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रात के अंधेरे में खोजना पड़ता है कोडरमा टाउन स्टेशन

जिला मुख्यालय से डेढ़ किलोमीटर दूरी पर स्थित कोडरमा टाउन रेलवे स्टेशन जब चालू हुआ, तो न केवल आसपास के दर्जनों गांव के लोग, बल्कि जिला मुख्यालय व झुमरीतिलैया से गिरिडीह आने-जाने वाले लोग भी खुश थे. लोग सपने देखने लगे कि अब कम समय व सुरक्षित यात्रा में सहूलियत होगी. यहीं नहीं साढ़े तीन […]

जिला मुख्यालय से डेढ़ किलोमीटर दूरी पर स्थित कोडरमा टाउन रेलवे स्टेशन जब चालू हुआ, तो न केवल आसपास के दर्जनों गांव के लोग, बल्कि जिला मुख्यालय व झुमरीतिलैया से गिरिडीह आने-जाने वाले लोग भी खुश थे. लोग सपने देखने लगे कि अब कम समय व सुरक्षित यात्रा में सहूलियत होगी.
यहीं नहीं साढ़े तीन वर्ष पूर्व जब यह स्टेशन चालू हुआ था, तो लोकाई, बदडीहा, तीनतारा, बसधरवा समेत स्टेशन के अगल-बगल के गांव के लोग रोजगार सृजन के सपने संजोए हुए थे. पर आज हालात यह है कि उम्मीदें धरी की धरी रह गयी, सुविधाएं नदारद है. रेलवे की उदासीनता के कारण यह स्टेशन आज उपेक्षाओं का दंश झेलने को मजबूर हैं. पेश है कोडरमा टाउन रेलवे स्टेशन की हालत पर रिपोर्ट.
कोडरमा बाजार : कोडरमा टाउन जैसा महत्वपूर्ण रेलवे स्टेशन विभागीय लापरवाही व उदासीनता के कारण आज उपेक्षाओं का दंश झेलने को मजबूर है. इस स्टेशन में यात्रियों के लिए न तो कोई सुविधा है और न ही सुरक्षा के लिहाज से कोई व्यवस्था.
आलम यह है कि यहां से गिरिडीह के लिए कोवाड़ तक जानेवाले यात्री राम भरोसे यात्रा करते हैं. ऐसा नहीं है कि यहां शुरुआती दौर से ही व्यवस्था खस्ताहाल है, बल्कि रख-रखाव के अभाव और विभागीय उपेक्षाओं के कारण यह स्थिति उत्पन्न हुई है. कहने को तो स्टेशन का नाम कोडरमा टाउन है, मगर व्यवस्था ग्रामीणों की तरह भी नहीं. बड़ा भवन है, लेकिन एक भी रेलवे कर्मचारी यहां पदस्थापित नहीं हैं. जगह-जगह पर स्ट्रीट लाइट के लिए बिजली के खंभे हैं, मगर एक भी लाइट नहीं जलती है. इससे रात में अंधेरा छाया रहता है. इससे यात्रियों को काफी परेशानी होती है. जानकार यात्री टॉर्च के सहारे स्टेशन तक आते जाते हैं, पर नये यात्रियों के लिए अंधेरे में स्टेशन खोजना भी मुश्किल हो जाता है. कभी-कभी तो यात्री अगल-बगल के गड्ढे में गिर भी जाते हैं, मगर कोई देखने वाला नहीं है.
फुटपाथ पर बिकता है रेल टिकट
यहां पर व्यवस्था का आलम है कि स्टेशन भले ही बड़ा भवन में है, मगर कर्मचारियों के अभाव में यात्रियों को फुटपाथ से टिकट खरीदना पड़ता है. टिकट विक्रेता बाबूलाल यादव ने बताया कि वह ठेका पर टिकट बेचता है. उसमें उसे 15 प्रतिशत कमीशन मिलता है. यादव ने बताया कि वह पिछले 31 वर्षों से इस व्यवसाय से जुड़ा है. इसके पूर्व वह यदुटांड़ में टिकट बेचता था.
यहां वह वर्ष 2013 से टिकट बेचने का काम कर रहा है. बाबूलाल ने यह भी बताया कि प्रतिमाह इस स्टेशन पर करीब 20 से 25 हजार का टिकट बिकता है. बताया कि स्टेशन में सुविधाओं और सुरक्षा का अभाव है. 65 वर्षीय बाबूलाल की मानें तो यहां बने क्वार्टर में मात्र चार या पांच गैंगमैन ही रहते हैं, जो केवल रेलवे लाइन की रख-रखाव का काम करते हैं. पूरे स्टेशन परिसर में केवल बाबूलाल ही रहता है.
क्यों महत्वपूर्ण है यह स्टेशन
