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दो अरब आबादी को पोषण सुरक्षा की कमी

रांची : दुनिया की साढ़े 81 करोड़ आबादी खाद्यान्न असुरक्षा और दो अरब आबादी पोषण असुरक्षा से गुजर रही है. इस आबादी की समस्या का समाधान मिट्टी से ही हो सकता है, क्योंकि हमें 95 प्रतिशत खाद्य पदार्थ मिट्टी से प्राप्त होते हैं. मिट्टी के समुचित प्रबंधन से बदलते मौसम की चुनौतियों का भी सामना […]

रांची : दुनिया की साढ़े 81 करोड़ आबादी खाद्यान्न असुरक्षा और दो अरब आबादी पोषण असुरक्षा से गुजर रही है. इस आबादी की समस्या का समाधान मिट्टी से ही हो सकता है, क्योंकि हमें 95 प्रतिशत खाद्य पदार्थ मिट्टी से प्राप्त होते हैं. मिट्टी के समुचित प्रबंधन से बदलते मौसम की चुनौतियों का भी सामना किया जा सकता है.
यह बातें डॉ राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, समस्तीपुर (बिहार) के मृदा विज्ञान एवं कृषि रसायन विभाग के पूर्व अध्यक्ष डॉ एसबी पांडेय ने कही. भारतीय मृदा विज्ञान सोसाइटी की रांची शाखा के तत्वावधान में बीएयू में प्लेनेट की देखरेख पृथ्वी से प्रारंभ होती है विषय पर व्याख्यानमाला को वह संबोधित कर रहे थे.
डॉ पांडेय ने कहा कि मनुष्य प्राकृतिक दुनिया के साथ टकराव के रास्ते पर है और मानवीय गतिविधियों से पर्यावरण और महत्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधनों को अपूरणीय क्षति हो रही है.
ओजोन परत घटने से पृथ्वी की सतह पर पराबैगनी किरणें आ रही हैं. जमीनी स्तर पर वायु प्रदूषण बढ़ रहा है. अम्लीय वर्षा की स्थिति बन गयी है. दुनिया की 40 प्रतिशत आबादी वाले 80 देश पानी की कमी से जूझ रहे हैं. वहां नदी, झील और भूमिगत जल भी प्रदूषित हो चुके हैं. कृषि उत्पादकता घट रही है और वनों का विनाश हो रहा है.
वर्ष 1990-2015 के बीच 25 वर्षों में दक्षिण अफ्रीका के कुल भूभाग के बराबर वनक्षेत्र नष्ट हो चुके हैं और जैव विविधता भी तेजी से घट रही है. डॉ पांडेय ने कहा कि पोषक तत्वों से भरपूर उपज लेने के लिए हमें मृदा के ढांचागत, जैविक और खनिज स्वास्थ्य पर समुचित ध्यान देना होगा. डॉ पांडेय ने कहा कि मिट्टी से हम पोषक तत्वों का जो दोहन करते हैं, उसे मिट्टी में वापस लौटाने का भी योजनाबद्ध वैज्ञानिक प्रयास करना होगा. प्राकृतिक प्रक्रिया के तहत ऊपरी सतह की दो सेंटीमीटर मिट्टी बनने में 500 साल से अधिक समय लगता है, लेकिन परंपरागत कृषि पद्धति से उस मिट्टी का क्षरण बहुत तेजी से हो रहा है.
बीएयू कुलपति डॉ पी कौशल ने मिट्टी कटाव की समस्या तथा प्रबंधन के उपायों पर प्रकाश डाला. उन्होंने कहा कि जब धरती माता का स्वास्थ्य ठीक रहेगा, तभी मानव, पशु-पक्षी, पेड़-पौधों और फसलों का स्वास्थ्य भी अच्छा रहेगा. अपने भोजन एवं स्वास्थ्य संवर्धन के लिए सभी मृदा पर आश्रित हैं. समारोह में मृदा विज्ञान विभाग के डॉ डीके शाही, डॉ बीके अग्रवाल, डॉ अरविंद कुमार तथा डॉ एसबी कुमार ने भी विचार रखे.
कृषि में प्लास्टिकल्चर के प्रयोग पर राष्ट्रीय कार्यशाला छह से
कृषि में प्लास्टिकल्चर इंजीनियरिंग एवं टेक्नोलॉजी के प्रयोग संबंधी वार्षिक राष्ट्रीय कार्यशाला बिरसा कृषि विश्वविद्यालय में छह व सात दिसंबर को होगी. इसमें देश के विभिन्न कृषि विश्वविद्यालयों में कार्यरत लगभग 60 कृषि अभियंता और वैज्ञानिक भाग लेंगे.
बीएयू के अनुसंधान निदेशक डॉ डीएन सिंह ने बताया कि कार्यशाला का आयोजन आइसीएआर के केंद्रीय पोस्ट हार्वेस्ट अभियंत्रण एवं प्रौद्योगिकी संस्थान (सिफेट), लुधियाना तथा बीएयू द्वारा संयुक्त रूप से किया जा रहा है.
आयोजन में आइसीएआर के सहायक महानिदेशक (अभियंत्रण) डॉ एसएन झा, सिफेट, लुधियाना के निदेशक डॉ आरके गुप्ता तथा परियोजना समन्वयक डॉ आरके सिंह भी भाग लेंगे. अध्यक्षता बीएयू कुलपति डॉ परविंदर कौशल करेंगे.

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