।। आशीष टैगोर ।।
* क्यों कांग्रेस कर रही थी चतरा संसदीय क्षेत्र से दावा
कांग्रेस प्रारंभ से ही चतरा संसदीय सीट पर अपना दावा कर रही थी. इसका प्रमुख कारण है कि चतरा संसदीय क्षेत्र में कांग्रेस तीन बार अपने सिर पर जीत का सेहरा बांधा है. जबकि सात बार दूसरे स्थान पर रही है. लगातार तीन लोकसभा चुनाव में दूसरे स्थान पर रहने के बाद वर्ष 1971 के कांग्रेस के शंकर दयाल सिंह ने चतरा संसदीय क्षेत्र से कांग्रेस का खाता खोला था.
इसके बाद वर्ष 1980 में रंजीत सिंह व वर्ष 1984 में योगेश्वर प्रसाद योगेश ने कांग्रेस को यहां से जीत दिलायी. हालांकि उसके बाद से चतरा संसदीय सीट में कांग्रेस का खाता नहीं खुल पाया है. वर्ष 1956 से 1967 तक लोकसभा चुनाव में कांग्रेस लगातार दूसरे स्थान पर रही. 1956 के लोकसभा चुनाव में स्वतंत्र पार्टी की विजया राजे ने कांग्रेस प्रत्याशी चपलेंदु भट्टाचार्य को हराया.
इसी प्रकार वर्ष 1962 व 1967 के लोकसभा चुनाव में स्वतंत्र पार्टी की विजया राजे ने ही क्रमश: त्रिभुवन नाथ व एसपी भदानी को हरा कर संसद-यात्रा की हैटट्रिक जमाई थी. लेकिन वर्ष 1971 में शंकर दयाल सिंह ने विजया राजे के विजय रथ को रोक दिया और पहली बार चतरा संसदीय क्षेत्र से कांग्रेस का परचम लहराया. लेकिन 1977 के लोकसभा चुनाव में शंकर दयाल सिंह अपनी सीट बचा नहीं सके और जनता पार्टी के सुखदेव प्रसाद वर्मा के हाथों उन्हें शिकस्त खानी पड़ी.
वर्ष 1980 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के रंजीत सिंह ने जनता दल के सुखदेव प्रसाद वर्मा को हरा कर दूसरी बार चतरा संसदीय क्षेत्र में कांग्रेस को जीत दिलायी. इसके 1984 में कांग्रेस के योगेश्वर प्रसाद योगेश ने भी जनता दल के उपेंद्र नाथ वर्मा ने हराया. इसके बाद से चतरा संसदीय सीट में कांग्रेस जीत के लिए तरसती रही.
वर्ष 1989 में कांग्रेस के योगेश्वर प्रसाद योगेश दूसरे स्थान पर रहे थे. वर्ष 1996 के लोकसभा चुनाव के बाद गठबंधन के तहत चतरा संसदीय सीट में कांग्रेस की सहयोगी दल राजद चुनाव लड़ती आयी है.
लेकिन वर्ष 2009 एवं 2014 में एक बार फिर कांग्रेस ने अपने बलबूते पर यहां से चुनाव लड़ा. लेकिन दोनो ही बार कांग्रेस प्रत्याशी धीरज प्रसाद साहु को दूसरे स्थान पर ही संतोष करना पड़ा. 2009 में निर्दलीय प्रत्याशी इंदर सिंह नामधारी एवं 2014 में निवर्तमान सांसद सुनील सिंह ने धीरज प्रसाद साहु को हराया.