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नक्सल प्रभावित डऊगड़ा गांव में शहद ने घोली मिठास
छोटी-छोटी कोशिशों से बड़ी-बड़ी समस्याओं का समाधान हो सकता है. देश के सबसे ज्यादा नक्सल प्रभावित राज्यों में शुमार झारखंड में कुछ सामािजक संस्थाओं की पहल और नागरिकों की इच्छाशक्ति ने इस समस्या को लगभग सीमित कर दिया है. आज भी रांची से सटा खूंटी जिला नक्सलियों का गढ़ माना जाता है. लेकिन इसी जिले […]
छोटी-छोटी कोशिशों से बड़ी-बड़ी समस्याओं का समाधान हो सकता है. देश के सबसे ज्यादा नक्सल प्रभावित राज्यों में शुमार झारखंड में कुछ सामािजक संस्थाओं की पहल और नागरिकों की इच्छाशक्ति ने इस समस्या को लगभग सीमित कर दिया है. आज भी रांची से सटा खूंटी जिला नक्सलियों का गढ़ माना जाता है.
लेकिन इसी जिले के डऊगड़ा गांव के एक युवक ने शहद पालन में रुचि दिखायी, रामकृष्ण मिशन ने उसकी मदद की और आज यह गांव उग्रवाद और अपराध से काफी दूर है. गांव के लोग शिक्षा और खेती के जरिये अपना और गांव का विकास कर रहे हैं.
मनोज जायसवाल
मुरहू प्रखंड का डऊगड़ा गांव. नक्सलवाद से प्रभावित गांव. हर तरफ बेरोजगारी का आलम. लेकिन, लगभग चार दशक पहले गांव में हरित क्रांति की जो पहल की गयी थी, उसने यहां के लोगों की तकदीर ही बदल दी. पहले इस गांव में अंधविश्वास इतना अधिक था कि गांव की चार वृद्ध महिलाओं को डायन बता कर गांव से निकाल दिया. इस गांव की तसवीर बदलने में तब (1972 में) नौवीं पास युवा सामू मुंडा के उद्यम और रामकृष्ण मिशन ने सक्रिय भूमिका निभायी. आज के समय में गांव बेहद जागरूक है. यहां के युवा स्वावलंबी हैं. स्वरोजगार करते हैं और व्यसन से दूर हो रहे हैं.
दरअसल, मुरहू से करीब छह किलोमीटर दूर स्थित 400 एकड़ में बसे इस गांव के सामू मुंडा को बचपन से मधुमक्खी पालन करने का शौक था. वर्ष 1972 मेंं इसकी जानकारी रामकृष्ण मिशन को मिली.
रामकृष्ण मिशन ने सामू को मधुमक्खी रखने के लिए 12 बक्से दिये. सामू ने महज डेढ़ माह के अंदर बक्सों में मधुमक्खी पकड़ कर आश्रम को दे दिया. सामू की सक्रियता को देखते हुए रामकृष्ण मिशन के संचालकों ने सामू को मधुमक्खी पालन के लिए विशेष रूप से प्रशिक्षित किया. वर्ष 1984 मेंं रामकृष्ण मिशन आश्रम द्वारा रांची के मोरहाबादी में आयोजित युवा सम्मेलन में सामू भी शामिल हुआ. सम्मेलन में देश और गांव पर चर्चा हुई.
सम्मेलन की बातें सामू के मन को भा गयीं. उसने गांव के विकास का संकल्प लिया और डऊगड़ा में 16 जून, 1984 को रामकृष्ण मिशन से संबद्ध विवेकानंद सेवा संघ की स्थापना की. सामू की मदद के लिए ग्रामीणों ने तुरंत श्रमदान कर 1985 में एक भवन बना दिया. यहां रात्रि पाठशाला शुरू हुई. 14 एकड़ भूमि पर फलदार पौधे लगाये गये. उन्नत किस्म के बीजों व आधुनिक संयत्रों के माध्यम से खेती शुरू की गयी. रामकृष्ण मिशन ने गांव में 36 कूपों का निर्माण करवाया. इससे गांव के लोगों में खेती के प्रति उत्साह बढ़ा.
सामू के नेतृत्व में ग्रामीणों ने श्रमदान कर दो तालाब खोद दिये. रामकृष्ण मिशन और प्रखंड कार्यालय ने गांव को 43 पंपसेट और दो ट्रैक्टर उपलब्ध कराये. रामकृष्ण मिशन के वैज्ञानिक गांव का दौरा कर उन्नत कृषि से किसानों को अवगत कराते रहे. इसके बाद तो सामू के नेतृत्व में यहां के किसानों ने गांव में हरित क्रांति ला दी. गांव के करीब 100 परिवार को जब कृषि से अच्छी आय होने लगी, तो विवेकानंद सेवा संघ कोष से सामू ने निर्धन किसानों को महज एक प्रतिशत ब्याज पर ऋण देना शुरू किया. इस राशि से किसानों ने अपनी खेती को और समृद्ध किया. अपनी परेशानियों को दूर किया.
आज यह गांव टमाटर, मटर, धान, गेहूं व अन्य मौसमी सब्जियों के उत्पादन में खूंटी जिला में सबसे आगे है. मजेदार बात यह है कि यहां के किसान विशेषकर टमाटर व मटर सीजन की शुरुआत में ही खेती करते हैं, जिससे अच्छा-खासा मुनाफा होता है.
गांव के किसान शहद और मशरूम से भी अच्छी-खासी कमाई कर लेते हैं. अधेड़ हो चुके सामू को इस बात की संतुष्टि है कि उसके गांव की तकदीर बदल चुकी है. हालांकि, इस बात की तकलीफ भी है कि वह अपने लिए एक पक्का मकान नहीं बना सका. गांव की पहचान बनानेवाला सामू आज भी झोपड़ी में रहता है.
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