87 हजार महिलाओं को जननी सुरक्षा योजना के तहत राशि का भुगतान नहीं किया गया है. सीएजी की रिपोर्ट में राज्य में स्वास्थ्य सुविधाओं का मूल्यांकन करने के बाद इन तथ्यों का उल्लेख किया गया है.
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सीएजी की रिपोर्ट :ग्रामीण सरकारी अस्पतालों में उपकरणों, दवाइयों की 92% कमी
रांची. राज्य के ग्रामीण क्षेत्र के सरकारी अस्पतालों में दवाईयों और उपकरणों की 92 प्रतिशत तक की कमी है. राज्य स्तर पर 92 प्रतिशत विशेषज्ञ डॉक्टरों की कमी है. चिकित्सा के मामले में आधारभूत संरचना भी अलग-अलग स्तर पर 79 प्रतिशत तक कम है. हेपेटाइटिस और एचआइवी किट की खरीद बाजार दर से 13 गुना […]
रांची. राज्य के ग्रामीण क्षेत्र के सरकारी अस्पतालों में दवाईयों और उपकरणों की 92 प्रतिशत तक की कमी है. राज्य स्तर पर 92 प्रतिशत विशेषज्ञ डॉक्टरों की कमी है. चिकित्सा के मामले में आधारभूत संरचना भी अलग-अलग स्तर पर 79 प्रतिशत तक कम है. हेपेटाइटिस और एचआइवी किट की खरीद बाजार दर से 13 गुना तक अधिक पर की गयी है.
रिपोर्ट के अनुसार राज्य सरकार निर्धारित मानक के मुकाबले चिकित्सा से संबंधित आधारभूत संरचना बनाने में विफल रही है. वर्ष 2011 में स्वास्थ्य सेवाओं के मानकों के मुकाबले सीएचसी स्तर पर 45, पीएचसी स्तर पर 76 और एचएससी स्तर पर 55 प्रतिशत संरचना की कमी थी. वर्ष 2016 में इसे बढ़ा कर सीएचसी स्तर पर 51, पीएचसी स्तर पर 79 और एचएससी स्तर पर 60 प्रतिशत तक ही किया जा सका. सरकार ने स्वास्थ्य सुविधाओं के नाम पर संरचना उपलब्ध कराने के दौरान उन क्षेत्रों को नजरअंदाज किया, जिन क्षेत्रों में आधारभूत संरचना की सुविधा पहले से नहीं थी. सरकार ने पहले से मौजूद भवनों को अपग्रेड करने पर ज्यादा ध्यान दिया.
रिपोर्ट में कहा गया है कि आइपीएचसी के मापदंड के आलोक में सरकारी अस्पतालों में आवश्यक उपकरणों की भारी कमी पायी गयी. राज्य के सदर अस्पतालों में 79 प्रतिशत तक, जिला अस्पतालों में 57 से 86 प्रतिशत तक और 44 से 92 प्रतिशत सीएचसी स्तर पर मेडिकल उपकरणों की कमी पायी गयी. दूसरी तरफ 2.59 करोड़ रुपये की लागत की मशीनें जिला अस्पताल और सीएचसी स्तर पर बिना इस्तेमाल की ही पड़ी पायी गयीं. राज्य में मोबाइल मेडिकल यूनिट का संचालन केंद्र सरकार के दिशा-निर्देश के विरुद्ध किया जा रहा है.
इसे वैसे सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में चलाना है, जहां चिकित्सा सुविधा नहीं है. हालांकि राज्य में इस नियम का उल्लंघन करते हुए मोबाइल मेडिकल यूनिटों को उन्हीं क्षेत्रों में चलाया जा रहा जिन क्षेत्रों में सीएचसी, पीएचसी और एचएससी चल रहे हैं.
राज्य में डॉक्टरों की भी भारी कमी
रिपोर्ट के अनुसार राज्य में विभिन्न स्तर के डाक्टरों, नर्सों और अन्य कर्मचारियों की भारी कमी है. रिपोर्ट में कहा गया है कि राज्य में विशेषज्ञ डॉक्टरों की 78 से 92 प्रतिशत तक की कमी है. मेडिकल अफसरों की 36 से 61 प्रतिशत तक की कमी है. स्टाफ नर्स, एएनएम आदि की 26 से 27 प्रतिशत तक की कमी है. इसका साथ ही पारा मेडिकल स्टाफ की 40 से 52 प्रतिशत तक की कमी है. राज्य के विभिन्न स्तर के सरकारी अस्पतालों में जरूरत के मुकाबले विभिन्न प्रकार की पूरी जांच नहीं हो पा रही है. राज्य के जिला अस्पतालों में 65 से 78 प्रतिशत जांच नहीं हो पा रही है. यह आंकड़ा सीएचसी स्तर पर 42 से 85 प्रतिशत तक है. पीएचसी स्तर पर कहीं भी जांच के लिए प्रयोगशाला की सुविधा नहीं है. अस्पतालों में दवाईयों की कमी का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि जिला अस्पतालों में 75 से 88 प्रतिशत तक आवश्यक दवाईयां उपलब्ध नहीं है. सीएचसी स्तर पर 61 से 91 प्रतिशत और पीएचसी स्तर पर 22 से 83 प्रतिशत तक आवश्यक दवाईयों की कमी पायी गयी. रिपोर्ट में खरीद में हुई गड़बड़ी का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि एचआइवी और हेपेटाइटिस किट की खरीद बाजार दर से दो से 13 गुना अधिक पर की गयी. इसके लिए 2.60 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया. इस खरीद से सरकार को 1.33 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ. दुमका और पश्चिम सिंहभूम के जिला अस्पतालों में सरकार द्वारा निर्धारित दर से अधिक पर दवाईयों की खरीदारी हुई.
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