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चारा घोटाला मामला : …जब चांडक ने कहा, लालू को 55-60 करोड़, डॉ मिश्र को 50 लाख दिये
पशुपालन विभाग के अधिकारियों ने 1992-93 में 67 फर्जी आवंटन आदेश के सहारे चाईबासा ट्रेजरी से 32.59 करोड़ की फर्जी निकासी की. जांच के नाम पर एजी से वाउचर मांगा और उसे कांके स्थित पशुपालन कार्यालय में छिपा दिया. सीबीआइ ने इसे बरामद करने के बाद प्राथमिकी दर्ज की. जांच में पशुपालन विभाग के अधिकारियों […]
पशुपालन विभाग के अधिकारियों ने 1992-93 में 67 फर्जी आवंटन आदेश के सहारे चाईबासा ट्रेजरी से 32.59 करोड़ की फर्जी निकासी की. जांच के नाम पर एजी से वाउचर मांगा और उसे कांके स्थित पशुपालन कार्यालय में छिपा दिया. सीबीआइ ने इसे बरामद करने के बाद प्राथमिकी दर्ज की. जांच में पशुपालन विभाग के अधिकारियों को राजनीतिज्ञों और बजट शाखा के बड़े अधिकारियों के संरक्षण की बात सामने आयी. पाया गया कि पशुपालन विभाग के अधिकारी फर्जी निकासी के लिए बजट प्रावधान के फर्जी आंकड़ों का इस्तेमाल करते थे.
ट्रेजरी से निकासी के लिए इस्तेमाल किये जानेवाले बिल की जांच नहीं हो, इसके लिए सभी बिल 10 लाख से कम के ही बनाये जाते थे, क्योंकि 10 लाख से अधिक के बिल की जांच का नियम था. घोटाले का पर्दाफाश होने के बाद एजी ने विशेष ऑडिट रिपोर्ट जारी की. इसमें फर्जी आपूर्ति से लाभान्वित होनेवाले 11 सप्लायरों की सूची तैयार की गयी. इनमें दीपेश चांडक, मोहम्मद सईद, त्रिपुरारी मोहन प्रसाद, एमएस बेदी आदि का नाम शामिल है.खास बात यह है कि सरकारी गवाह बने दीपेश चांडक ने अदालत में दिये अपने बयान में इस बात को कबूल िकयाथा कि उसने राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद व बिहार के पूर्व सीएम जगन्नाथ मिश्र सहित दर्जनों अधिकारियों को घोटाले की बड़ी राशि दी थी़
रांची : सरकारी गवाह (एप्रूवर) बने दीपेश चांडक ने कोर्ट में दिये गये अपने बयान में लालू प्रसाद को कुल 50-60 करोड़ और जगन्नाथ मिश्र को 50 लाख रुपये दिये जाने की बात कही है. इसके लिए उसने श्याम बिहारी सिन्हा द्वारा उसे दी गयी जानकारी को आधार बताया है. उसने अपने बयान में खुद किंगपिन श्याम बिहारी सिन्हा सहित पशुपालन विभाग के अधिकारियों को करोड़ रुपये देने और श्याम बिहारी सिन्हा का पैसा रखने की बात कही है.
चांडक खुद चारा घोटाले में सबसे बड़े सप्लायर के रूप में चिह्नित है. इसे एप्रूवर बनाने के मुद्दे पर छिड़ी कानूनी जंग में जीत के बाद सीबीआइ ने उसे सरकारी गवाह बनाया. चांडक भी चारा घोटाले के 11 मामलों में अभियुक्त है.
अपने बयान में चांडक ने कहा है कि आटा मिल, लोहा और स्टील का उसका पारिवारिक व्यापार है. उसने पशुपालन विभाग में चोकर आदि का सप्लाइ शुरू किया था. उसके द्वारा किये गये सही सप्लाइ के बिल रुकने के बाद उसे एसबी सिन्हा से मिलने का निर्देश दिया गया. उनसे मिलने के बाद उसके बकाये का भुगतान हो गया. फिर व्यापार बढ़ाने के उद्देश्य से दूसरी बार इनसे मिला और पांच हजार रुपये दिया.
इसके बाद से उसे चोकर के अलावा पीली मकई सहित अन्य सामग्रियों की आपूर्ति का आदेश मिलने लगा. पशुपालन विभाग में सप्लाइ के लिए उसने बद्री नारायण एंड कंपनी, मेसर्स क्वालिटी केमिकल्स, माहेश्वरी फीड सहित कई फर्म बनाये. इन प्रतिष्ठानों के माध्यम से उसने पशुपालन विभाग में विभिन्न सामग्रियों की आपूर्ति की. इस दौरान वह एसबी सिन्हा के करीब आ गया.
