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चारा घोटाला: आरके राणा खुद और लालू प्रसाद के नाम पर करते थे पैसे की उगाही

चारा घोटाला आरसी 64 ए/96 : सुनवाई के बाद जज ने अपने फैसले में लिखा रांची : चारा घोटाले में देवघर कोषागार से हुई फर्जी निकासी को लेकर सीबीआइ के विशेष न्यायाधीश शिवपाल सिंह की अदालत ने अपना फैसला सुना दिया है. उन्होंने अपने फैसले में लिखा है कि कोषागार से 89 लाख रुपये की […]

चारा घोटाला आरसी 64 ए/96 : सुनवाई के बाद जज ने अपने फैसले में लिखा
रांची : चारा घोटाले में देवघर कोषागार से हुई फर्जी निकासी को लेकर सीबीआइ के विशेष न्यायाधीश शिवपाल सिंह की अदालत ने अपना फैसला सुना दिया है. उन्होंने अपने फैसले में लिखा है कि कोषागार से 89 लाख रुपये की फर्जी निकासी में राजेंद्र प्रसाद शर्मा उर्फ राजा राम जोशी ने आपूर्ति की गयी सामग्री के लिए ट्रांसपोर्टर सर्टिफिकेट दिया था.
इसी के आधार पर देवघर ट्रेजरी से बिल पास किया गया था. जोशी ने ट्रांसपोर्ट के लिए ट्रकों के कई नंबर का उल्लेख किया था. जांच एजेंसी ने जब इन नंबरों की पड़ताल की, तो खुलासा हुआ कि ये नंबर वास्तव में स्कूटर, मोटरसाइकिल और एंबेसडर कार के थे. राजा राम जोशी ने ट्रकाें का काल्पनिक नंबर दिया था.
कोर्ट ने सजायाफ्ता डॉ आरके राणा पर अपने फैसले में लिखा है कि उन्हें महंगे होटलों में ठहरने का शौक था. आरके राणा जब भी कोलकाता, नयी दिल्ली अौर अन्य स्थानों पर जाते थे, तो महंगे होटलों में ठहरते थे. कोलकाता में डॉ आरके राणा होटल ताज बंगाल में ठहरे थे. इसका पेमेंट दीपेश चंडोक ने किया था.
आरके राणा खुद अौर लालू प्रसाद के नाम पर उगाही करते थे. अदालत ने अपने फैसले में इस बात का भी उल्लेख किया है कि पीएसी के तत्कालीन चेयरमैन जगदीश शर्मा ने 24 जून 1994 को पत्र लिख कर घोटाले की जांच रोकने को कहा था. डॉ एसबी चौधरी ने उस समय जांच पूरी कर ली थी अौर वह इसकी रिपोर्ट बना रहे थे. इनकी वजह से सरकारी राजस्व का नुकसान हुआ.
राजा राम जोशी ने चारा सप्लाई के लिए स्कूटर, बाइक व कार का दिया था नंबर
कोर्ट के फैसले में कौन, कैसे दोषी
फूलचंद सिंह : जनवरी 1992 से फरवरी 1994 तक वित्त सचिव थे. इस दौरान वह राज्य के वित्तीय मामलों के प्रबंधन में जान-बूझकर लापरवाह रहे.
बेक जूलियस : बेक जूलियस आठ मई 1994 से जून 1997 तक पशुपालन सचिव के पद पर रहे. जाली ड्राफ्ट के जरिये पशुपालन विभाग से हो रही अवैध निकासी पर एमएलसी नीलांबर चौधरी के सवालों का उन्होंने गलत जवाब दिया था. उन्होंने मामले के सह अभियुक्तों के पैसों से हवाई यात्रा भी की थी.
महेश प्रसाद : अक्तूबर 1992 से सात मई 1994 तक पशुपालन सचिव रहे. घोटाले से संबंधित आपराधिक साजिश में महेश प्रसाद की सक्रिय भूमिका रही.
कृष्ण कुमार प्रसाद : देवघर के चलंत पशुपालन अधिकारी रहते इन्होंने सप्लायरों को लाभ पहुंचाया. सप्लायरों ने पशुअों को ढोने के लिए जिन वाहनों के नंबर दिये थे, वे तेल टैंकर्स, स्कूटर, एंबेसडर कार के साबित हुए. बाद में इन्हीं नंबरों के आधार पर जाली वाउचर से पेमेंट का भुगतान लिया गया. इसमें कृष्ण कुमार ने सप्लायरों का सहयोग किया था.
सुनील कुमार सिन्हा : इन्होंने फर्जी आवंटन लेटर के आधार पर बिल पास कराये. बिना दवाअों की आपूर्ति ही जाली बिल के आधार पर राशि वसूली अौर सरकार को चूना लगाया.
सुशील कुमार : कागजातों पर नकली फर्म बनाया अौर जाली आवंटन पत्र तैयार किया. सुशील के फर्म समर्पण वेटनरी इंटरप्राइज ने बिना दवाअों की सप्लाई के ही बिल पास कराया.
ज्योति कुमार झा : नकली फर्म बनाया. पशुअों की दवाओं की सप्लाई के लिए फर्जी वाउचर बनाने में संलिप्तता पायी गयी है. आपराधिक षड़यंत्र में राजनेताअों, वित्त विभाग के अफसरों, ट्रेजरी के पदाधिकारियों के साथ शामिल रहे. इससे सरकार को लाखों का नुकसान पहुंचा.
गोपीनाथ दास : राधा फार्मेंसी नाम की नकली फर्म बनायी, जो सिर्फ पेपर पर थी. दवा सप्लाई करने से संबंधित जाली वाउचर बनाया अौर बदले में पैसे वसूले.
संजय कुमार अग्रवाल : संजय ने अपने ही नाम से फर्म बना कर फर्जी वाउचर के जरिये पैसों की निकासी की. वाउचर में जिन वाहनों के नंबर लिखे थे, वे भी फर्जी थे.
सुनील गांधी : मगध डिस्ट्रीब्यूटर्स पटना के प्रोपराइटर सुनील गांधी ने जाली आवंटन पत्र अौर बिल के जरिये तीन लाख 98 हजार की राशि वसूली.
जांच पदाधिकारी की गवाही में स्पष्ट हुआ कि इस फर्म से दवाअों की आपूर्ति नहीं की गयी थी.सुबीर कुमार भट्टाचार्य : देवघर कोषागार से चार लाख 73 हजार 400 रुपये का आवंटन को स्वीकृति मिली थी. पर आवंटन 89 लाख 27 हजार के लगभग हुई.
इसके लिए देवघर के ट्रेजरी ऑफिसर रहते इन्होंने फर्जी आवंटन लेटर का भी इस्तेमाल किया.त्रिपुरारि मोहन प्रसाद : आपूर्तिकर्ता ने फर्जी वाउचर के जरिये लाखों रुपयों की निकासी की. श्याम बिहारी सिन्हा अौर अन्य अभियुक्तों के साथ करीबी संबंध थे.

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