रांची: झारखंड व पश्चिम बंगाल के पूर्व महालेखाकार बेंजामिन लकड़ा ने कहा :भाषा, संस्कृति और धरती हमारी मां की तरह हैं. इनसे प्रेम और सम्मान करना हमारा दायित्व है. आदिवासी संस्कृति विशिष्ट है.
वे शुक्रवार को आरसी चर्च के रीजनल यूथ सेमिनार में युवाओं को संबोधित कर रहे थे. यह आयोजन 27 अप्रैल तक एसडीसी सभागार में होगा. श्री लकड़ा ने कहा कि विवाह के लिए हम लड़का नहीं, लड़की खोजते हैं. लड़की को घर की मालकिन बना कर लाते हैं. इसमें दहेज प्रथा, कन्या भ्रूण हत्या और वर्ण व्यवस्था नहीं है. न ही किसी तरह का भेदभाव है. हम प्रकृति का दोहन नहीं करते. संरक्षण और संवर्धन करते हैं. उन्होंने अपनी भूमि का कागजात संभाल कर रखने की सलाह दी.
ज्ञान की कमी बना देती है गुलाम
मानवाधिकार कार्यकर्ता ग्लैडसन डुंगडुंग ने कहा कि अपनी विरासत और अपने अधिकार के ज्ञान की कमी से कोई भी व्यक्ति या समुदाय शोषण का शिकार बन जाता है. आदिवासियों के साथ भी ऐसा ही हो रहा है. आदिवासी वह समुदाय है, जो ईसा पूर्व पहली सहस्त्रब्दि में सर्वप्रथम मध्य भारत आया. इनमें मुंडा, उरांव, खड़िया, संथाल, हो प्रमुख समुदाय प्रमुख हैं. इन्होंने जंगल-झाड़ साफ कर खेत बनाया और गांव बसाये. उन्होंने कहा कि आदिवासियों को अपनी पहचान एवं अस्मिता के अधिकार, सामूहिक एवं व्यक्तिगत अधिकार, आत्म निर्णय के अधिकार, भूमि, भूभाग व संसाधन पर अधिकार, क्षतिपूर्ति व वापसी का अधिकार, धार्मिक अधिकार आदि की जानकारी होनी चाहिए.
ये थे मौजूद : कैथोलिक युवा संघ के राष्ट्रीय निदेशक फादर फैंकलिन डिसूजा, अध्यक्ष कुलदीप तिर्की, सोशल इनिशिएटिव्स फॉर ग्रोथ एंड नेटवर्किंग के निदेशक फादर क्रिस्टोदास, फादर विरेंद्र, फादर सुशील केरकेट्टा व अन्य.