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भाषा वही, परिभाषा नयी : ”साहित्य व्यक्ति की आत्मा का जल, मगर भाषा पर नहीं होनी चाहिए सेंसरशिप”

रांची : साहित्य व्यक्ति की आत्मा को सिंचित करता है. एक तरह से कहें, तो वह व्यक्ति की आत्मा के लिए जल का काम करता है, क्योंकि वह उसे कल्पनालोक में ले जाकर एक स्वप्निल पात्र के शाब्दिक चित्रण से उसकी आत्मा को तिरोहित करता है. इसके साथ ही, यह साहित्य तत्कालीन समाज का लिखित […]

रांची : साहित्य व्यक्ति की आत्मा को सिंचित करता है. एक तरह से कहें, तो वह व्यक्ति की आत्मा के लिए जल का काम करता है, क्योंकि वह उसे कल्पनालोक में ले जाकर एक स्वप्निल पात्र के शाब्दिक चित्रण से उसकी आत्मा को तिरोहित करता है. इसके साथ ही, यह साहित्य तत्कालीन समाज का लिखित दस्तावेज भी है, लेकिन भाषा और साहित्य की विभिन्न विधाओं पर लिखी जाने वाली किताबों पर सेंसरशिप नहीं होनी चाहिए. ये बातें शनिवार को झारखंड की राजधानी रांची में ‘प्रभात खबर’ और टाटा स्टील के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित ‘भाषा वही, परिभाषा नयी’ नामक झारखंड लिटरेरी मीट के दौरान हिंदी के नवोदित साहित्यकारों ने कही.

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इस कार्यक्रम के दौरान शनिवार की शाम रांची स्थित होटल चाणक्य बीएनआर में आयोजित ‘आर्इ लव हिंदी-नयी वाली हिंदी’ सेशन के दौरान हिंदी के नवोदित साहित्यकार सत्य व्यास, दिव्य प्रकाश दुबे और आशीष चौधरी व्हाट्सएप पीढ़ी के साहित्य पर आपस में विचार-विमर्श कर रहे थे. इस दौरान हिंदी के वरिष्ठ पत्रकार राहुल देव ने इन नवोदित पत्रकारों से सवाल पूछा कि आजकल हिंदी में जिस तरह अंग्रेजी भाषा का जो प्रयोग किया जा रहा है, वह कितना जायज है.

श्री देव के सवाल के जवाब में नवोदित साहित्यकारों में शामिल दिव्य प्रकाश दुबे ने कहा कि साहित्य की विभिन्न विधाओं खासकर कहानी, उपन्यास और कविताओं में लेखक, कहानीकार, उपन्यासकार या फिर कोई कवि रचना की भाषा को तय नहीं करता, बल्कि कहानी या उपन्यास का पात्र उसकी भाषा को तय करता है. रचनाकार जिस प्रकार के पात्र को अपनी रचना में शामिल करता है, भाषा भी उसकी सामाजिक-पारिवारिक परिवेश के अनुसार तय की जाती है.

इसी सेशन में शादाब अख्तर की ओर से सवाल किये गये कि साहित्य की रचनाएं जीवन की वास्तविकता और सामाजिक परिघटनाओं से अलग क्यों होती जा रही हैं? आज के दौर में साहित्य कितना जरूरी है? इन सवालों के जवाब में नवोदित साहित्यकारों ने कहा कि साहित्य व्यक्ति की आत्मा के लिए जल का काम करता है.

उन्होंने कहा कि एक तरह से देखें, तो साहित्य व्यक्ति की आत्मा को सिंचित करता है. उन्होंने कहा कि साहित्य तत्कालीन समाज का लिखित दस्तावेज होता है, लेकिन किताबों पर सेंसरशिप नहीं होनी चाहिए, क्योंकि कहानी का पात्र ही भाषा को तय करता है, उस कहानी का रचनाकार नहीं.

Prabhat Khabar Digital Desk
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