ड ने 2014 में झारखंड में काम करना शुरू किया है.
बोर्ड एक एमओयू के तहत झारखंड राज्य दुग्ध उत्पादक महासंघ का मैनेजमेंट पांच साल के लिए कर रहा है. इसका असर भी दिखने लगा है. 2014 में 12 हजार लीटर प्रतिदिन संग्रहण से काम शुरू करने वाली संस्था आज हर दिन करीब सवा लाख लीटर दूध इकट्ठा कर उसे बाजार में पहुंचा रही है. इसके पीछे संस्थान के कर्मठ कर्मियों और अधिकारियों की मेहनत है. संसाधन की कमी के बावजूद संस्था ने पिछले दो साल में अपनी पहचान बनायी है. झारखंड में दूध उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए संस्थान ने मिल्क फेडरेशन का गठन किया है. मेधा नाम से अपना ब्रांड तैयार किया है. आज करीब-करीब हर शहर में मेधा की पहुंच हो गयी है. मेधा के कामकाज और आगे की योजनाओं पर प्रभात खबर ने झारखंड मिल्क फेडरेशन के प्रबंध निदेशक बीएस खन्ना से बात की.
कैसे शुरू हुई झारखंड में मेधा की यात्रा?
जवाब : यह यात्रा करीब तीन साल की है. एनडीडीबी ने यहां अगस्त 2014 से काम शुरू किया. उस वक्त झारखंड में हर दिन करीब 12 हजार लीटर दूध का संग्रहण किसानों से होता था. आज हम करीब सवा लाख लीटर प्रतिदिन दूध जमा कर रहे हैं. संभावना इससे अधिक संग्रहण की है.
इसके लिए हमें डेयरी प्लांट चाहिए. इस पर काम हो रहा है. पलामू और साहेबगंज में 50 हजार लीटर के प्लांट का शिलान्यास हो गया है. इस पर जल्द काम शुरू होने की उम्मीद है. इससे हम अपनी संग्रहण क्षमता और बढ़ा पायेंगे. अभी हमारे पास होटवार, रांची में एक लाख लीटर का एक प्लांट है. यहां हर दिन एक लाख लीटर से ज्यादा दूध प्रोसेसिंग के लिए आ रहा है. देवघर में 10, कोडरमा में 10 हजार लीटर का एक प्लांट है. इन प्लांट में भी 12 से भी 15 हजार लीटर दूध आ रहे हैं.
कितने जिलों तक हो गयी है संस्था की पहुंच ?
जवाब :अभी हम 16 जिलों में काम कर रहे हैं. 17 हजार किसानों तक हमारी सीधी पहुंच है. हम अभी लक्ष्य से अधिक जिलों में काम कर रहे हैं. हमने तय किया था कि 14 जिलों में काम करेंगे. लेकिन, किसानों के प्रेम और दूध की मांग के कारण कुछ जिलों में अतिरिक्त काम हो रहा है.
कैसे रखते हैं गुणवत्ता का ख्याल ?
जवाब : देखिए, दूध की गुणवत्ता बनाये रखना संस्था की प्रमुख जिम्मेदारी है. इसके लिए तीन चरणों में चेक होता है. पहली चेकिंग हम किसान से दूध लेते वक्त करते हैं. वहां से चेक होने के बाद कलेक्शन सेंटर (जहां बल्क मिल्क कूलर है) पर चेक करते हैं. वहां से रांची आने के बाद होटवार प्रोसेसिंग प्लांट में इंट्री के बाद चेक किया जाता है. पूरी व्यवस्था कंप्यूटराइज है. 14-15 तरह के अलग-अलग टेस्ट होते हैं. संस्था गुणवत्ता को लेकर कोई समझौता नहीं करती है.
कितना पैसा मिलता है किसानों को ?
जवाब : किसानों को दूध का पैसा उसकी गुणवत्ता के आधार पर मिलता है. अभी औसतन 29.70 रुपये हम दे रहे हैं. किसी किसान को 22 तो किसी को 40-42 रुपये प्रति लीटर भी मिलता है. इसके अतिरिक्त किसानों को हम बोनस भी देते हैं. पिछले साल 1.24 करोड़ रुपये बोनस दिये थे. उससे पूर्व 75 तथा 2014-15 में 56लाख रुपये बोनस के रूप में किसानों को बांटे थे.
क्या-क्या उत्पाद हैं बाजार में, आगे की क्या योजना है?
जवाब : बाकी सभी दूध बेचने वाली कंपनियां दो तरह की दूध बाजार में दे रही है. मेधा के पास चार अलग-अलग तरह के वेरियेंट हैं. इसमें स्टैंडर्स और टोंड मिल्क के अतिरिक्त चाय, दही और खीर के लिए शक्ति स्पेशल दूध बाजार में उपलब्ध है.
जो ग्राहक गाय की दूध पसंद करते हैं, उनके लिए अलग से गाय की दूध है. छह लीटर का दूध का पैक है. इसकी बाजार में अच्छी मांग है. पार्टी, विशेष अवसर और संस्थानों में इसकी काफी मांग है. इसके अतिरिक्त लस्सी, दही, पनीर, मिष्टी दही भी है. घी भी तैयार किया जा रहा है. इसके अतिरिक्त स्कूली बच्चों के लिए विशेष मांग परफ्लेवर्ड गिफ्ट मिल्क तैयार कियागया है.
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