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झारखंड : दृष्टिहीनता को दी मात, हौसले की रोशनी से संवार ली जिंदगी
बुलंद इरादे की कहानी जिन्होंने विकलांगता को नहीं बनने दिया अभिशाप राज्य से लेकर राष्ट्रीय स्तर पर बनायी पहचान मनोज लकड़ा रांची : जब सारा संसार कहता है कि हार मान लो, तो उम्मीद आपसे कहती है कि एक बार और कोशिश करो़ जब जिंदगी आपको राेने के लिए सौ वजहें दे, तो आप दिखा […]
बुलंद इरादे की कहानी
जिन्होंने विकलांगता को नहीं बनने दिया अभिशाप
राज्य से लेकर राष्ट्रीय स्तर पर बनायी पहचान
मनोज लकड़ा
रांची : जब सारा संसार कहता है कि हार मान लो, तो उम्मीद आपसे कहती है कि एक बार और कोशिश करो़ जब जिंदगी आपको राेने के लिए सौ वजहें दे, तो आप दिखा दीजिए कि हंसने के लिए आपके पास हजार वजहें हैं. हमारे आसपास ऐसे कई लोग हैं, जो जिंदगी की महत्वपूर्ण नेमत आंखों से वंचित हैं और अपने हौसले से इन कथनों को साकार कर रहे हैं. ब्रेल लिपि के अविष्कारक लुई ब्रेल (4 जनवरी 1809- 6 जनवरी 1852) का कल 208वां जन्म दिन है़ उन्होंने 1829 में दृष्टिबाधितों के लिए छह बिंदुओं पर आधारित लिपि बनायी, जो ‘ब्रेल’ नाम से प्रसद्धि है़ उनका यह अविष्कार कई लोगों के लिए सपना साकार करने का जरिया बना है़
कौन हैं लुई ब्रेल : फ्रांस में जन्मे लुई ब्रेल (4 जनवरी 1809- 6 जनवरी 1852) का कल 208वां जन्मदिवस है़ सामान्य दृष्टि वाला वह बच्चा आठ साल की उम्र में पूरी तरह दृष्टिहीन हो गया था़
रेव्ह वैलेंटाइन की सहायता से उसे वर्ष 1819 में रायल इंस्टीट्यूट फाॅर द ब्लाइंड्स में दाखिला मिला़ वहां उसे जानकारी मिली कि शाही सेना के सेवानिवृत्त कैप्टन चार्ल्स बारबर ने सेना के लिए ऐसी कूट लिपि विकसित की है, जिसकी सहायता से सैनिक अंधेरे में भी संदेशों को छू कर पढ़ सकते थे़ लुई ने इसमें दृष्टिहीनों के लिए पढ़ने की संभावना देखी़ रेव्ह वैलेंटाइन ने लुई की कैप्टन से मुलाकात की व्यवस्था करायी़ लुई ने कैप्टन की कूट लिपि में कुछ संशोधन सुझाये, जिसे उन्होंने स्वीकार किया़ लुई ब्रेल ने आठ वर्षों के अथक परिश्रम से इस लिपि में भी अनेक संशोधन किये और अंततः 1829 में छह बिंदुओं पर आधारित लिपि बनाने में सफल हुए, जो ‘ब्रेल’ नाम से प्रसद्धि हुई़
कॉलेज में लेक्चर की रिकॉर्डिंग कर की पढ़ाई
अंजू निर्मला खेस रेलवे में जूनियर क्लर्क हैं और धनबाद में पदस्थापित हैं. उन्होंने संत मिखाईल नेत्रहीन विद्यालय से स्कूली और लक्ष्मी बाई कॉलेज दिल्ली से आर्ट्स में ग्रेजुएशन किया़
स्कूल में तो ब्रेल से पढ़ायी की सुविधा थी, पर कॉलेज एक सामान्य विद्यार्थी की तरह ही जाना होता था़ वहां लेक्चर की रिकॉर्डिंग करती थीं, जिसे बार-बार सुन कर याद करती थीं. बीए करने के दो साल बाद ही उन्हें नौकरी मिल गयी़
