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झारखंड : सीआरपीएफ आइजी की रिपोर्ट, एसबी एडीजी की अनुशंसा, फिर भी नहीं हुई सीबीआइ जांच…जानें क्या है मामला
514 युवकों को फर्जी तरीके से सरेंडर कराने के मामले की फाइल रांची पुलिस ने की बंद रांची :514 युवकों को फर्जी तरीके से सरेंडर कराने के मामले का खुलासा झारखंड रेंज के तत्कालीन आइजी एमवी राव ने किया था. उन्होंने इस मामले में तत्कालीन डीजीपी गौरी शंकर रथ को 30 अक्टूबर 2012 को एक […]
514 युवकों को फर्जी तरीके से सरेंडर कराने के मामले की फाइल रांची पुलिस ने की बंद
रांची :514 युवकों को फर्जी तरीके से सरेंडर कराने के मामले का खुलासा झारखंड रेंज के तत्कालीन आइजी एमवी राव ने किया था. उन्होंने इस मामले में तत्कालीन डीजीपी गौरी शंकर रथ को 30 अक्टूबर 2012 को एक रिपोर्ट भेजा था. पत्र में गड़बड़ियों का उल्लेख किया गया था. इस मामले में स्पेशल ब्रांच के तत्कालीन एसपी ने मामले की प्रारंभिक जांच की थी. इसके बाद तत्कालीन स्पेशल ब्रांच एडीजी रेजी डुंगडुंग ने 21 अप्रैल 2014 को गृह विभाग के तत्कालीन प्रधान सचिव एनएन पांडेय को पत्र लिख कर मामले की सीबीआइ जांच की अनुशंसा की थी. लेकिन इस मामले की सीबीआइ जांच आज तक नहीं हुई. उधर, इस मामले में लोअर बाजार थाने में 28 मार्च 2014 को दर्ज केस को बंद कर दिया गया है.
514 लाेगों को आत्मसमर्पित नक्सली बताकर रांची के पुराने जेल कैंपस में सीआरपीएफ की 2013 कोबरा बटालियन एक कंपनी की देखरेख में रखा गया था. मामले में नामजद अभियुक्त रवि बोदरा उर्फ रमेश बारला ने भी अपने स्वीकारोक्ति बयान में तथाकथित गरीब छात्रों को नक्सली बता पुराने जेल में रखने का समर्थन किया था. पर्यवेक्षण टिप्पणी (प्रतिवेदन संख्या-2) में वादी पमेश प्रसाद, साक्षियों सूरज कुमार राम, कृष्णा उरांव, लक्ष्मण सिंह, भोला राम और नथनियल पूर्ति ने भी पुराने जेल में रखने और खाने-पीने की व्यवस्था किये जाने की बात कही थी.
सीआरपीएफ आइजी व स्पेशल ब्रांच एडीजी के उठाये गये सवाल पर जांच तक नहीं की गयी
ओड़िशा, नागालैंड, असम मणिपुर में रवि बोदरा के कनेक्शन की नहीं हुई जांच
स्पेशल ब्रांच एडीजी ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि मामले का नामजद अभियुक्त रवि बोदरा उर्फ रवि बारला ने बताया था कि ओड़िशा, नागालैंड, असम, मणिपुर में भी आर्मी इंटेलिजेंस के साथ उग्रवादियों का सरेंडर कराया गया था. झारखंड में भी इसका सीआरपीएफ और प्रदेश के पुलिस अफसरों के संपर्क में आने और उनके दिशा-निर्देश पर दो वर्षों की अवधि में 250 छोटे-बड़े उग्रवादियों को हथियार के साथ आत्मसमर्पण कराकर पुराने जेल रांची के कोबरा बटालियन के नियंत्रण में रखने की बात कही थी.
जेल के अफसरों ने कहा था : रांची एसएसपी करते थे खर्च का भुगतान
तत्कालीन सहायक पुलिस महानिरीक्षक जेल और बिरसा मुंडा केंद्रीय कारा, रांची ने पूछताछ के दौरान विशेष शाखा के अफसर को बताया था कि पुराने जेल परिसर में उन युवकों के रहने और भोजन आदि की व्यवस्था में हुए खर्च का भुगतान रांची के तत्कालीन एसएसपी के स्तर से किया जाता था. इन लोगों द्वारा संवेदकों के माध्यम से भोजन आदि की व्यवस्था करायी जाती थी.
इन सवालों का जवाब मिलना अभी है बाकी
रवि बोदरा उर्फ रवि बारला का ओड़िशा, नागालैंड, असम, मणिपुर में भी आर्मी इंटेलिजेंस और झारखंड में सीआरपीएफ के अलावा प्रदेश के पुलिस अफसरों से कनेक्शन की नहीं हुई जांच?
रवि बोदरा और दिग्दर्शन के संचालक दिनेश प्रजापति द्वारा सरेंडर करने वाले युवकों को हथियार देने की बात कही गयी है. लेकिन इस बात की जांच नहीं हुई कि दोनों के पास युवकों को देने के लिए हथियार कहां से आते थे?
सीआरपीएफ का कोबरा बटालियन नक्सलियों के खिलाफ अभियान का विशेषज्ञ फोर्स माना जाता है. लेकिन इसको नक्सल अभियान से हटाकर रांची के पुरानी जेल में क्यों रखा गया था?
सीआरपीएफ की कंपनियों का डिपलाॅयमेंट अाइजी अभियान के स्तर से होता है. जिस वक्त सीआरपीएफ की कोबरा बटालियन को रांची की पुरानी जेल में प्रतिनियुक्त किया गया था, उस वक्त क्या आइजी अभियान ने आदेश दिया था. अगर नहीं दिया था, तो किसके आदेश से कोबरा प्रतिनियुक्त था?
सरेंडर करनेवाले लोगों को तत्कालीन रांची एसएसपी के स्तर से भोजन आदि की व्यवस्था की गयी थी. लेकिन किस मद से भुगतान किया गया था, इसकी जांच नहीं हुई?
आज तक फर्जी सरेंडर कराये गये सभी 514 लोगों का बयान अनुसंधान के दौरान नहीं लिया गया.
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