!!विवेक चंद्र!!
रांची : डीजीपी डीके पांडेय के आदेश पर बकोरिया कांड की जांच धीमी नहीं करने के कारण सीआइडी के एडीजी पद से एमवी राव का तबादला कर दिया गया था. उनके अलावा जिन दूसरे अधिकारियों ने भी बकाेरिया कांड में दर्ज प्राथमिकी पर मतभेद जताया, उनका तबादला कर दिया गया. एडीजी एमवी राव ने अपने तबादले के विरोध में गृह सचिव काे एक पत्र लिखा है. पत्र में इन तथ्यों का भी उल्लेख किया है. पत्र की प्रतिलिपि झारखंड के राज्यपाल और मुख्यमंत्री के अलावा केंद्रीय गृह मंत्रालय को भी भेजी गयी है.
पत्र में एमवी राव ने लिखा है कि बकोरिया कांड में डीजीपी ने जांच धीमी करने का निर्देश दिया था. डीजीपी ने कहा था कि न्यायालय के किसी आदेश से चिंतित होने की कोई जरूरत नहीं है. श्री राव ने लिखा है कि उन्होंने डीजीपी के इस आदेश का विरोध करते हुए जांच की गति सुस्त करने, साक्ष्यों को मिटाने और फर्जी साक्ष्य बनाने से इनकार कर दिया, जिसके तुरंत बाद उनका तबादला सीआइडी से नयी दिल्ली स्थित ओएसडी कैंप में कर दिया गया, जबकि यह पद स्वीकृत भी नहीं है. अब तक किसी भी अफसर को बिना उसकी सहमति के इस पद पर पदस्थापित नहीं किया गया है. पत्र में यह भी कहा गया है कि बकोरिया कांड की जांच सही दिशा में ले जानेवाले आैर दर्ज एफआइआर से मतभेद रखने का साहस करनेवाले अफसरों का पहले भी तबादला किया गया है. यह एक बड़े अपराध को दबाने और अपराध में शामिल अफसरों को बचाने की साजिश है.
एडीजी श्री राव ने अपने पत्र में लिखा है कि सीआइडी में 150 से अधिक मामले जांच के लिये लंबित हैं. इनमें मुठभेड़ के भी कई मामले शामिल हैं. सीआइडी एडीजी के रूप में उन्होंने मामलों की समीक्षा करके जांच के लिए जरूरी निर्देश जारी किये थे. इस बीच हाईकोर्ट ने बकोरिया की जांच में तेजी लाने और पलामू के तत्कालीन डीआइजी हेमंत टोप्पो और पलामू सदर थाना के तत्कालीन प्रभारी हरीश पाठक का बयान दर्ज करने का आदेश सीआइडी को दिया. दोनों अफसरों का बयान दर्ज किया गया. अपने बयान में दोनों अफसरों ने बकोरिया में हुई पुलिस मुठभेड़ को गलत बताया. कोर्ट के आदेश पर सीआइडी के एसपी सुनील भास्कर और सुपरवाइजिंग ऑफिसर आरके धान की उपस्थिति में मामले की भी समीक्षा की गयी, जिसमें पता चला कि मामला दर्ज किये जाने के बाद पिछले ढाई वर्षों में जांच आगे नहीं बढ़ सकी है.
चार की अब तक शिनाख्त नहीं
आठ जून, 2015 की रात पलामू के सतबरवा थाना क्षेत्र के बकोरिया में नक्सली डॉ अनुराग और 11 लोगों को पुलिस ने कथित मुठभेड़ में मार गिराया था. उनमें से अभी तक चार की पहचान नहीं हुई है. मरनेवालों में दो नाबालिग भी थे. पुलिस के मुठभेड़ की कहानी शुरू से ही विवादों में घिरी हुई है. मारे गये लोगों में से केवल एक डॉ अनुराग के ही नक्सली होने के सबूत पुलिस के पास उपलब्ध थे. शेष लोगों का नक्सली गतिविधियों से संबद्ध रहने का कोई रिकार्ड नहीं है.