विकलांगता छात्रवृत्ति बनी संबल
सुनीता कुमारी स्टेट बैंक ऑफ इंडिया लालपुर में क्लर्क हैं. पिछले साल मार्च में बैंक ज्वाइन किया है़ इससे पूर्व देवघर में पदस्थापित थीं. पुंदाग की सुनीता ने हॉस्टल में रह कर पूरी पढ़ाई की है़
कक्षा एक से आठ तक बरियातू स्थित ब्रजकिशोर नेत्रहीन विद्यालय और इसके बाद संत मिखाईल नेत्रहीन विद्यालय से अपनी स्कूल पढ़ायी पूरी की़ इसके बाद दिल्ली के लक्ष्मी बाई कॉलेज से ग्रेजुएशन और फिर इग्नू से एमए की पढ़ाई की़ उन्होंने अपनी पूरी पढ़ाई विकलांगता छात्रवृत्ति के जरिये की है़
ब्रेल लिपि ने संवारी प्रतिभा, बिता रहे हैं खुशहाल जीवन
बसंत राय व मंजुला राय पति-पत्नी हैं और दोनों दृष्टिबाधित हैं. दोनों ने ब्रेल लिपि से पढ़ाई की और आज अपनी चार बेटियों के साथ सम्मानपूर्वक जीवन व्यतीत कर रहे हैं. बसंत राय रांची के संत मिखाईल नेत्रहीन विद्यालय में शिक्षक हैं और सभी विषय पढ़ाते हैं, वहीं मंजुला राय सेंट्रल एक्साइज (जीएसटी), रांची में एडमिनिस्ट्रेटिव ऑफिसर के पद पर कार्यरत हैं. चारों बेटियां की दृष्टि सामान्य है और उन्हें अपने माता-पिता के संघर्ष व उपलब्धियों पर गर्व है़
और भी हैं सितारे
दृष्टिबाधित छात्र सिर्फ पढ़ाई में ही नहीं, खेलकूद व अन्य गतिविधियों में भी लगातार अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं. संत मिखाईल नेत्रहीन विद्यालय का गोलू कुमार 2016 की दृष्टिबाधितों की उस राष्ट्रीय क्रिकेट टीम में शामिल था, जिसने पाकिस्तान को शिकस्त दी थी़ उसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी शाबाशी दी़ स्कूल की प्राचार्या एमटीपी अग्रवाल ने बताया कि 1898 में स्थापित इस स्कूल के विद्यार्थियों ने कई राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्पर्धाओं में जीत दर्ज की है़
शॉटपुट, डिस्कस थ्रो, जेवलिन थ्रो में गोल्ड, सिल्वर व ब्रांज मेडल हासिल किये हैं. छात्र धीरज कुमार गुप्ता ने राष्ट्रीय स्तर के भजन रत्न प्रतियोगिता के फाइनल राऊंड में जगह बनायी, जिसमें सामान्य बच्चों ने हिस्सा लिया था़
इसी स्कूल की नेहा पांडेय व धीरज कुमार के गीत सुन कर मुख्यमंत्री रघुवर दास ने तीन दिसंबर के विकलांगता दिवस कार्यक्रम में उन्हें 51- 51 हजार रुपये के पुरस्कार देने की घोषणा की़ इस स्कूल के पूर्ववर्ती छात्र मोहित कुमार रांची विश्वविद्यालय में प्राध्यापक हैं. वहीं, विभिन्न बैंकों में लगभग 15 प्रोबेशनरी आॅफिसर्स भी कार्यरत हैं. ऐसे कई एक्स स्टूडेंट्स हैं, जो विभिन्न पदों पर कार्यरत हैं.
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