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पुण्यतिथि आज : मृतप्राय आंदोलन की कमान थामी थी न्यायमूर्ति शाहदेव ने
चाहते तो अहम पद पा सकते थे, लेकिन अपनी माटी के लिए आंदोलन करना, गिरफ्तार होना ज्यादा महत्वपूर्ण समझा प्रो डॉ त्रिवेणी नाथ साहू न्यायमूर्ति एलपीएन शाहदेव ने झारखंड आंदोलन में उस समय जान फूंकी थी जिस समय आंदोलन मृतप्राय हो गया था. केंद्र की एनडीए सरकार ने अलग राज्य संबंधी विधेयक को लाने की […]
चाहते तो अहम पद पा सकते थे, लेकिन अपनी माटी के लिए आंदोलन करना, गिरफ्तार होना ज्यादा महत्वपूर्ण समझा
प्रो डॉ त्रिवेणी नाथ साहू
न्यायमूर्ति एलपीएन शाहदेव ने झारखंड आंदोलन में उस समय जान फूंकी थी जिस समय आंदोलन मृतप्राय हो गया था. केंद्र की एनडीए सरकार ने अलग राज्य संबंधी विधेयक को लाने की घोषणा की थी और लालू प्रसाद के नेतृत्व में राजद अलग राज देने को तैयार नहीं था.
लालू प्रसाद ने, तो बाकायदा घोषणा कर रखी थी कि अलग राज्य उनकी लाश पर बनेगा. इसके विरोध में श्री शाहदेव की अगुवाई में 16 राजनीतिक दलों ने संयुक्त रूप से लालू प्रसाद का विरोध करने के लिए सर्वदलीय अलग राज्य निर्माण समिति का गठन किया था. न्यायमूर्ति शाहदेव को इस समिति का संयोजक बनाया गया था.आजसू , कांग्रेस, झारखंड मुक्ति मोर्चा, भाजपा सरीखे सभी बड़े दल इस समिति में शामिल थे.
सर्वदलीय अलग राज्य निर्माण समिति ने झारखंड में आंदोलन की कमान को संभाला. 21 सितंबर 1998 को अलग राज्य संबंधित बिल पर बिहार विधानसभा में राय जानने के लिए वोटिंग होनी थी. केंद्र सरकार इस राय को नहीं मानने के लिए भी स्वतंत्र था, लेकिन सर्वदलीय समिति के नेताओं ने बैठक कर ये तय किया कि 21 सितंबर 1998 को एक बड़े झारखंड बंद का आयोजन किया जाये. बिहार विधानसभा में राजद के विधायकों की संख्या से यह निश्चित था कि अलग राज्य के विधेयक पर वहां नकारात्मक वोटिंग होगी.
लेकिन न्यायमूर्ति शाहदेव का यह मानना था कि अगर बंद जबर्दस्त सफल रहा, तो उससे केंद्र पर यह सीधा संदेश जाएगा कि झारखंड के तमाम लोग अलग राज्य चाहते हैं . 21 सितंबर 1998 को बंद का आह्वान हुआ. न्यायमूर्ति शाहदेव के नेतृत्व में रांची में भी आंदोलनकारी सड़कों पर उतरे. पूरे राज्य में अभूतपूर्व बंद हुआ. रांची के फिरायालाल चौक के पास समर्थकों का नेतृत्व करते हुए न्यायमूर्ति शाहदेव को तत्कालीन एसपी ने गिरफ्तार कर लिया और उन्हें कोतवाली थाने ले जाया गया. यह अपने तरह की यह पहली घटना होगी जिसमें उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश को किसी जन आंदोलन के दौरान पुलिस ने गिरफ्तार किया हो.
न्यायमूर्ति शाहदेव झारखंड के पहले मूल निवासी थे, जिन्हें उच्च न्यायालय के न्यायाधीश बनने का गौरव प्राप्त हुआ था. 1992 में उच्च न्यायालय के न्यायाधीश पद से सेवानिवृत्त होने के बाद न्यायमूर्ति शाहदेव अलग राज्य के आंदोलन के समर्थन में लगातार लेख लिखते थे और इनसे जुड़ी सभाओं में शिरकत करते थे. श्री शाहदेव ने अलग राज्य के आंदोलन को एक नयी दिशा दी थी. और अपनी बौद्धिक ऊर्जा से भी सींचा भी था.
अलग राज्य आंदोलन में उनके योगदान को कभी नहीं भुलाया जा सकता है. न्यायमूर्ति शाहदेव चाहते, तो सेवानिवृत्ति के बाद किसी आयोग के अध्यक्ष बन सकते थे. लेकिन उन्होंने अपनी माटी के लिए आंदोलन करना, गिरफ्तार होना ज्यादा महत्वपूर्ण समझा.
(लेखक ट्राइबल एवं रीजनल लैंग्वेज डिपार्टमेंट, रांची यूनिवर्सिटी में विभागाध्यक्ष हैं.)
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