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झारखंड की ये प्रतिभाएं खेल की दुनिया में बना रही जगह

आज राष्ट्रीय खेल दिवस है. 29 अगस्त को हॉकी के महान खिलाड़ी मेजर ध्यानचंद के प्रति सम्मान प्रकट करने के लिए उनकी जयंती पर राष्ट्रीय खेल दिवस मनाया जाता है. दुनिया में हॉकी के जादूगर के नाम से प्रसिद्ध इस कालजयी हॉकी खिलाड़ी ने ना सिर्फ भारत को ओलिंपिक खेलों में स्वर्ण पदक दिलवाया बल्कि […]

आज राष्ट्रीय खेल दिवस है. 29 अगस्त को हॉकी के महान खिलाड़ी मेजर ध्यानचंद के प्रति सम्मान प्रकट करने के लिए उनकी जयंती पर राष्ट्रीय खेल दिवस मनाया जाता है. दुनिया में हॉकी के जादूगर के नाम से प्रसिद्ध इस कालजयी हॉकी खिलाड़ी ने ना सिर्फ भारत को ओलिंपिक खेलों में स्वर्ण पदक दिलवाया बल्कि हॉकी को एक नयी ऊंचाई तक ले गये.
झारखंड की प्रतिभाएं भी हर रोज कामयाबी की नयी बुलंदी को छू रही है. हमारे खिलाड़ी हॉकी हो या एथलेटिक्स हर क्षेत्र में झारखंड का नाम रोशन कर रहे हैं. उनके गले में लटका मेडल उनकी कामयाबी को बयां कर रहा है. यह कामयाबी काफी संघर्ष कर हासिल की है. इन्हीं प्रतिभाओं पर पढ़ें
प्रियंका केरकेट्टा, मांडर
कभी इंज्वॉय के लिए लांग जंप में हिस्सा लेती था, आज हैं चैंपियन
यह हैं एथलीट प्रियंका केरकेट्टा. मांडर की रहनेवाली हैं. माता-पिता किसान हैं. सिर्फ खुशी और इंज्वॉय के लिए सेंटल हाईस्कूल नवाटांड (मांडर) से लांग जंप की शुरुआत की. आज इनकी गिनती नेशनल एथलीट में होती है. कई मेडल जीत चुकी हैं. झारखंड का नाम देशभर में रोशन कर रही हैं. वह कहती हैं कि परेशानी हर जगह होती है़
यदि परेशानी को देखा जाये, तो आप कभी आगे नहीं बढ़ सकते हैं. अपने अब तक के सफर को साझा करते हुए कहती हैं कि मैंने यह कभी नहीं सोचा था कि खेल में आगे बढ़ना है़ सिर्फ इंज्वॉय के लिए स्कूल में लांग जंप इवेंट में हिस्सा लेती. इसमें संजय, प्रकाश और ब्रदर सर का काफी सहयोग रहा़ पढ़ाई के साथ खेलती गयी़
2013 में साईं सेंटर मोरहाबादी ज्वाइन की. यहां से स्पेशल ट्रेनिंग शुरू हुई. 2015 जूनियर एथलेटिक्स चैंपियनशिप में हिस्सा लिया और लांग जंप में गोल्ड मेडल मिला़ 2016 में आयोजित 14वीं फेडरेशन जूनियर एथलेटिक्स चैंपियनशिप में भी गोल्ड मिला़ इसी साल जूनियर एथलेटिक्स चैंपियनशिप तमिलनाडु में भी गोल्ड मेडल जीत चुकी हैं.
साथ ही 15वें फेडरेशन कप में गोल्ड मेडल लेने के साथ 6.30 मीटर का नेशनल रिकॉर्ड भी बनाया. प्रियंका कहती हैं कि उनका अगला लक्ष्य ओलंपिक में गोल्ड मेडल हासिल करना है़ इसके लिए प्रतिदिन छह घंटे प्रैक्टिस करती हैं. साथ ही डोरंडा कॉलेज में बीए पार्ट एक की छात्रा हैं.
बिगन सोय, हॉकी खिलाड़ी
बांस की स्टिक से खेलती थी हॉकी
बिगन सोय वर्ल्ड जूनियर महिला हॉकी चैंपियनशिप की टीम में अपनी मजबूत दावेदारी पेशकर चुकी हैं. कभी बांस की बनी स्टिक से खेलने वाली बिगन हॉकी में नाम रोशन कर रही हैं. अब उनका लक्ष्य सीनियर हॉकी वर्ल्ड कप खेलना है.
बिगन कहती हैं कि अखबारों में हॉकी के बारे पढ़ कर इस खेल के प्रति रुचि जगी. इसकी शुरुआत 2006 में चाईबासा के बंधगांव में हुई. अखबार में रांची की लड़कियों को देख कर लगा कि मैं भी हॉकी खेल सकती हूं. इसके बाद गांव में ही करीब दो वर्षों तक बांस की स्टिक से हॉकी खेलना शुरू किया.
