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प्रभात खबर परिचर्चा: कपड़ा व्यापारियों किया जीएसटी का विरोध, कहा महंगे हो जायेंगे कपड़े, घटेगा रोजगार

रांची : कृषि के बाद सबसे बड़ा टेक्सटाइल उद्योग आता है. इस उद्योग से 25 लाख से ज्यादा थोक और खुदरा व्यापारी जुड़े हैं. इसमें 22 लाख से ज्यादा छोटे व्यापारी हैं. कपड़े पर जीएसटी लगाये जाने से व्यवसाय पर बुरा असर पड़ेगा. कपड़े महंगे हो जायेंगे. रोजगार में कमी आयेगी. सीधे तौर पर पांच […]

रांची : कृषि के बाद सबसे बड़ा टेक्सटाइल उद्योग आता है. इस उद्योग से 25 लाख से ज्यादा थोक और खुदरा व्यापारी जुड़े हैं. इसमें 22 लाख से ज्यादा छोटे व्यापारी हैं. कपड़े पर जीएसटी लगाये जाने से व्यवसाय पर बुरा असर पड़ेगा. कपड़े महंगे हो जायेंगे. रोजगार में कमी आयेगी. सीधे तौर पर पांच करोड़ लोग प्रभावित होंगे. इंस्पेक्टर राज बढ़ेगा. ‘प्रभात खबर’ की ओर से गुरुवार को जीएसटी पर आयोजित परिचर्चा में ये बातें उभरीं.
परिचर्चा में व्यापारियों ने कपड़ा को जीएसटी के दायरे में लगाये जाने से होनेवाली परेशानियों पर खुल कर अपनी बात रखी. व्यापारियों ने एक स्वर में सरकार के फैसले का विरोध किया. उन्होंने कहा कि सरकार की मंशा साफ है, वह काॅरपोरेट सेक्टर को बढ़ावा देना चाहती है. आज तक हैंडलूम व हैंडीक्राफ्ट पर टैक्स नहीं लगा. जीएसटी को लेकर यह स्थिति हो गयी है कि पिछले 20 दिनों से कपड़ों का उत्पादन नहीं हो रहा है. परिचर्चा के दौरान प्रभात खबर के एमडी केके गोयनका, बिजनेस हेड विजय बहादुर आदि उपस्थित थे.
व्यापारियों ने कहा
टैक्स पांच या 25 प्रतिशत लगाया जाये, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता. समस्या कार्यप्रणाली पर है. आज तक वैट से नाता नहीं रहा. एक माह से कम समय में जीएसटी का पालन करने को कहा जाता है. यह कहां से संभव है. यह पूरी तरह से तुगलकी फरमान है. कपड़े पर जीएसटी लगाना एफडीआइ को बढ़ावा देना है. आजाद हिंदुस्तान के इतिहास में आज तक कपड़ा सभी प्रकार के कर से मुक्त रहा है. पूर्व में वस्त्र निर्माण के समय ही इस पर एक्साइज ड्यूटी के रूप में कर लगता रहा है. मिलों से कपड़ा बाहर आने पर यह सभी प्रकार के कर से मुक्त रहा है.
प्रवीण लोहिया, अध्यक्ष, झारखंड थोक वस्त्र विक्रेता संघ
टुकड़ों-टुकड़ों में कट कर बिकने वाले कपड़े पर जीएसटी लगाने से भविष्य भी टुकड़े-टुकड़े हो जायेंगे. इससे अफसरशाही बढ़ेगी. व्यापार परेशान होंगे. व्यापारियों का भयादोहन बढ़ेगा. बेरोजगारी बढ़ेगी. वस्त्र निर्माण का बड़ा हिस्सा आज भी पारंपरिक तरीके से होता है. वस्त्र का निर्माण कई चरणों में होता है. वस्त्र को तैयार करने की प्रक्रिया कई हाथों से गुजर कर यह बाजार में बिकने की स्थिति में पहुंचता है.
अनिल जालान, सचिव, झारखंड थोक वस्त्र विक्रेता संघ
