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खूंटी : सीमित साधन में ही चुनाव लड़ना होता था, ना सड़क थी ना गाड़ियां, चूड़ा-गुड़ ले निकल जाते थे : कड़िया मुंडा
खूंटी : समय के साथ चुनाव प्रचार का तरीका भी बदलता गया है़ खूंटी वाला इलाका काफी दुर्गम है. लोकसभा की भौगोलिक स्थिति भी काफी अलग है. शुरुआती दौर में चुनाव प्रचार केवल पैदल ही होता था. चूड़ा-गुड़ लेकर निकल जाते थे. सांसद कड़िया मुंडा कहते हैं कि सीमित साधन में ही चुनाव लड़ना होता […]
खूंटी : समय के साथ चुनाव प्रचार का तरीका भी बदलता गया है़ खूंटी वाला इलाका काफी दुर्गम है. लोकसभा की भौगोलिक स्थिति भी काफी अलग है. शुरुआती दौर में चुनाव प्रचार केवल पैदल ही होता था. चूड़ा-गुड़ लेकर निकल जाते थे. सांसद कड़िया मुंडा कहते हैं कि सीमित साधन में ही चुनाव लड़ना होता था. दीवार लेखन और पंपलेट ही सहारा था.
कार्यकर्ता घर से निकल जाते थे, तो कहां रुकेेंगे इसका भी ठिकाना नहीं रहता था. जनता का प्यार आगे का राह दिखाता था. व्यक्तिगत संपर्क काफी महत्वपूर्ण होता था. वर्तमान सांसद कड़िया मुंडा जब 70 के दशक में राजनीति में सक्रिय थे. पहला चुनाव के समय तब गांवों तक पहुंचने के लिए सड़कें नहीं हुआ करती थी. वे बताते हैं कि उस दौरान उम्मीदवार पंपलेट और माइक के द्वारा चुनाव प्रचार किया करते थे़ साइकिल ही मुख्य सहारा था.
उस दौरान इलाके में गाड़ियां भी बहुत कम होती थी. कार्यकर्ता भी पार्टी के लिए समर्पित हुआ करते थे़ इसलिए चुनाव प्रचार में खर्च भी बहुत कम हुआ करता था. कार्यकर्ता अपने साथ चूड़ा बांध कर चुनाव प्रचार करने निकलते थे़ उनके साथ-साथ उम्मीदवार भी साथ चलते थे़.
कई बार तो चुनाव प्रचार में कई दिन गुजर जाया करता था़ जहां रात होती थी, वहीं सो जाते थे़ उस दौरान प्रत्याशी और कार्यकर्ता साथ मिल कर वहीं चूड़ा खाकर अपना गुजारा चलाते थे़ 70 के दशक में चुनाव प्रचार महज कुछ हजार रुपये में हो जाता था़. श्री मुंडा कहते हैं कि वर्ष 2000 के बाद चुनाव प्रचार का खर्च काफी बढ़ गया है़ अब तो चुनाव प्रचार में लाखों-करोड़ों रुपये चुनाव प्रत्याशी खर्च करने लगे हैं.
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