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कबराकला में रोम निर्मित एंफोरा मिला

– मिथिलेश– चटक काले अथवा गहरे कत्थई रंग का दोनों तरफ हत्थे वाला मर्तबान होता है एंफोरा. प्राचीन रोम में इसका उपयोग शराब अथवा तेल आदि तरल पदार्थो को रखने के लिए किया जाता था. हुसैनाबाद (पलामू) : हैदरनगर थाना अंतर्गत उत्तर कोयल तथा सोन नदी के संगम पर अवस्थित तथा पुरावशेषों के ढेर पर […]

– मिथिलेश

चटक काले अथवा गहरे कत्थई रंग का दोनों तरफ हत्थे वाला मर्तबान होता है एंफोरा. प्राचीन रोम में इसका उपयोग शराब अथवा तेल आदि तरल पदार्थो को रखने के लिए किया जाता था.

हुसैनाबाद (पलामू) : हैदरनगर थाना अंतर्गत उत्तर कोयल तथा सोन नदी के संगम पर अवस्थित तथा पुरावशेषों के ढेर पर बसे गांव कबरा कला में रोम निर्मित एंफोरा मिला है. यूं तो कबरा कला पुरातात्विक स्थल के रूप में विगत डेढ़ दशक से चर्चे में है, मगर एंफोरा मिलने से स्पष्ट हो गया कि ईसा की प्रारंभिक शताब्दियों में इसका संबंध विदेशों से भी रहा हैं.

इन बातों की जानकारी पुरातत्व शोध परिषद एवं हेरिटेज एसोसिएशन ऑफ इंडिया की संयुक्त टीम ने कबरा कला गांव से लौटने के बाद पत्रकारों को दी . पुरातत्व शोध परषिद के संयोजक इतिहासकार अंगद किशोर ने बताया कि एंफोरा चटक काले अथवा गहरे कत्थई रंग का दोनों तरफ हत्थे वाला मर्तबान होता है.

इसका उपयोग शराब तथा तेल आदि तरल पदार्थो को भरने के लिए किया जाता था. तंग गर्दन वाली सुराही की तहर एंफोरा की गर्दन भी काफी संकीर्ण होती है. इतिहासकार श्री किशोर ने बताया की दो से दाई हजार वर्ष पूर्व पाटलिपुत्र से सोन एवं नर्मदा नदी के किनारेकिनारे मुख्य सड़क मार्ग था, जो आगे चल कर रूपनाथ से दो मार्ग में बंट जाता था. दूसरा मार्ग नर्मदा नदी को किनारा पकड़ कर पश्चिम भारत जाता था.

यही मार्ग भडौच बंदरगाह जाता था. जहां से फारस तथा अरब के तटीय क्षेत्रों से होते हुए लालसागर को पार कर रोम जाते थे. इसी मुख्य सड़क मार्ग पर कबरा कला अवस्थित है. खेतों में कई एंफोरे मिले हैं, जो इंगित करता है कि उस समय कबरा कला के लोग रोम निर्मित मदिरा में काफी दिलचस्पी रखते थे.

हेरिटेज एसोसिएशन ऑफ इडिंया के सचिव तथा रांची विश्वविद्यालय के आर्केलॉजी एवं म्यूजिओलॉजी के व्यख्याता अभिषेक कुमार गुप्ता ने बताया की प्राचीन काल में कबरा कला एक ऐसा जंक्शन था, जहां से झारखंड , बिहार, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश तथा उत्तरप्रदेश जाने का मार्ग था. आवागमन का केंद्र होने के कारण यह गांव नव पाषण काल लगभग 4000 वर्ष पहले से लेकर लौह, बुद्ध, शूंग एवं गुप्त काल तक समृद्ध नगर था.

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