यह स्टेशन कोडरमा से गिरिडीह आनेजाने के लिए सबसे महत्वपूर्ण है. गिरिडीह जानेवाले यात्री यहां से कोवाड़ जल्द पहुंच जाते हैं और कोवाड़ से ऑटो पकड़ कर महज कुछ ही मिनट में गिरिडीह पहुंच जाते हैं, जबकि सड़क मार्ग से जाने पर यात्रियों को करीब तीन घंटे से भी अधिक समय लग जाता है. इसमें किराया भी अधिक लगता है. इस तरह देखा जाये, तो ट्रेन का सफर सुगम व सस्ता है. यही कारण है कि यहां प्रतिदिन यात्रियों की संख्या में बढ़ोत्तरी हो रही है. गिरिडीह से झुमरीतिलैया आने जानेवाले व्यवसायियों के लिए भी यह व्यवस्था पहली पसंद माना जा रहा है.
शौचालय और पानी की सुविधा नहीं
नवलशाही निवासी पेशे से राज मिस्त्री महबूब अंसारी ने बताया कि ट्रेन शुरू होने से हमे काफी सहूलियत हुई, मगर स्टेशन पर शौचालय व पेयजल की सुविधा नहीं होने से परेशानी होती है. खासकर महिलाओं को और परेशानियों का सामना करना पड़ता है. चापानल भी खराब पड़ा है. शंकर कुमार ने बताया कि स्टेशन में सुरक्षा व्यवस्था व कर्मियों के नहीं रहने के कारण रात में हमेशा भय बना रहता है. रविवार को ट्रेन नहीं चलने से भी परेशानी होती है, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों से प्रतिदिन मजदूरों का आवागमन काम की खोज में कोडरमा/तिलैया लगा रहता है.
सड़क नहीं, पगडंडी व पटरियों के सहारे पहुंचते हैं
जमुआ देवरी निवासी सुरेंद्र सिंह ने बताया कि जब से ट्रेन की सुविधा शुरू हुई है, तभी से हम सफर कर रहे हैं, लेकिन स्टेशन तक पहुंचने के लिए सड़क मार्ग की सुविधा नहीं होने से लोगों को भारी परेशानी उठानी पड़ती है. यहां आने तथा यहां से कोडरमा जाने के लिए या तो पटरियों का सहारा लेना पड़ता है या फिर पांच फिट गहरे नाले को किसी तरह पार करना पड़ता है. इसमें गिरने की संभावना हमेशा बनी रहती है. सड़क की सुविधा नहीं होने से आवागमन के लिए कोई वाहन यहां नहीं मिलते हैं.
कोडरमा-कोवाड़ रेल लाइन पर यात्रियों की सुविधा के लिए ट्रेन का परिचालन शुरू किया गया है. यात्री इसका लाभ भी ले रहे हैं. फिलहाल इस रूट पर स्थित स्टेशनों का काम अंडर कंस्ट्रक्शन है. फूल फ्लेजर काम नहीं हुआ है, अभी इसमें समय लगेगा. सिर्फ टिकट बिक्री कर यात्रियों को ट्रेन की सुविधा दी जा रही है. जब तक फुल फ्लेजर काम नहीं हो जाता है, थोड़ी परेशानी होगी. हालांकि, लोगों की मूलभूत समस्याओं को दूर करने के लिए पहल लगातार की जा रही है. पानी की समस्या है, तो उसे दूर किया जायेगा.
एसके वर्णवाल, सीटीआइ कोडरमा
77 किमी की दूरी और किराया मात्र 20 रुपये
बाबूलाल ने बताया कि कोडरमा टाउन से कोवाड़ की दूरी 77 किमी है, जिसका किराया मात्र 20 रुपये है. इसके अलावा इस मार्ग पर पड़नेवाले अन्य स्टेशन महेशपुर, नवलशाही, नावाडीह, राकेश बाग, धनवार (राजधनवार), रेमा, धुरेता, जमुआ, जोरा शाख के बाद कोवाड़ है. इसमें से अधिकतर स्टेशन तक जाने का किराया 10 रुपये है. इन स्टेशनों में से कई स्टेशनों पर पर्याप्त सुविधा उपलब्ध है.
ट्रेन का शिड्यूल
ट्रेन का कोडरमा टाउन स्टेशन पर आगमन सुबह 6:15 बजे है. यह ट्रेन कोडरमा होते हुए कोवाड़ जाती है. पुनः 11:30 बजे लौटती है. फिर दोपहर 3:15 बजे कोडरमा होते हुए कोवाड़ जाती है और पुनः रात 8:20 बजे लौटती है.

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