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हाथियों के आतंक से निजात नहीं
गज परियोजना साबित हो रही है महज खानापूर्ति खूंटी. तमाड़ क्षेत्र में जंगली हाथियों का उत्पात जारी है. इसके चलते जान-माल की काफी हानि हो रही है. वहीं केंद्र सरकार के द्वारा स्वीकृत गज परियोजना का क्रियान्वयन अब तक सही तरीके से नहीं किया जा सका है. हालांकि योजना मद में केंद्र सरकार ने शत-प्रतिशत […]
गज परियोजना साबित हो रही है महज खानापूर्ति
खूंटी. तमाड़ क्षेत्र में जंगली हाथियों का उत्पात जारी है. इसके चलते जान-माल की काफी हानि हो रही है. वहीं केंद्र सरकार के द्वारा स्वीकृत गज परियोजना का क्रियान्वयन अब तक सही तरीके से नहीं किया जा सका है. हालांकि योजना मद में केंद्र सरकार ने शत-प्रतिशत राशि कई वर्ष पूर्व ही राज्य सरकार को उपलब्ध करा दी है.
योजना की प्रगति तो नहीं, पर वन विभाग का प्रयास हाथियों के द्वारा मारे गये प्रभावितों को मुआवजा बांटने तक ही सीमित है. ज्ञात हो कि प्रभावित क्षेत्रों में हाथी परंपरागत ट्रैक से आते-जाते थे. यहां पहले जंगल हुआ करता था. अब जंगलों को साफ कर वहां गांव बस गये हैं. हाथी अपने परंपरागत ट्रैक का इस्तेमाल करते हैं तो रास्ते में गांव में वे पहुंच जाते हैं.
जंगलों की अंधाधुंध कटाई के कारण भोजन की भी कमी हो गयी है.गज परियोजना के क्या थे उद्देश्य : गज परियोजना का मुख्य उद्देश्य राज्य में प्रवासरत हाथियों का संरक्षण व संवर्धन, जंगलों में इलेक्ट्रिक फैनसिंग करना, ताकि हाथी मानव आबादी की ओर न जा सके. स्थानीय ग्रामीणों को प्रशिक्षित करने व जंगलों में हाथियों के लिए भोजन व पानी उपलब्ध कराना था.
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