उसके द्वारा की गयी आपूर्ति का सबसे बड़ा हिस्सा फर्जी था. फर्जी आपूर्ति के लिए सिर्फ बिल बनाया जाता था और उस पर निकासी की जाती थी. पशुपालन विभाग में की गयी आपूर्ति के बदले उसे करीब 95 करोड़ रुपये मिले थे. फर्जी बिल पर की गयी निकासी का 80 प्रतिशत सिन्हा या उनके द्वारा बताये गये अधिकारियों को दे दिया जाता था.
उसने एसबी सिन्हा, केएम प्रसाद सहित अन्य अधिकारियों को करोड़ों रुपये दिये. इससे वह श्याम बिहारी सिन्हा का विश्वासपात्र बन गया.
वर्ष 1992 में आयकर विभाग की अनुसंधान शाखा द्वारा सप्लायरों और अधिकारियों के ठिकानों पर छापा मारे जाने के दौरान सिन्हा ने उसे शशि कुमार सिंह के घर पर बुलाया. एसबी सिन्हा के निर्देश पर डॉक्टर सिंह के घर सूटकेस में रखे गये छह करोड़ रुपये अपने साथ कोलकाता ले गया और अपने कारखाने के गोदाम में रख दिया. इसके बाद सिन्हा का विश्वास और बढ़ गया और वह ज्यादा से ज्यादा पैसा उसके पास रखने लगे. एसबी सिन्हा अपना पैसा विजय मलिक, एमएस बेदी, त्रिपुरारी मोहन प्रसाद और मोहम्मद सईद के पास भी रखते थे.
एसबी सिन्हा के जो पैसे उसके पास रखे गये थे उसमें से सिन्हा के निर्देश पर उनके पारिवारिक सदस्यों के नाम 1.40 करोड़ रुपये का गोल्ड बांड खरीदा. तीन शेल कंपनियों के जरिये 8.5 करोड़ रुपये ब्लैक से व्हाइट किया. आयकर छापे के बाद पैदा हुई परेशानी से निबटने के लिए 15 लाख खर्च कर रांची में आयकर अधिकारी एसी चौधरी की पोस्टिंग करायी गयी.
इसके बाद असेसमेंट में राहत मिली. दिसंबर 1992 में सिन्हा के पोते की छठी थी. उनके निर्देश पर वह कोलकाता से 1.5 करोड़ रुपये लेकर रांची आया. इसे उसने कांके रोड स्थित घर में रखा. घर में डकैती हो गयी. डकैत यह रकम ले गये. डकैती के सिलसिले में दर्ज प्राथमिकी में इतनी बड़ी राशि का उल्लेख नहीं किया गया.
एसबी सिन्हा के करीब होने से वह उसे सब बात बताया करते थे. सिन्हा ने बताया था कि फर्जी निकासी की राशि में से 30 प्रतिशत पशुपालन विभाग के डीडीओ के बीच बांटी जाती थी. ट्रेजरी में पांच प्रतिशत, पटना बजट शाखा में पांच प्रतिशत, क्षेत्रीय निदेशक के कार्यालय में पांच प्रतिशत खर्च किया जाता था. नेताओं व अधिकारियों की सेवा के लिए पांच प्रतिशत रखा जाता था.
30 प्रतिशत राशि में से सिन्हा और केएम प्रसाद आपस में बराबर बांटते थे. जरूरत पड़ने पर दोनों अपने हिस्से की राशि में से भी संरक्षण देनेवाले नेताओं और अधिकारियों पर खर्च करते थे. चांडक ने बयान में कहा कि सिन्हा उसे बताते थे कि लालू से उनका बढ़िया संबंध है.
वह राणा के माध्यम से समय-समय पर उन्हें पैसा देते थे. विधानमंडल के नेता के चुनाव के समय सिन्हा पटना के एसके पुरी स्थित किराये के मकान में ठहरे थे. चुनाव के लिए विधायकों को मैनेज करने के लिए पांच लाख दिया गया था. जून 1992 में सिन्हा ने उसे एक करोड़ रुपये लाने का निर्देश दिया. वह एक करोड़ रुपये कोलकाता से लेकर पटना पहुंचा.
वहां से सिन्हा और केएम प्रसाद के साथ दिल्ली गया. होटल हयात रिजेंसी में ठहरे. वहां आरके राणा ने रुपयों से भरा सूटकेस ले लिया. रात में नौ बजे बिहार भवन से फोन आया. सिन्हा ने बताया कि लालू का फोन है.
