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सरकार की नीतियों से किसान परेशान
विमर्श. अकाल विरोधी मंच के सेमिनार में बोले विनोद सिंह पलामू में अकाल एक जटिल समस्या है. इससे निबटने के लिए सरकार व स्थानीय जन प्रतिनिधि ने कभी कोई सार्थक प्रयास नहीं किया. बातें सिर्फ घोषणा तक ही सीमित रह गयी. मेदिनीनगर : माले के पूर्व विधायक विनोद सिंह ने कहा है कि पलामू में […]
विमर्श. अकाल विरोधी मंच के सेमिनार में बोले विनोद सिंह
पलामू में अकाल एक जटिल समस्या है. इससे निबटने के लिए सरकार व स्थानीय जन प्रतिनिधि ने कभी कोई सार्थक प्रयास नहीं किया. बातें सिर्फ घोषणा तक ही सीमित रह गयी.
मेदिनीनगर : माले के पूर्व विधायक विनोद सिंह ने कहा है कि पलामू में अकाल-सुखाड़ के लिए प्रकृति से ज्यादा सरकार की नीति दोषी है. अपेक्षित बारिश नहीं हुई, इस कारण सुखाड़- अकाल पड़ा. सुखाड़ व अकाल पलामू के लिए कोई नयी समस्या नहीं है.
समस्या तो इस बात को लेकर है कि सरकार के पास सोच की कमी है. इस कारण इस इलाके को सुखाड़ व अकाल से स्थायी रूप से मुक्ति मिले, इसके लिए आज तक कोई कारगर नीति नहीं तैयार की गयी. इसलिए वह कहते हैं कि प्रकृति के साथ-साथ नीति तैयार करने वाले की सोच में भी अकाल है.
इसलिए पलामू का सुखाड़ व अकाल से नाता नहीं टूट रहा है. श्री सिंह गुरुवार को अकाल विरोधी मंच टाउन हॉल में आयोजित सेमिनार में बोल रहे थे. सेमिनार का विषय था- स्थायी परिघटना बन चुकी पलामू का अकाल- कारण व स्थायी समाधान. इसकी अध्यक्षता अधिवक्ता नंदलाल सिंह ने की. श्री सिंह ने कहा कि सुखाड़ और अकाल से निबटने के लिए जो कार्य योजना तैयार की जाती है, वह स्थायी नहीं रहती. वैकल्पिक व्यवस्था के रूप में लखटकिया तालाब बनते हैं, कुएं खोदे जाते हैं. यहां तक की चेकडैम भी बनता है.
इस कार्य योजना पर गौर किया जाये, तो पता चलता है कि सरकार भी चाहती है कि इस तरह का सुखाड़ और अकाल आते रहे, ताकि वह वैसे लोगों को उपकृत कर सकें, जिनके कंधे पर सवारी कर वह शासन तक पहुंचते हैं. पूर्व विधायक ने सवाल किया क्या इस तरह के प्रयास से पलामू को सुखाड़ और अकाल से मुक्ति मिलेगी. मौके पर शैलेंद्र कुमार, युगल पाल, गोकुल बसंत, सुषमा मेहता, वृजनंदन सनेही, शैलेंद्र सिंह, रविंद्र भुइयां, विनोद कुमार, शत्रुघ्न कुमार शत्रु, शंभु महतो, शब्बीर अहमद, जेम्स हेरेंज सहित कई लोगों ने अपने विचार व्यक्त किये
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आंदोलन पर भी सवाल
पूर्व विधायक विनोद सिंह ने आंदोलन पर भी सवाल उठाया. कहा कि देखा जाता है कि जब सुखाड़-अकाल की स्थिति बनती है, आंदोलन होता है, विशेष पैकेज की मांग की जाती है, राहत कार्य चले, इस पर जोर दिया जाता है. लेकिन मूल सवाल यह है कि इससे किसानों को आखिर क्या लाभ मिलता है. आंदोलन से किसानों के खेतों तक न तो पानी पहुंचता है और न ही राहत.
इसलिए जरूरी यह है कि आंदोलन इस बात को लेकर कि खेतों तक पानी पहुंचे, ताकि किसान मजबूत हो और समस्या का स्थायी समाधान हो. इसके लिए यह जरूरी है कि किसानों को गोलबंद कर उन्हें जागरूक किया जाये. शासन व प्रशासन में बैठे लोगों को इस समस्या के स्थायी समाधान के लिए दबाव बनाया जाये. जब सरकार दबाव में आयेगी, तो उस तरह की कार्य योजना तैयार करेगी, जिससे समस्या का निदान हो सके.
जनप्रतिनिधियों पर साधा निशाना
पूर्व विधायक विनोद सिंह ने पलामू के जनप्रतिनिधियों पर भी निशाना साधा, कहा कि जब वह सदन में थे, तो राजनीतिक तौर पर पलामू का प्रभाव था. पलामू के जो प्रतिनिधि थे, उनमें एकजुटता भी थी. लेकिन यह एकजुटता सत्ता पर काबिज होने के लिए थी न कि पलामू की इस समस्या को दूर करने के प्रति कभी भी मुखर तरीके से बात नहीं की गयी. यह बात भी काफी दुर्भायपूर्ण है.
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