लातेहार : लातेहार जिला में माओवाद खात्मे की अंतिम पायदान पर माना जा रहा है. मदन जी, रंजन जी, बीरबल जी व करीम जी के मुख्यधारा में लौटने के बाद उनके दीर्घकालीन युद्ध नीति पर विराम तो लगाया था. तीन दशकों तक लोकतंत्र एवं राजनीति का विरोध करने वाले शीर्ष माओवादियों ने लोकतंत्र का रूख किया और विभिन्न राजनीतिक पार्टियों से जुड़ कर चुनाव में भी किस्मत आजमाया. जिनके इशारे पर इलाके में सन्नाटा पसर जाता था, उनके लगातार प्रयास के बाद भी जनता ने उन्हें अपना प्रतिनिधि नहीं चुना.
आत्मसमपर्ण की नीति से इस इलाके में माओवाद का प्रभाव काफी कम हुआ. नकुल यादव उर्फ नकुल जी जैसे शीर्षस्थ इनामी नक्सली के सरेंडर करने से यहां माओवादियों की रीढ़ टूट चुकी है. लगभग तीन दशकों तक नकुल ने संगठन के लिए थिंक टैंक के रूप में काम किया. वर्ष 1980 के दशक में क्रांतिकारी किसान कमेटी ने माओवाद का प्रचार प्रसार गांवों में किया और जनता की शिकायतों को आमंत्रित किया.
जन अदालतें लगायीं और फैसला देना प्रारंभ किया. यहां की जनता इनता प्रभावित हुई कि लगातार माओवाद का विस्तार होता गया. नकुल यादव ने इस बल पर इलाके में अपना प्रभाव जमाया. भूमि विवाद को लेकर उपजा माओवाद समाप्ति की ओर है. माओवादियों की राजधानी माना जाने वाले सरयू क्षेत्र में अब ये सिर्फ कुछ क्षणों के लिए ही टिक पा रहे हैं.