इसके बाद वह बिहार भवन जाने कि बात कह कर चले गये और रात 11 बजे होटल लौटे. जनवरी 1996 में सिन्हा को सूचना दी गयी कि लालू पशुपालन विभाग की अनियमितताओं के सिलसिले में जांच का आदेश देने जा रहे हैं. इस सूचना के बाद सिन्हा पटना पहुंचे. राणा के आवास पर बैठक हुई. तय हुआ कि जांच का आदेश वर्ष 1995-96 के लिए दिया जायेगा. इसके लिए 10 करोड़ में सौदा हुआ. इस फैसले से सिन्हा खुश हुए. उन्हें लगा कि वह 1994 में रिटायर हो गये हैं. इसलिए उन्हें कुछ नहीं होगा. पर वह भी इस घोटाले में अभियुक्त बनाये गये. एसबी सिन्हा ने बताया था कि जगन्नाथ मिश्र को भी 50 लाख दिये गये हैं. लालू प्रसाद को कुल करीब 55-60 करोड़ रुपये दिये गये हैं.
कंपनियों के उत्पादन से ज्यादा दवाइयों की खरीद
रांची : चाईबासा के पशुपालन पदाधिकारी ने पशुओं के लिए कंपनियों द्वारा बनायी गयी दवाइयों से अधिक की खरीद कर ली. सीबीआइ द्वारा पशुओं के नाम पर दवाइयों की खरीद से संबंधित ब्योरे और दवा बनानेवाली कंपनियों से किये गये पत्राचार से इस बात का खुलासा हुआ. पशुपालन विभाग में सक्रिय 34 आपूर्तिकर्ताओं ने इन दवाइयों की कागजी आपूर्ति दिखायी और 7.39 करोड़ का भुगतान लिया.
मामले की जांच के दौरान पाया गया कि जिला पशुपालन पदाधिकारी ने पशुओं के लिए दवाइयों का आपूर्ति आदेश जारी किया. इसके आलोक में आपूर्तिकर्ताओं ने आपूर्ति का फर्जी बिल दिया. सक्षम अधिकारियों ने इस आपूर्ति को सत्यापित किया और गोदाम में इसकी इंट्री और खर्च दिखायी. दवाइयों की आपूर्ति के सिलसिले में संबंधित कंपनियों से सीबीआइ ने पत्राचार किया.
सीबीआइ ने निर्माता कंपनियों से आपूर्ति की गयी दवाई के उत्पादन और बिक्री से संबंधित ब्योरा मांगा. कंपनियों द्वारा इस सिलसिले में उपलब्ध कराये गये ब्योरे के विश्लेषण के बाद यह पाया गया कि आपूर्ति दिखायी गयी दवाइयों में से कुछ का उत्पादन ही नहीं हुआ. कुछ मामले ऐसे भी मिले जिसमें उत्पादन से ज्यादा की आपूर्ति सिर्फ इसी जिले में दिखायी गयी थी.
जबकि अनेक मामले एेसे मिले जिसमें कंपनी और थोक व्यापारियों ने आपूर्तिकर्ताओं से दवाइयां बेचने की घटना से भी इनकार किया. जांच में पाया गया कि 34 आपूर्तिकर्ताओं द्वारा की गयी फर्जी आपूर्ति के बदले जिला पशुपालन पदाधिकारी ने आपूर्तिकर्ताओं को भुगतान किया.
किसने, कितने की सप्लाइ की (लाख में)
सप्लायरराशि
त्रिपुरारी मोहन प्रसाद94.24
सुनील कुमार सिन्हा35.86
सुशील कुमार6.05
विमला शर्मा 0.61
शरद कुमार 40.01
अनिता प्रसाद9.30
निर्मला प्रसाद 9.30
सिद्धार्थ कुमार9.30
फूल सिंह43.58
सुशील कुमार झा 43.58
ज्योति कुमार झा27.01
रामअवतार शर्मा39.99
प्रमोद कुमार जायसवाल59.92
दयानंद कश्यप29.94
राम नंदन सिंह24.90
बीपी सिन्हा 24.95
शैलेश प्रसाद सिंह20.50
समित वालिया14.42
प्रकाश कुमार लाल4.99
डीके राय4.04
चंचला सिन्हा3.55
सुभाष देव3.44
सुदेव राणा1.99
रंजीत कुमार मिश्रा24.78
डॉ टीएम प्रसाद9.62
रवि सिन्हा9.75
एसएन सिन्हा39.97
सीमा कुमार 34.31
डॉ एके वर्मा101.40
एमएस बेदी12.91
मधु मेहता9.90
हरीश कुमार9.90
विमल कुमार अग्रवाल7.45
घोटाले की रकम में 80 प्रतिशत हिस्सा अफसरों का
रांची :चारा घोटाले की रकम में 80 प्रतिशत हिस्सा अफसरों को मिलता था. घोटाले की जांच के दौरान अभियुक्तों से की गयी पूछताछ के बाद सीबीआइ ने यह नतीजा निकाला था. चारा घोटाले से जुड़े मामलों की जांच के दौरान सीबीआइ ने यह पाया था कि सुनियोजित साजिश के तहत ट्रेजरी से निकाली गयी रकम का बंटवारा 80:20 के अनुपात में होता था. 20 प्रतिशत राशि सप्लायरों के बीच बांटी जाती थी और 80 प्रतिशत हिस्सा अफसर लेते थे. जांच में पाया गया कि पशुपालन विभाग के अधिकारियों द्वारा फर्जी सप्लाइ के लिए आपूर्ति आदेश दिया जाता था.
