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टाइम बम को डिफ्यूज करने के लिए अलग से फोड़ा था बम
रांची : विस्फोटकों को नष्ट करने से पहले बम निरोधक दस्ता पहले यह तय करता है कि विस्फोटक कितना शक्तिशाली है. इसका अनुमान विस्फोटकों के आकार और वजन के आधार पर लगाया जाता है. कभी-कभी अनुमान लगाना मुश्किल हो जाता है. कुछ ऐसा ही वाक्या हुआ था जून 2014 में. पटना के गांधी मैदान में […]
रांची : विस्फोटकों को नष्ट करने से पहले बम निरोधक दस्ता पहले यह तय करता है कि विस्फोटक कितना शक्तिशाली है. इसका अनुमान विस्फोटकों के आकार और वजन के आधार पर लगाया जाता है. कभी-कभी अनुमान लगाना मुश्किल हो जाता है. कुछ ऐसा ही वाक्या हुआ था जून 2014 में. पटना के गांधी मैदान में नरेंद्र मोदी की सभा के दौरान सीरियल बम ब्लास्ट के बाद जांच के क्रम में रांची के हिंदपीढ़ी थाना क्षेत्र के इरम लॉज से पुलिस ने नौ टाइम बम बरामद किया था. इसे डिफ्यूज करने के लिए मोरहाबादी मैदान ले जाया गया था.
लेकिन बम निरोधक दस्ता यह तय नहीं कर पा रहा था कि इसे डिफ्यूज करें तो कैसे. क्योंकि इसके असर का अंदाजा नहीं लगाया जा सका था. तब तत्कालीन एसएसपी साकेत कुमार सिंह (वर्तमान में कोल्हान रेंज के डीआइजी) ने एक-एक कर टाइम बम को डिफ्यूज करने का निर्णय लिया. इसके तहत एक टाइम बम के पास रांची पुलिस ने अपना एक बम रख उसे विस्फोट करा दिया. साथ में टाइम बम भी डिस्पोज हो गया. इसी तरह अन्य बम को भी डिस्पोज किया गया.
जवान के पेट में लगे बम को वाटर जेट तकनीक से किया गया था डिफ्यूज : जून 2015 में लातेहार के बरवाडहीह अंबाटीकर जंगल में सीआरपीएफ के जवानों पर नक्सलियों ने हमला कर दिया था.
इसके बाद शहीद जवान के पेट में बम प्लांट कर दिया था. उस जवान को हेलीकॉप्टर से लाकर पोस्टमार्टम के लिए रिम्स में भर्ती कराया गया था. पोस्टमार्टम के दौरान चिकित्सकों को पता चला था कि जवान के पेट में बम है. अगर पेट में लगे बम को विस्फोट किया जाता, तो शहीद का शव क्षत-विक्षत हो जाता. इसलिए बम लगे पार्ट को पहले पानी से भिगाया गया. फिर उस पार्ट को काट कर अलग किया गया. अंत में रांची पुलिस बम को लेकर खुले मैदान में गयी और वाटर जेट तकनीक के जरिये उसे विस्फोट कराया.
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