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आज ढूंढ़ने से भी नहीं मिलती लाह

लाह के क्षेत्र में कभी अग्रणी था लातेहार वर्ष 1976 में लाह का रिकार्ड उत्पादन हुआ था शेलेक एक्सपोर्ट प्रोमोशन काउंसिल में लातेहार के व्यापारियों को शामिल किया गया था लातेहार : गुजरे जमाने की बात हो गयी, जब यह कहा-सुना जाता था कि लातेहार लाह के उत्पादन में अग्रणी है. आज तो स्थिति यह […]

लाह के क्षेत्र में कभी अग्रणी था लातेहार

वर्ष 1976 में लाह का रिकार्ड उत्पादन हुआ था

शेलेक एक्सपोर्ट प्रोमोशन काउंसिल में लातेहार के व्यापारियों को शामिल किया गया था

लातेहार : गुजरे जमाने की बात हो गयी, जब यह कहा-सुना जाता था कि लातेहार लाह के उत्पादन में अग्रणी है. आज तो स्थिति यह है कि यहां ढूंढ़ने से भी लाह नहीं मिलती है. वर्ष 1976 में लाह उत्पादन के लिए वर्ल्ड गिनीज रिकार्ड बुक में अपना नाम दर्ज करनेवाले लातेहार जिला में लाह की खेती को मानो किसी की नजर लग गयी है.

60 से 90 के दशक तक लातेहार लाह के उत्पादन में सिरमौर समझा जाता था. तत्कालीन भारत सरकार के वाणिज्य मंत्रालय ने शेलेक एक्सपोर्ट प्रोमोशन काउंसिल, कोलकाता में विश्व के विभिन्न देशों के 64 सदस्यों को शामिल किया गया था.

इन सदस्यों में लातेहार के तत्कालीन अनुमंडल पदाधिकारी का नाम भी शामिल था. लाह की खेती में देश- दुनिया के व्यापारी बड़ी पूंजी निवेश करते थे, लेकिन आज स्थिति पूरी तरह बदली हुई है. अब यहां लाह की खेती नहीं के बराबर है. लगभग दो सौ बड़ी गद्दियां यहां बंद हो चुकी हैं. हुंडी एवं बिल जैसे हवाला कारोबारी जो यहां सिर्फ लाह की खेती एवं क्रय-विक्रय के लिए करोड़ों रुपये लेकर गद्दियों में बैठते थे, उनका यहां के बाजार से पूरी तरह पलायन हो चुका है.

लाह के व्यापारी या तो यहां से पलायन कर गये हैं या फिर अपना धंधा बदल लिया है. मालूम हो कि वर्ष 1997 में विश्व के आठ प्रमुख लाह उत्पादक देशों में लातेहार से निर्यात हुए लाह की क्वालिटी सबसे अच्छी साबित हुई थी. यहां के लाह उत्पादकों एवं व्यापारियों को वर्ल्ड ट्रैड सेंटर कोलकाता में पुरस्कृत किया गया था.

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