जिस आपूर्तिकर्ता को जितनी राशि का आपूर्ति आदेश मिलता था वह उतनी राशि की दवा, चारा आदि का फर्जी बिल जमा करता था. इस बिल के सहारे जितनी राशि ट्रेजरी से निकलती थी. वह नियमानुसार उसके खाते में जमा होती थी. इसके बाद सप्लायर इस राशि में से 20 प्रतिशत रख कर 80 प्रतिशत राशि आपूर्ति आदेश देनेवाले विभाग के पदाधिकारी के पास जमा कर देता था. इसके बाद पशुपालन विभाग के अधिकारी इसे आपस में बांटते थे. अधिकारियों को मिली राशि का एक हिस्सा उन्हें संरक्षण देनेवाले राजनेताओं और ब्यूरोक्रेटस को सुख सुविधा उपलब्ध कराने पर खर्च किया जाता था.
इसी राशि से राजनेताओं के लिए हवाई टिकट, होटल बिल आदि का भुगतान किया जाता था. इसके अलावा पशुपालन माफिया को संरक्षण देनेवालों को बतौर रिश्वत दी जाती थी. किसी अधिकारी का तबादला रोकने या उसके विरुद्ध मिली शिकायतों की जांच नहीं करने के नाम पर नकद राशि का भुगतान किया जाता था.
गोदाम की क्षमता से 356 गुना अधिक की खरीद
रांची : चाईबासा जिले में पशुओं की देखभाल के नाम पर सिर्फ एक साल में गोदाम की क्षमता के मुकाबले 356 गुना सामग्रियों की खरीद की गयी. पशुपालन विभाग के अधिकारियों द्वारा की गयी यह खरीद जरूरत के मुकाबले 88 गुना अधिक था. वित्तीय वर्ष 1992-93 के दौरान चाईबासा पशुपालन विभाग द्वारा की गयी फर्जी खरीद के मामलों की जांच में इस बात की जानकारी मिली.
सीबीआइ ने घोटाले की कांड संख्या आरसी 68ए/96 की जांच में पाया कि चाईबासा के तत्कालीन जिला पशुपालन पदाधिकारी ने अन्य सामग्रियों के अलावा 2167 क्विंटल सरसों तेल की भी खरीद की थी.
सीबीआइ ने जांच के दौरान जिला पशुपालन पदाधिकारी चाईबासा के अधीन पशुओं के लिए आवश्यक चारा, दवा आदि की गणना की. इसमें पाया गया कि पशुओं के लिए एक साल में कुल 1000-1000 क्विंटल पीली मकई और पुआल की जरूरत थी. पर इसके मुकाबले 2590 क्विंटल पुआल और 6,69,131 क्विंटल पीली मकई की कागजी खरीद दिखायी गयी. यानी जरूरत के मुकाबले 669 गुना अधिक पीली मकई की खरीद दिखायी गयी.
इसी तरह ग्राउंड नट केक की खरीद भी जरूरत के मुकाबले 56 गुना अधिक दिखायी गयी. इसी तरह गुड़ की खरीद भी जरूरत के मुकाबले 29 गुना अधिक दिखा कर ट्रेजरी से पैसों की निकासी की गयी. सीबीआइ ने जांच में पाया कि एक साल में चाईबासा पशुपालन अधिकारी के अधीन पशुओं के लिए विभिन्न प्रकार की सामग्रियों की कुल जरूरत 9396 क्विंटल थी. इसके मुकाबले कुल 8,34,591 क्विंटल सामग्रियों की खरीद दिखायी गयी.
यह वास्तविक जरूरत के मुकाबले 88 गुना अधिक था. जांच के दौरान पाया गया कि जिला पशुपालन पदाधिकारी द्वारा खरीदी गयी सामग्रियों के लिए चाईबासा और सरायकेला में कुल दो गोदाम थे. इन दोनों गोदामों की क्षमता सिर्फ 3242 क्विंटल की थी. पर जिला पशुपालन पदाधिकारी ने जितनी सामग्रियों की खरीद की थी वह गोदाम की क्षमता का 356 गुना था.
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