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झारखंड : बजट में भूख या कुपोषण का कोई उल्लेख नहीं
गैर सरकारी संस्था रोजी रोटी अधिकार अभियान ने बजट को निराशाजनक बताया रांची : गैर सरकारी संस्था रोजी रोटी अधिकार अभियान ने 2018-19 के बजट को निराशाजनक बताया है. अभियान की ओर से कहा गया है कि इस बजट से देश के कृषि संकट व व्यापक बेरोजगारी की स्थिति में सुधार के आसार कम नजर […]
गैर सरकारी संस्था रोजी रोटी अधिकार अभियान ने बजट को निराशाजनक बताया
रांची : गैर सरकारी संस्था रोजी रोटी अधिकार अभियान ने 2018-19 के बजट को निराशाजनक बताया है. अभियान की ओर से कहा गया है कि इस बजट से देश के कृषि संकट व व्यापक बेरोजगारी की स्थिति में सुधार के आसार कम नजर आते हैं. हाल में देश के कई राज्यों में भूख से मौत हुई है.
पर बजट में भूख या कुपोषण का कोई उल्लेख नहीं है. बजट में स्वास्थ्य सेवाओं का बहुत प्रचार है, पर इनके लिए आवंटित बजट बहुत कम है. ऐसा लगता है कि सरकार ने लोगों की बुनियादी सुविधाएं सुनिश्चित करने की जिम्मेवारी से हाथ खींच लिये हैं. उम्मीद थी कि अगले वर्ष जन वितरण प्रणाली में दाल और तेल जैसे पौष्टिक खाद्य पदार्थ भी जोड़े जायेंगे. पर बजट के भाषण में ऐसी कोई घोषणा नहीं हुई. खाद्य सब्सिडी की रकम वित्तीय वर्ष 2017-18 में 1.45 लाख करोड़ के मुकाबले वर्ष 2018-19 में 1.69 करोड़ रु तो हुई है. पर 17 फीसदी की यह वृद्धि विभिन्न खर्चों के लिए कम है.
उधर, मध्याह्न भोजन का बजट 10 हजार करोड़ रुपये से बढ़ कर 10500 करोड़ रुपये होना महंगाई के मद्देनजर कम है. वहीं मध्याह्न भोजन में अंडा, फल, दूध जैसी पौष्टिक चीजों को जोड़ने की कोई चर्चा नहीं है. उधर समेकित बाल विकास परियोजना के लिए 16,334 करोड़ रुपये का बजट है.
पर इसमें से 300 करोड़ रुपये बच्चों के आधार नामांकन के लिए आवंटित है. छोटे बच्चों का आधार में जबरन नामांकन, वह भी उनके पोषण व स्वास्थ्य के लिए आवंटित बजट से, नैतिकता के कई सवाल खड़े करता है.
कोई जानकारी नहीं दी गयी : इसके अलावे राष्ट्रीय पोषण मिशन के तीन हजार करोड़ रुपये के बजट के खर्च के बारे में कोई जानकारी नहीं दी गयी है. इस बजट के उपयोग पर जन विमर्श की आवश्यकता है.
वहीं इसकी पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए इसके विवरण को सार्वजनिक करने की आवश्यकता है. राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून 2013 अनौपचारिक क्षेत्र में काम कर रही महिलाओं को छह हजार रु मातृत्व लाभ का अधिकार देता है.
बड़े-बड़े वादे किये थे : उल्लेखनीय है कि दिसंबर 2016 में प्रधानमंत्री ने मातृत्व लाभ के बड़े-बड़े वादे किये थे. पर इस योजना के लिए आवंटित राशि बहुत ही कम है. राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम का बजट 9,500 करोड़ रु से बढ़ा कर 9,975 करोड़ रुपये किया गया है. पर किसी भी पेंशन राशि में कोई वृद्धि नहीं है.
अभी 60 से 79 वर्षीय बुजुर्गों के लिए पेंशन राशि में केंद्र सरकार का योगदान केवल 200 रु है. इससे अधिक उम्र के लोगों के लिए पेंशन राशि में योगदान 500 रु, विकलांगता पेंशन (18 से 79 वर्ष) तथा विधवा पेंशन (40 से 79 वर्ष) में 300 रु है.
वहीं नरेगा का बजट सिर्फ 55 हजार करोड़ है. यह रकम ग्रामीण परिवारों को उनकी मांग के अनुसार काम देने, मजदूरी भुगतान में विलंब का मुआवजा देने तथा नरेगा मजदूरी की राशि कम से कम न्यूनतम मजदूरी के बराबर करने के लिए अपर्याप्त है.
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