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झारखंड में 38 प्रतिशत लड़कियों का होता है बाल विवाह : सर्वे

ट्रैफिकिंग और अनीमिया जैसे अभिशाप से पहले ही जूझ रहे राज्य झारखंड में बाल विवाह जैसी समस्या को लेकर चौंकाने वाले आंक़ड़ें सामने आये हैं. नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के मुताबिक झारखंड में 38 प्रतिशत लड़कियों का बाल विवाह होता है. बाल विवाह को लेकर सेव द चिल्ड्रेन एंड ऑक्सफेम ने भी रिपोर्ट जारी की […]

ट्रैफिकिंग और अनीमिया जैसे अभिशाप से पहले ही जूझ रहे राज्य झारखंड में बाल विवाह जैसी समस्या को लेकर चौंकाने वाले आंक़ड़ें सामने आये हैं. नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के मुताबिक झारखंड में 38 प्रतिशत लड़कियों का बाल विवाह होता है. बाल विवाह को लेकर सेव द चिल्ड्रेन एंड ऑक्सफेम ने भी रिपोर्ट जारी की है. रिपोर्ट में देश के चार राज्यों के नौ जिलों का अध्ययन किया गया है. हालांकि बाल विवाह की दर में कमी आयी है लेकिन इसकी गति बहुत धीमी है.

झारखंड के बाद बिहार और उड़ीसा की स्थिति भी भयावह है. सेव द चिल्ड्रेन ऑक्सफेम इंटरनेशनल रिपोर्ट ने 2,892 लड़कियों का सैंपल लेकर अध्ययन किया है.झारखंड से दुमका व देवघर दो जिलों का सैंपल लिया गया है.सैंपल द्वारा जारी आंकड़े के मुताबिक झारखंड 12-19 साल की 26 प्रतिशत लड़कियां शादी कर अपने पति के साथ रह रही है. झारखंड और बिहार में लड़कियों की शादी की औसत आयु 15 साल है. ओड़िशा में यह औसत आयु 17 साल की है. गौरतलब है कि कानून के मुताबिक भारत में लड़कियों की शादी की न्यूनतम आयु 18 साल रखी गयी है. वहीं लड़कों के लिए 21 साल का उम्र रखा गया है. इसके बावजूद भी बाल विवाह की भयावह स्थिति कायम है.
2014 में जारी आंकड़ों के मुताबिक दुनिया का दो – तिहाई बाल विवाह भारत में होता है. जो किसी भी देश की तुलना में सबसे ज्यादा है. बाल विवाह की वजह से लड़कियों को घरेलू हिंसा और दुर्व्यवहार का शिकार होती है. बाल विवाह की वजह से कई लड़कियां कम उम्र में ही गर्भवती हो जाती हैं. कम उम्र में गर्भधारण से अनीमिया, मलेरिया, एचआईवी और यौन संक्रमण की बीमारियों का खतरा बना रहता है.
झारखंड में लड़कियों का स्कूल छोड़ने का क्या है वजह
झारखंड में स्कूल ड्रॉप आउट रेट के पीछे का मुख्य वजह कम उम्र में शादी को बताया गया है. 31 प्रतिशत लड़कियां इसलिए स्कूल छोड़ देती है क्योंकि उनकी शादी हो जाती है. वहीं बिहार में 36 प्रतिशत लड़कियां घरेलू कार्य की वजह से स्कूल छोड़ती है. बच्चियों के स्वास्थय शिक्षा की हालत भी बेहद चिंताजनक है. राज्य में मात्र 29 प्रतिशत लड़कियों को मासिक धर्म की शुरुआत से पहले इस संदर्भ में कोई जानकारी रहती है. हालांकि मोबाइल की उपलब्धता को लेकर अच्छे आंकड़े हैं. 77 से 78 प्रतिशत लड़कियों के पास या तो मोबाइल है या फिर इस्तेमाल करते हैं.

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