इसके बाद 2013 में रांची आयी. शुरुआत में काफी परेशानी हुई, लेकिन दिमाग में हॉकी था़ सपना था कि अपने नाम की टीशर्ट पहनकर हॉकी में इंडिया टीम के लिए खेलूं. पहली हॉकी किट, तो खुद के जमा किये गये है पैसे से खरीदी. इसके बाद साईं सेंटर ने किट उपलब्ध कराया. 2011 शास्त्री हॉकी कप में ब्रांज मेडल, 2011 में ही जूनियर एशिया कप में ब्रांज मेडल, 2012 में जूनियर एशिया कप में सिल्वर मेडल, 2013 में जूनियर वर्ल्ड कप में ब्रांज मेडल मिला़
इसी तरह से कई उपलब्धियां मिली़ हॉकी वर्ल्ड कप से आने के बाद झारखंड सरकार की ओर से पुलिस में नौकरी मिली़ हालांकि नौकरी मिलने के बाद आगे बढ़ने का सिलसिला रूक गया़ अब नौकरी के साथ प्रैक्टिस के लिए भी समय मिल रहा है़ मुझे आगे बढ़ने का दोबारा मौका मिला है़
अनुरूपा, गुमला
दौड़ छोड़ हर्डल्स में बनायी पहचान
गुमला की रहनेवाली अनुरूपा कुमारी 100 मीटर हर्डल्स में विशेष पहचान बना चुकी हैं. पहली बार दो साल पहले हर्डल्स प्रतियोगिता में हिस्सा लिया. आज इनके नाम ब्रांज, सिल्वर और गोल्ड मेडल हो चुका है. वह कहती हैं कि हर्डल्स में आने से पहले 100 मीटर दौड़ की तैयारी करती थी. साथ में पढ़ाई भी. मैट्रिक परीक्षा देने के बाद 2012 में साईं सेंटर मोरहाबादी में ज्वाइन किया. दौड़ का प्रशिक्षण छोड़ दिया.
फिर हर्डल्स में मेहनत करने लगी. इसके बाद मेडल पर मेडल मिलते चले गये़ जूनियर फेडरेशन 2016 में 100 मीटर और 400 मीटर हर्डल्स में ब्रांज मेडल हासिल किया. इससे काफी हौसला बढ़ा. जूनियर एथलेटिक्स चैंपियनशिप 100 मीटर हर्डल्स में गाेल्ड मेडल मिला. इसमें विनोद सर, माता-पिता और कोच की भूमिका महत्वपूर्ण रही है.
सपना कुमारी, घाटो
खेल में पहचान बनाने का जुनून
घाटो (रामगढ़) की सपना कुमारी हर्डल्स गेम में आगे बढ़ने के लिए दिन-रात मेहनत कर रही हैं. एथलेटिक्स में परचम लहराने के साथ पढ़ाई पर भी पूरा फोकस कर रही है़ं जूनियर नेशनल एथलेटिक्स चैंपियनशिप में सिल्वर, नेशनल एथलेटिक्स में गोल्ड और फेडरेशन कप में सिल्वर मेडल जीत चुकी है़ं
वह बताती हैं कि मैंने खेल का सफर 2013 में शुरू किया. पढ़ाई पर फोक्स के साथ खेल काे भी महत्व देती थी. अभी बरियातू गर्ल्स स्कूल में 12वीं की छात्रा हैं. साथ ही कई प्रतियोगिता में हिस्सा लेती रही हैं. इनका लक्ष्य है खेल में ही पहचान बने. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हर्डल्स में पहचान बनाने के लिए कड़ी मेहनत कर रही है़ं
आइपीएल खेलना है अगला लक्ष्य
कौशल सिंह, क्रिकेटर
कौशल सिंह रणजी खिलाड़ी हैं. चार साल से झारखंड की तरफ से खेल रहे हैं. उनका अगला लक्ष्य आइपीएल खेलना है. इसके लिए काफी मेहनत कर रहे हैं. कौशल कहते हैं कि मैंने अपने लक्ष्य को देखा और उसमें ही करियर बनाने के लिए आगे बढ़ता रहा़ मूल रूप से डालटेनगंज के रहनेवाले कौशल 10-12 साल से क्रिकेट खेल रहे है़ं
क्रिकेट की बढ़ती लोकप्रियता को देखते हुए इसमें अपनी पहचान बनाने के लिए संघर्ष करना शुरू किया. वह बताते हैं कि शुरुआत में डालटेनगंज में क्रिकेट की ट्रेनिंग शुरू की. लेकिन बड़े स्तर पर ट्रेनिंग लेने के लिए रांची आना पड़ा. यहां आने के बाद अंडर-16 और 19 में खेलने का मौका मिला. चार साल से रणजी खेल रहा हूं. वह कहते हैं कि बेहतर प्रदर्शन के कारण यहां तक पहुंच पाया हूं.
महेंद्र सिंह धौनी उनके फेवरिट क्रिकेटर में शामिल हैं. कौशल ने कहा कि हाल के दिनों में देखा गया है कि झारखंड में क्रिकेट का अच्छा माहौल मिल रहा है़ क्रिकेट में काफी कुछ सुधार हुआ है़ युवा क्रिकेटर को आगे बढ़ने के लिए अच्छा अवसर माना जा सकता है़

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