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झारखंड के सबसे बड़े अस्पताल रिम्स से एड्स पीड़ित मरीज को जूनियर डॉक्टरों ने किया बाहर, विवाद
रांची : बोकारो थर्मल से आये एचआइवी पीड़ित मरीज का रिम्स के जूनियर चिकित्सकों ने गुरुवार को इलाज करने से मना कर दिया. इतना ही नहीं, चिकित्सकों ने यह कह कर कि वार्ड में भर्ती अन्य मरीज के साथ चिकित्सक भी संक्रमित हो जायेंगे, उसे जबरन अस्पताल से निकाल दिया. मरीज दोपहर 3.30 बजे तक […]
रांची : बोकारो थर्मल से आये एचआइवी पीड़ित मरीज का रिम्स के जूनियर चिकित्सकों ने गुरुवार को इलाज करने से मना कर दिया. इतना ही नहीं, चिकित्सकों ने यह कह कर कि वार्ड में भर्ती अन्य मरीज के साथ चिकित्सक भी संक्रमित हो जायेंगे, उसे जबरन अस्पताल से निकाल दिया.
मरीज दोपहर 3.30 बजे तक रिम्स के बाहर पेड़ के नीचे बैठा रहा. उसकी हालत काफी नाजुक थी. उसका इलाज डॉ उमेश प्रसाद की यूनिट में चल रहा था. जब मरीज के परिजनों ने इसकी शिकायत रिम्स निदेशक से की, तो काफी देर बाद उक्त मरीज को दोबारा रिम्स में भर्ती कराया गया.
मरीज के भाई के मुताबिक, मरीज को 13 दिसंबर को रिम्स में भर्ती कराया गया था. गुरुवार की सुबह करीब 9.30 बजे जूनियर डॉक्टर वार्ड में पहुंचे और उसे बाहर जाने को कहा. तभी मरीज के परिजन ने कहा कि अभी स्थिति नाजुक है और खून भी चढ़ रहा है. अभी कैसे बाहर ले जायेंगे? इस पर डॉक्टरों ने कहा कि खून घर पर चढ़ा लीजियेगा. इसके बाद मरीज को बाहर निकाल दिया.
जब इस मामले की शिकायत रिम्स निदेशक से की गयी, तो थोड़ी देर बाद वरीय चिकित्सकों का दल मौके पर पहुंचा. इसके बाद मरीज को दोबारा भर्ती कराया गया. परिजनों ने दोषी चिकित्सकों के खिलाफ कार्रवाई की मांग रिम्स प्रबंधन से की है.
डॉक्टर बाहर ले जाने को कर रहे थे विवश : मरीज के भाई ने बताया कि 20 दिसंबर की रात से ही वार्ड में राउंड पर आ रहे डॉक्टर बाहर जाने काे विवश करने लगे थे. डॉक्टरों ने कहा कि रिम्स में एचआइवी मरीज का वार्ड में इलाज नहीं होता है.
एड्स कंट्रोल सोसाइटी मामले की जांच करेगी : झारखंड एड्स कंट्रोल सोसाइटी के सहायक परियोजना निदेशक भवेशानंद पोद्दार ने कहा कि जैसे ही इसकी सूचना मिली, तत्काल उन्होंने रिम्स निदेशक से बात की. रिम्स निदेशक ने बताया कि मरीज को भर्ती कर लिया गया है.
शुक्रवार को सोसाइटी की एक टीम रिम्स जाकर मरीज से मिलेगी और मामले की जांच करेगी. श्री पोद्दार ने कहा कि इसके पूर्व भी सभी अस्पतालों को एड्स कंट्रोल सोसाइटी की ओर से पत्र भेजा जा चुका है कि एचआइवी पीड़ित मरीजों को भर्ती करने में कोताही न बरतें.
अस्पताल या चिकित्सक किसी भी मरीज के इलाज से इंकार नहीं कर सकते हैं. यह उनके मौलिक अधिकारों का हनन है. अगर किसी मरीज को निकाला गया है तो यह गलत है. रफ एंड नेग्लीजेंस का केस चल सकता है. यह प्रोफेशनल मिस कंडक्ट का उदाहरण है.
अविनाश पांडेय, अधिवक्ता सिविल कोर्ट
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एचआइवी/एड्स से पीड़ित व्यक्ति से भेदभाव पर सजा व जुर्माने का प्रावधान
एचआइवी/एड्स से पीड़ित लोगों के साथ भेदभाव करने पर दोषी व्यक्ति को अधिकतम दो साल की जेल और एक लाख रुपये तक के जुर्माने की सजा हो सकती है. ‘एचआइवी और एड्स विधेयक 2014’ में एचआइवी/एड्स से पीड़ित व्यक्ति के साथ भेदभाव करनेवालों के खिलाफ शिकायतों की जांच के लिए एक औपचारिक तंत्र स्थापित करने और कानूनी जवाबदेही सुनिश्चित करने का प्रावधान किया गया है.
इस विधेयक में उन बातों को सूचीबद्ध किया गया है, जिनके आधार पर एचआइवी से संक्रमित लोगों और उनके साथ रह रहे लोगों के साथ भेदभाव करने पर प्रतिबंध लगाया गया है. इनमें रोजगार, शैक्षणिक संस्थानों, स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं, निवास के लिए या किराये पर दी गयी संपत्ति समेत अन्य के संबंध में अस्वीकृति, समाप्ति या अनुचित व्यवहार शामिल है.
मरीज को दोबारा भर्ती कराया गया है. इलाज कर रहे चिकित्सक ने एक सप्ताह तक वार्ड में भर्ती कर इलाज किया. दवा लिखकर छुट्टी दी गयी.
डॉ जेके मित्रा, प्रभारी अधीक्षक रिम्स
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