रांची : विकास मद के 3383.70 करोड़ रुपये सिविल डिपोजिट में जमा हैं. फंड लैप्स करने के डर से वित्तीय वर्ष के अंत में ट्रेजरी से पैसा निकाल कर सिविल डिपोजिट में जमा करने पर वित्त विभाग ने पाबंदी लगा रखी है. इसके बावजूद राज्य गठन के बाद से ही वित्तीय वर्ष के अंत में ट्रेजरी से पैसा निकाल कर सिविल डिपोजिट में जमा करने के मामलों में लगातार वृद्धि हो रही है.
जितने पैसे जमा किये गये, उससे कम निकाले गये : राज्य सरकार की ओर से तैयार आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2002-03 में सिविल डिपोजिट में विकास मद के सिर्फ 178.14 करोड़ जमा थे. इसके बाद हर साल लैप्स करने के डर से वित्तीय वर्ष के अंत में ट्रेजरी से पैसे निकाल कर सिविल डिपोजिट में जमा किये गये. पहले से जमा पैसों में थोड़ा ही निकाल कर खर्च किये गये. जितने पैसे जमा किये जाते रहे, उससे कम खर्च किये गये. इससे सिविल डिपोजिट में राशि बढ़ती गयी. 31 मार्च 2016 को जमा राशि 2002-03 के मुकाबले 18 गुना अधिक हो गयी.
2015-16 में 1818.44 करोड़ जमा : ट्रेजरी से 1000 करोड़ से अधिक राशि निकाल कर सिविल डिपोजिट में जमा करने की परंपरा 2008-09 से शुरू हुई. इस वर्ष 1319.46 रुपये ट्रेजरी से निकाल कर सिविल डिपोजिट में जमा किये गये थे. साथ ही पहले से जमा राशि में से 743.87 करोड़ रुपये निकाल कर खर्च किये गये थे. वित्तीय वर्ष 2012-13 के अंत में सबसे अधिक 1754.04 करोड़ रुपये ट्रेजरी से निकाल कर सिविल डिपोजिट में जमा किये गये. वर्ष 2014-15 में 1689.24 करोड़ और 2015-16 में 1818.44 करोड़ रुपये सिविल डिपोजिट में जमा किये गये.
क्या है सिविल डिपोजिट
सरकार का एक खाता है, जिसमें बजट के पैसे लैप्स होने के डर से जमा किये जाते हैं. इस खाते से बाद में सरकार धीरे-धीरे कर पैसे निकालती है और उसका उपयोग करती है.
सही नहीं होता खर्च का ब्योरा वित्तीय वर्ष के अंत में फंड लैप्स करने के डर से पैसे निकाल कर सिविल डिपोजिट में जमा करने की वजह से संबंधित वर्ष में दिखाये गये खर्च का ब्योरा सही नहीं होता है. क्योंकि ट्रेजरी से पैसा निकलते ही उसकी गणना खर्च में कर ली जाती है, जबकि पैसा सिविल डिपोजिट में जमा हो जाता है.