आज भी अधिकांश कपड़ा व्यापारी अशिक्षित हैं. जीएसटी लागू होने पर ऑनलाइन बिल जेनरेट करना होगा. ग्रामीण इलाकों में भी अधिक कपड़ों की बिक्री होती है. झारखंड में आज कितने घंटे बिजली रहती है. सारा काम कंप्यूटर से होगा. जब बिजली ही नहीं रहेगी, तो कैसे काम करेंगे? यही नहीं, जीएसटी में रिटर्न फाइल करने में ट्रेंड प्राेफेशनल रखने की जरूरत होगी. आखिर कहां से यह खर्च मैनेज हो सकेगा? इस व्यवसाय को जीएसटी में लाने पर कई व्यापारियों के समक्ष जटित स्थिति उत्पन्न होगी.
विक्रम खेतावत, व्यापारी
सरकार निर्णय थोप रही है. प्रारंभ से कहा गया कि कपड़े पर जीएसटी नहीं लगाया जायेगा. अंतिम समय में कपड़े पर जीएसटी लगा कर तुगलकी फरमान सुना दिया गया. हमारे साथ दरजी से लेकर कई अन्य लोग जुड़े हैं. हम सड़क पर आ जायेंगे, तो हमारे साथ जुड़े जितने भी कर्मचारी आदि हैं, उनका भी रोजगार छिन जायेगा. सरकार पूरी तरह से मॉल कल्चर लाना चाह रही है. सरकार चाहती है कि हम अपनी दुकानें बंद कर दें. जीएसटी के लिए ट्रेंड प्रोफेशनल का खर्च कहां से लायेंगे.
सुबोध गुप्ता, प्रोपराइटर, बिछावन
सरकार को टैक्स लगाना है, तो सिंगल प्वाइंट पर टैक्स लगाये. अलग-अलग जगहों पर टैक्स लगाने से काफी परेशानी हो रही है. जीएसटी में प्रावधान किया गया कि बिना इ-वे बिल के कहीं भी माल नहीं भेज सकते हैं. कपड़े पर पूर्व की भांति प्रथम चरण के समय ही जिस प्रकार टैक्स लगता रहा है, उसी तरह की व्यवस्था जीएसटी में भी हो. यार्न पर ही टैक्स लगना चाहिए. सरकार ध्यान नहीं देती है, तो व्यापार करने में काफी कठिनाई होगी. इससे कई लोग बेरोजगार भी हो जायेंगे.
ललित शर्मा, टेक्सटाइल्स एजेंट के सदस्य
केंद्र सरकार एक तरफ कहती है कि देश में इंस्पेक्टर राज को खत्म कर दिया जायेगा. दूसरी तरह देश में एक बार फिर इंस्पेक्टर राज को बढ़ावा दिया जा रहा है. कपड़े पर जीएसटी लगा कर सरकार ने मंशा साफ कर दी है. कभी भी किसी प्रकार के कर से नाता नहीं रहा है. अचानक से इस धंधे में जीएसटी लगाने से व्यापारियों के सामने जटिल समस्या उत्पन्न हो गयी है. सही कहा जाये, तो हमलोग इसके लिए तैयार ही नहीं हैं. पहले से जो व्यवस्था है, उसे लागू किया जाये. तभी यह व्यवसाय सही तरीके से चल सकेगा.
अशोक लाठ, टेक्सटाइल्स एजेंट
जीएसटी में नियम-कानून काफी कठिन कर दिये गये हैं. साल में 37 बार रिटर्न फाइल करना, जिसमें माह में तीन बार रिटर्न करना, यह काफी परेशानी देगा. नुकसान यह होगा कि बिजनेस चलाने का कॉस्ट काफी बढ़ जायेगा. एक व्यापारी के लिए व्यापार करना मुश्किल हो जायेगा. यही नहीं, गलती होने की स्थिति में जेल भेजने का प्रावधान करना, यह पूरी तरह से गलत है. सरकार को इस पर पुनर्विचार करना चाहिए. जीएसटी को लेकर व्यापारी काफी भयभीत हैं.
मनीष कुजारा, पार्टनर, वुल हाउस

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