पाटन : पाटन प्रखंड के किशुनपुर में प्रथम वर्गीय पशु चिकित्सालय की स्थापना 2009-10 में हुई थी. चिकित्सालय का अपना भवन नहीं है. इसे किराये के कमरे में चलाया जाता है. जिस उद्देश्य से इस चिकित्सालय को खोला गया था, उस उद्देश्य को पूरा करने में यह पूरी तरह विफल रहा है.
स्थापना के बाद चिकित्सक की पदस्थापना हुई थी. कुछ दिन तो सब कुछ ठीक-ठाक रहा, लेकिन बाद में स्थिति बिगड़ती गयी. चिकित्सालय कंपाउंडर शंकर यादव के भरोसे छोड़ दिया गया. श्री यादव ने भी इस चिकित्सालय को गति दी.
लेकिन उनके ताबदले के बाद स्थिति बदतर हो गयी. नतीजा यह हुआ कि पशु चिकित्सालय अब पूरी तरह बंद है. दरवाजे पर ताला लटका हुआ है. इस कारण पाटन के किशुनपुर सहित दर्जनों गांवों के पशुपालकों को परेशानी हो रही है. पशुओं का इलाज कराने के लिए उन्हें काफी मशक्कत करनी पड़ती है. निजी चिकित्सक वसूली करते हैं.
गरमी में कई मवेशी इलाज के अभाव में मर जाते हैं. वर्तमान समय में कई पशुपालकों के मवेशी लंगडा बुखार सहित कई बीमारियों से ग्रसित हैं. उनको देखने वाला कोई नहीं है.
जो पशुपालक आर्थिक रूप से संपन्न हैं, वह अपने पशुओं का इलाज तो निजी चिकित्सकों से करा लेते हैं, लेकिन जो निर्धन पशुपालक हैं, वह अपने पशुओं का इलाज नहीं करा पाते हैं. पशु पालक कंचन उपाध्याय, महेंद्र राम,मंगरू राम ने बताया कि वैसे भी मवेशियों के दाम बढ़ रहे हैं.
बडी मुश्किल से मवेशियों की खरीदारी होती है, क्योंकि खेती करने का सहारा बैल है. बीमारी होने पर यदि बैल की मौत हो जाती है, तो उनकी खेती भी चौपट हो जाती है. पशु चिकित्सालय के खुलने से उन्हें लाभ मिलता था. पशुपालकों को यह भी पता नहीं है कि अब वह केंद्र बंद हो गया या सिर्फ कागज पर ही इसे चलाया जा रहा है. ग्रामीणों के अनुसार आज तक न तो यहां प्रखंड पशु चिकित्सा पदाधिकारी पहुंचे हैं और न ही कोई वरीय अधिकारी.
– रामनरेश तिवारी –