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डेवलपमेंट एक्शन प्लान में हर सहयोग देगा केंद्र
गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने की नक्सलवाद की स्थिति की समीक्षा रांची : गृह मंत्री ने रविवार को सीआइएसएफ कैंपस में झारखंड में नक्सलवाद और छोटे उग्रवादी संगठनों की स्थिति की समीक्षा की. उन्होंने 13 इलाकों में चल रहे डेवलपमेंट एक्शन प्लान में हर तरह के सहयोग का भरोसा दिलाया और कहा कि भाकपा माओवादी के […]
गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने की नक्सलवाद की स्थिति की समीक्षा
रांची : गृह मंत्री ने रविवार को सीआइएसएफ कैंपस में झारखंड में नक्सलवाद और छोटे उग्रवादी संगठनों की स्थिति की समीक्षा की. उन्होंने 13 इलाकों में चल रहे डेवलपमेंट एक्शन प्लान में हर तरह के सहयोग का भरोसा दिलाया और कहा कि भाकपा माओवादी के साथ-साथ अन्य उग्रवादी संगठनों के खिलाफ भी कार्रवाई जारी रखें. राज्य सरकार की तरफ से डेवलपमेंट एक्शन प्लान के तहत पुल-पुलिया निर्माण की मंजूरी देने की मांग की गयी थी.
इसके बाद गृह मंत्री ने कहा कि झारखंड में टीपीसी, पीएलएफआई, जेजेएमपी जैसे संगठन हैं. इन संगठनों के विस्तार को रोकने और संगठन को खत्म करने पर काम करें. बैठक में राज्य सरकार की ओर से बताया गया कि पिछले दो सालों से नक्सलियों के खिलाफ रणनीति के तहत अभियान चलाया जा रहा है. अधिकारियों ने आगे की रणनीति भी गृह मंत्री को बतायी. गृह मंत्री ने नक्सलियों के खिलाफ चलाये जा रहे अभियान को जारी रखने को कहा.
पारसनाथ-झुमरा पहाड़ी पर स्थिति बेहतर : सूत्रों के मुताबिक पुलिस मुख्यालय के अधिकारियों ने एक प्रजेंटेशन के जरिये गृह मंत्री को नक्सलियों के खिलाफ की गयी कार्रवाईयों की जानकारी दी. गृह मंत्री को बताया गया कि झुमरा पहाड़ी पर पहले से फोर्स मौजूद है.
हाल में पहाड़ी के निचले इलाकों में कैंप खोले गये हैं. इस कारण झुमरा पहाड़ी पर नक्सलियों की गतिविधियों पर काफी हद तक रोक लगाया जा सका है. इसी तरह पारसनाथ पहाड़ी पर भी तीन कैंप और हेलीपैड स्थापित किया जा चुका है. कुछ और कैंप खोले जायेंगे. इसके बाद पारसनाथ पहाड़ी भी नक्सलियों से मुक्त हो जायेगा.
सीमा क्षेत्र है चुनौती: बैठक में अधिकारियों ने जानकारी दी कि बिहार और छत्तीसगढ़ से सटे इलाकों में नक्सलियों का दस्ता आता रहता है. नक्सलियों के दस्ते द्वारा झारखंड में घुस कर घटना को अंजाम दिया जाता है. सीमा क्षेत्र पर पुलिस कैंप खोल कर इसे रोकने की योजना पर काम चल रहा है.
ओवरलोडिंग व प्रदूषण से परेशानी
अगले माह तक आरएफआइडी काम करने लगेगा : एसके सिंह
क्षेत्र में आरएफआइडी सिस्टम अगले माह तक काम करने लगेगा. इस सिस्टम के चालू हो जाने से डंपरों में ओवरलोडिंग की समस्या समाप्त होने के साथ प्रदूषण पर भी अंकुश लग जायेगा. डंपरों से कोयला चोरी व हेराफेरी पर भी नियंत्रण लगेगा. आरएफआइडी सिस्टम के प्रोजेक्ट को-ऑर्डिनेटर सह इएंडटी विभाग के सीनियर इंजीनियर एसके सिंह ने यह जानकारी दी. उन्होंने बताया कि पिपरवार क्षेत्र में इक्विपमेंट इंस्टाॅलेशन का काम पूरा कर लिया गया है.सिस्टम की कमिशनिंग के बाद ट्रॉयल का काम चल रहा है. लगभग 400 डंपरों में वीटीएस लगाये जा चुके हैं. 15 कांटा घरों में सीसीटीवी लग चुका है व 16 में लगाना शेष रह गया है. एक बार सिस्टम शुरू हो जाने से एरिया को इसका पूरा लाभ मिलने लगेगा. उन्होंने बताया कि यह सिस्टम पूरे सीसीएल में लागू किया जा रहा है. इस पर सीसीएल प्रबंधन 36 करोड़ रुपये खर्च कर रहा है. अशोक परियोजना खदान से आरसीएम साइडिंग का काम विप्रो कंपनी कर रही है, जबकि सीएचपी/सीपीपी से बचरा साइडिंग में सिस्टम लगाने का काम ऑरेंज कंपनी कर रही है.
