रामगढ़ : दुनिया की हर मां अपने बच्चों का भविष्य गढ़ती है. अपने बच्चों के लिए नि:स्वार्थ अपना सब कुछ कुरबान कर देती है. लेकिन इस दुनिया में ऐसी कई बदनसीब माएं भी हैं, जो अपने बच्चों को पाल-पोष कर बड़ा करती हैं, पर बुढ़ापे में उन्हें दर-दर की ठोकरें खानी पड़ती हैं. कुछ ऐसा ही हुआ है रामगढ़ के चुंबा में रहनेवाली मीरा पाठक के साथ.
रामगढ़ के करीब चुंबा गांव की मीरा पाठक की शादी भरौंदा (गढ़वा) के गणोश पाठक से हुई. शादी के वक्त उनकी उम्र मात्र 10 वर्ष थी. 23 वर्ष की उम्र तक वह चार बच्चों की मां बन गयीं. पति टीबी से ग्रस्त थे. कम आयु में ही उनका देहांत हो गया. ससुरालवाले प्रताड़ित करने लगे. इसके बाद बच्चों को लेकर वह मायके चुंबा आ गयीं. संघर्ष कर बेटों को पढ़ाया. दो बेटों की शादी की, लकिन आज वह दो जून की रोटी के लिए भटक रही हैं. बेटे-बहू घर में नहीं रहने देते. घर के बाहर एक कमरे में गुजर-बसर कर रही हैं.
कई बार भूखे सो जाती हैं. मीरा कहती हैं कि बेटे का कहना है कि उसकी पत्नी के निर्देश के अनुसार ही घर पर उन्हें रहना होगा. इस उम्र में कई बीमारियों से भी जूझ रही हैं, लेकिन कोई इलाज करानेवाला नहीं है. विधवा पेंशन भी समय पर नहीं मिलता. इसके बावजूद कहती हैं कि बेटे जो कर रहे हैं, उसका उन्हें कोई दुख नहीं है. भगवान बेटों को सलामत रखें.