रांची: टाना भगत आंदोलन पहला आंदोलन था, जो समाज सुधार व आजादी के लिए हुआ था. देश की आजादी में झारखंड के टाना भगतों की अहम भूमिका रही थी. खासकर महात्मा गांधी के आदर्शों का अक्षरश: पालन करते हुए टाना भगतों ने जो आंदोलन किया वह अनुकरणीय ही नहीं, बल्कि वंदनीय है. मुख्यमंत्री रघुवर दास ने टाना भगतों को तोहफा दिया. जो उल्लेखनीय है. यह कहना है विकास भारती बिशुनपुर के सचिव अशोक भगत का.
श्री भगत ने प्रभात खबर से विशेष बातचीत में बताया कि दो अक्तूबर को महात्मा गांधी के जन्मदिवस पर टाना भगतों ने खकसी टोला स्थित शहीद स्मारक पर उन्हेें बुलाकर न केवल स्वच्छता अभियान चलाया बल्कि, मुख्यमंत्री के नाम पत्र भी मुझे सौंपा. उक्त पत्र को हमने मुख्यमंत्री को सौंप दिया. पत्र को गंभीरता से लेते हुए मुख्यमंत्री ने टाना भगतों के साथ बैठक कर उनके लिये कई घोषणाएं कर दीं. श्री भगत का कहना है कि झारखंड बनने के बाद रघुवर दास ने पहल की और टाना भगतों के बारे में सोचा. उन्हें सम्मान देने का काम किया है.
वर्ष 1983 में चिंगरी में जतरा टाना भगत का स्मारक बनवाया
अशोक भगत ने कहा कि वर्ष 1983 में गुमला के बिशुनपुर प्रखंड में जनजातियों के जीवन में उत्थान लाने व पूरे समाज में उनका मान बढ़ाने के लिए लगातार लगा रहा. समाज के सहयोग से कृषि, शिक्षा व स्वास्थ्य के क्षेत्र में जागरूकता लाने के उद्देश्य से कुछ योजनाएं चलाने का निर्णय हमने लिया. इसी को लेकर विकास भारती नामक संस्था का गठन किया था. वर्ष 1983 में ही गुमला के चिंगरी गांव में हमने टाना भगत आंदोलन के जनक जतरा टाना भगत का स्मारक बनवाया. उसी समय से विकास भारती जतरा टाना भगत द्वारा किये गये सामाजिक जागरूकता के संदर्भ में कार्यों को आगे बढ़ाने का निरंतर जुटी हुई है.
क्या है टाना भगत आंदोलन
अशोक भगत ने बताया कि वर्ष 1914 में अंग्रेजों के खिलाफ सत्याग्रह व अहिंसा का मार्ग आदिवासियों ने अपनाया. जो टाना भगत के आंदोलन के नाम से जाना गया. बाद में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के कहने पर डॉ राजेंद्र प्रसाद ने उनसे संपर्क किया और बताया कि रामगढ़ में बापू ने आंदोलनकारियों को आमंत्रित किया है. इस तरह इन्हें कांग्रेस के आंदोलन से जोड़ा. तब से लेकर आज तक टाना भगत कांग्रेस से जुड़े रहे और बापू की खादी को अपना लिया.