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लघु खनिज नीति बनाने के प्रति सरकार गंभीर नहीं : हाइकोर्ट
रांची : झारखंड हाइकोर्ट में मंगलवार को पहाड़ों के गायब होने व पत्थरों के उत्खनन को लेकर स्वत: संज्ञान से दर्ज जनहित याचिका पर सुनवाई हुई. जस्टिस अपरेश कुमार सिंह व जस्टिस रत्नाकर भेंगरा की खंडपीठ ने मामले की सुनवाई करते हुए लघु खनिज नीति बनाने में हो रहे विलंब को गंभीरता से लेते हुए […]
रांची : झारखंड हाइकोर्ट में मंगलवार को पहाड़ों के गायब होने व पत्थरों के उत्खनन को लेकर स्वत: संज्ञान से दर्ज जनहित याचिका पर सुनवाई हुई. जस्टिस अपरेश कुमार सिंह व जस्टिस रत्नाकर भेंगरा की खंडपीठ ने मामले की सुनवाई करते हुए लघु खनिज नीति बनाने में हो रहे विलंब को गंभीरता से लेते हुए कड़ी नाराजगी जतायी.
सरकार के जवाब को असंतोषजनक बताया. खंडपीठ ने माैखिक रूप से कहा कि लघु खनिज नीति बनाने के प्रति राज्य सरकार को जितना गंभीर होना चाहिए, सरकार उतनी गंभीर नहीं है. नाराजगी जताते हुए खंडपीठ ने खान विभाग के सचिव, वन, पर्यावरण व क्लाइमेट चेंज विभाग के सचिव व झारखंड राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सचिव को उपस्थित होने का निर्देश दिया. खंडपीठ ने मामले की अगली सुनवाई के लिए 20 फरवरी की तिथि निर्धारित की.
इससे पूर्व राज्य सरकार की ओर से शपथ पत्र दायर किया गया. बालू से संबंधित जिलावार रिपोर्ट भी दायर की गयी. कहा गया कि सरकार लघु खनिज नीति बनाने पर कार्य कर रही है.
शपथ पत्र में एक वर्ष में अवैध उत्खनन को रोकने के लिए किये गये उपायों की जानकारी दी गयी है. निरोधात्मक कार्रवाई के तहत दर्ज मामलों को विस्तार से बताया गया है. बालू का सर्वे सभी जिलों में करा लिया गया है, लेकिन अन्य खनिजों की रिपोर्ट अभी नहीं प्राप्त हुई है. चिप्स के मामले में नौ जिलों में सर्वे करा लिया गया है. 14 जिलों से रिपोर्ट आना बाकी है. उल्लेखनीय है कि प्रभात खबर में पहाड़ों के गायब होने संबंधी खबर को झारखंड हाइकोर्ट ने गंभीरता से लेते हुए उसे जनहित याचिका में तब्दील कर दिया था.
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