रांची : रिम्स के डॉक्टरों की निजी प्रैक्टिस रोकने के लिए स्वास्थ्य मंत्री रामचंद्र चंद्रवंशी चाहे जितने जतन कर लें, यह रुकने वाला नहीं है. स्वास्थ्य मंत्री ने रिम्स प्रबंधन से पूछा था कि रिम्स के डॉक्टरों की निजी प्रैक्टिस का पता लगाने के लिए एक विशेष कमेटी बनायी गयी थी. क्या इतने दिनों में इस कमेटी ने एक भी डॉक्टर को निजी प्रैक्टिस करते हुए नहीं पकड़ा? रिम्स प्रबंधन ने स्वास्थ्य मंत्री को इस सवाल का जवाब दे दिया है. हालांकि, यह जवाब न तो स्वास्थ्य मंत्री के गले नहीं उतरेगा और न ही आमलोगों के.
स्वास्थ्य मंत्री ने 25 जुलाई को रिम्स में प्रभारी निदेशक सहित विभागाध्यक्षों के साथ बैठक की थी. इसी दौरान रिम्स प्रबंधन से नौ बिंदुओं पर 24 घंटे के अंदर जवाब देने को कहा था. मंत्री को भेजे गये जवाब में रिम्स प्रबंधन ने बताया है कि अस्पताल के डॉक्टरों की निजी प्रैक्टिस की जांच के लिए एक कमेटी बनी थी. इस कमेटी ने अपने कार्यकाल में क्या जांच की, इसकी जानकारी रिम्स प्रबंधन को नहीं है. अगर कमेटी ने कोई जांच रिपोर्ट तैयार की होगी, तो इसकी जानकारी स्वास्थ्य विभाग को होगी.
गौरतलब है कि डॉक्टरों की निजी प्रैक्टिस की निगरानी के लिए एक विशेष कमेटी बनी थी. रिम्स, रिनपास, जिला प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी इस कमेटी के सदस्य थे. सूत्र बताते हैं कि यह कमेटी मौजूदा समय में केवल कागजों में ही रह गयी है. क्योंकि इसके ज्यादातर सदस्य या तो सेवानिवृत्त हो गये हैं या फिर उनका तबादला हो चुका है. ऐसे में स्वास्थ्य मंत्री ने जो सवाल रिम्स प्रबंधन से किया था, उसके बदले में उन्हें गोलमोल जवाब मिलना तय था. हालांकि, इस मामले में स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही भी उजागर हाेती है. सवाल यह उठता है कि जब स्वास्थ्य विभाग को यह पता है कि कमेटी के सदस्य रिटायर या स्थानांतरित हो चुके हैं, तो उसने नये सिरे से कमेटी का गठन क्यों नहीं किया?
रिम्स प्रबंधन ने इन बिंदुओं पर भी दिया जवाब
डॉक्टरों की निजी प्रैक्टिस के अलावा स्वास्थ्य मंत्री ने कुछ अन्य बिंदुओं पर भी रिम्स प्रबंधन से जवाब मांगा था. इनमें मशीनों का मेंटेनेंस, मरीजों के खाने की गुणवत्ता व टाइमिंग और नयी पार्किंग को शुरू कराने जैसे मुद्दे शामिल थे. इस पर रिम्स प्रबंधन ने स्वास्थ्य मंत्री को बताया है कि 10 साल पुरानी मशीनों का एनुअल मेंटेनेंस चार्ज (एएमसी) किया जाता है. मशीन खराब होने पर कंपनी के प्रतिनिधियों को बुला कर मशीन को दुरुस्त कराया जाता है. विभागाध्यक्षों की जिम्मेदारी है कि मशीन खराब होने पर वह संबंधित कंपनी से सपंर्क कर मशीन को दुरुस्त करायें. मरीजों को समय पर खाना नहीं देने अौर नयी पार्किंग में वाहनों को नहीं रखने आदि बिंदुओं पर प्रबंधन ने अपने हिसाब से जवाब दिया है.