ढाई साल में बदले गये हैं आधा दर्जन अफसर
कोर्ट के आदेश पर बकोरिया कांड की जांच में तेजी लानेवाले सीआइडी के एडीजी एमवी राव का तबादला एक ही महीने में कर दिया गया था. श्री राव 13 नवंबर 2017 एडीजी, सीआइडी के रूप में पदस्थापित किये गये थे. फिर 13 दिसंबर को सरकार ने उन्हें पद से हटा दिया. इससे पहले कथित मुठभेड़ के तुरंत बाद भी कई अफसरों के तबादले कर दिये गये थे. सीआइडी के तत्कालीन एडीजी रेजी डुंगडुंग व पलामू के तत्कालीन डीआइजी हेमंत टोप्पो का तबादला किया गया. उनके बाद सीआइडी एडीजी बने अजय भटनागर व अजय कुमार सिंह के कार्यकाल में मामले की जांच सुस्त हो गयी. राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने भी इस पर टिप्पणी की थी. मामले में रुचि लेने की वजह से रांची जोन की तत्कालीन आइजी सुमन गुप्ता का भी अचानक तबादला कर दिया गया था. पलामू सदर थाना के तत्कालीन प्रभारी हरीश पाठक को पुराने मामले में निलंबित कर दिया गया था.
बकोरिया कांड के मुख्य बिंदु
आठ जून, 2015 को पलामू के सतबरवा थाना क्षेत्र के बकोरिया में पुलिस के साथ कथित मुठभेड़ में कुल 12 लोग मारे गये थे. उनमें से एक डॉ आरके उर्फ अनुराग के नक्सली होने का रिकॉर्ड पुलिस के पास उपलब्ध था.
घटना के ढाई साल बीतने के बाद भी मामले की जांच कर रही सीआइडी ने न तो तथ्यों की जांच की, न ही मृतक के परिजनों और घटना के समय पदस्थापित पुलिस अफसरों का बयान दर्ज किया.
पलामू सदर थाना के तत्कालीन प्रभारी हरीश पाठक ने बयान दिया है कि पलामू के एसपी ने उन्हें घटना का वादी बनने के लिए कहा. इनकार करने पर सस्पेंड करने की धमकी दी.
हरीश पाठक ने अपने बयान में यह भी कहा है कि पोस्टमार्टम हाउस में चौकीदार ने तौलिया में खून लगाया और कथित मुठभेड़ के बाद मिले हथियारों की मरम्मत डीएसपी कार्यालय में की गयी. यही कारण है कि घटना के 25 दिन बाद जब्त हथियार को कोर्ट में पेश किया गया.
मारे गये 12 लोगों में दो नाबालिग थे. चार की पहचान अभी तक नहीं हुई है. आठ मृतकों के संबंध में नक्सली होने का कोई रिकॉर्ड पुलिस के पास नहीं है.
मामले की जांच किये बिना ही डीजीपी डीके पांडेय ने कथित मुठभेड़ में शामिल जवानों व अफसरों के बीच लाखों रुपये इनाम के रूप में बांट दिये.
मामले की जांच का प्रोग्रेस रिपोर्ट एसटीएफ के तत्कालीन आइजी आरके धान ने दिया है. उन्होंने घटना के बाद घटनास्थल पर गये सभी अफसरों का बयान दर्ज करने का निर्देश अनुसंधानक को दिया है. उल्लेखनीय है कि घटना के बाद डीजीपी डीके पांडेय, तत्कालीन एडीजी अभियान एसएन प्रधान, एडीजी स्पेशल ब्रांच घटनास्थल पर गये थे.
आइजी आरके धान ने घटना के समय पलामू में पदस्थापित पुलिस अफसरों के मोबाइल का लोकेशन हासिल करने का भी निर्देश दिया है.