पिपरवार : पिपरवार एरिया की खदानों व विभिन्न कोयला स्टॉक से डंपरों से ओवरलोडिंग जारी है. परिवहन विभाग के सख्त निर्देश व प्रबंधन द्वारा ओवरलोडिंग पर अंकुश लगाने के सारे प्रयास निरर्थक साबित हुए हैं. स्थानीय प्रशासन की कठोर कार्रवाई की चेतावनी का भी डर किसी को नहीं है. परिवहन विभाग के नियमानुसार वाहनों की सीसी (कैरिंग कैपेसिटी) से अधिक मात्रा में माल की ढुलाई अवैध है. पिपरवार में काम करनेवाले ट्रांसपोर्टर परिवहन विभाग, प्रशासन व प्रबंधन को धता बता रहे हैं. ओवरलोडिंग के कारण लदा कोयला सड़कों पर गिरता है, जो पिस कर धूल में बदल जाता है. जिससे प्रदूषण होता है. बड़ी संख्या में लोग कई तरह की सांस की व्याधियों से ग्रसित हो चुके हैं. ओवरलोडिंग के कारण आये दिन दुर्घटनाएं होती रहती है.
अब तक नहीं लगा आरएफआइडी सिस्टम : आरएफआइडी (रेडियो फ्रिक्वेंसी आइडेंटीफिकेशन डिवाइस) एक तरह का सिस्टम है. जिसके माध्यम से ट्रांसपोर्टिंग से जुड़े डंपरों की निगरानी की जाती है. ट्रांसपोर्टिंग से जुड़े डंपरों में शक्तिशाली चिप लगायी जाती है, जिसे तकनीकी भाषा में वीटीएस (व्हीकल ट्रेसिंग सिस्टम) कहा जाता है. खदान से निकलने व साइडिंग पहुंचने के दोनों छोर के कांटा घरों में भी रेडियो फ्रिक्वेंसी के सिस्टम लगे होते हैं.
एक छोर के कांटा घर में डंपर का वजन होने के साथ वीटीएस के कारण पूरे सिस्टम को संबंधित डंपर की जानकारी रहती है. पूरा सिस्टम कंप्यूटर प्रणाली से जुड़ा रहता है. जब डंपर साइडिंग या गंतव्य पहुंचता है तो वहां लगे सीसीटीवी कैमरे के माध्यम से उसकी पहचान होती है. सब कुछ ठीक रहने पर कांटा घर का बैरियर स्वत: खुल जाता है.
20 से 30 सेकेंड के दौरान कोयला लदे डंपर का वजन हो जाता है. इस दौरान बीच में किसी तरह की गड़बड़ी होने पर यानी कोयला चोरी करने, गिराने या किसी तरह की हेराफेरी करने पर मामला पकड़ में आ जाता है. बीच रास्ते में भी वीटीएस की मदद से संबंधित डंपरों के लोकेशन की जानकारी मिलती रहती है. इस सिस्टम के चालू हो जाने पर ओवरलोडिंग के साथ कोयला चोरी व प्रदूषण पर पर भी अंकुश लगेगा. पिपरवार क्षेत्र में इस सिस्टम पर पिछले तीन साल से काम चल रहा है जो अब तक पूरा नहीं हो सका है.
ओवरलोडिंग के लिए जिम्मेदार कौन?
पिपरवार में डंपरों से कोयला ढुलाई में ओवरलोडिंग की समस्या के लिए सीधे तौर पर पिपरवार प्रबंधन को जिम्मेवार माना जा रहा है. सूत्र बताते हैं कि स्थानीय प्रबंधन का ट्रांसपोर्टरों पर अंकुश नहीं रहने के कारण समस्या जस की तस बनी हुई है. बड़े ट्रांसपोर्टरों का सीधा संपर्क सीसीएल मुख्यालय से रहता है.
स्थानीय प्रबंधन के लगातार प्रयास व चेतावनी के बावजूद उन पर कोई असर नहीं होता. प्रबंधन के पास ऐसी कोई एजेंसी या इंफ्रास्ट्रक्चर नहीं है जो इस पर नकेल कस सके. डंपर मालिक नहीं चाहते कि ओवरलोडिंग ढुलाई हो. इसका वे भी विरोध करते हैं, लेकिन ट्रांसपोर्टर सिंडिकेट के आगे वे बेबस हैं. डंपर मालिकों को निर्धारित ढुलाई भाड़ा देकर उनसे क्षमता से अधिक कोयला ढुलाई करा कर अनुचित मुनाफा कमाया जा रहा है. खलारी डीएसपी की सख्त कार्रवाई की चेतावनी भी बेअसर है.
पिछले एक सप्ताह में सुधार के नाम पर गिने-चुने डंपरों में तिरपाल अवश्य ढका जा रहा है, लेकिन सिर्फ तिरपाल ढकने से ओवरलोडिंग पर अंकुश नहीं लगा है. जानकारों की माने तो इसका एकमात्र उपाय कोयला लदे डंपरों के वजन किये जाने की सुदृढ़ व्यवस्था से ही संभव है. इसके लिए आरएफआइडी सिस्टम कारगर साबित हो सकती है.
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