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वामन विष्णु का पांचवां अवतार : स्वामी सच्चिदानंद

श्रीमत भागवत कथा के तीसरे दिन वामन अवतार का हुआ पाठ जामताड़ा : शहर के बाजार रोड स्थित दुर्गा मंदिर में आठ दिवसीय श्रीमदभागवत कथा का तीसरे दिन वामन अवतार की कथा स्वामी सचिदानंद द्वारा श्रद्धालुओं को सुनाया गया. उन्होंने बताया कि वामन अवतार भगवान विष्णु का पांचवां अवतार है. भगवान की लीला अनंत है […]

श्रीमत भागवत कथा के तीसरे दिन वामन अवतार का हुआ पाठ

जामताड़ा : शहर के बाजार रोड स्थित दुर्गा मंदिर में आठ दिवसीय श्रीमदभागवत कथा का तीसरे दिन वामन अवतार की कथा स्वामी सचिदानंद द्वारा श्रद्धालुओं को सुनाया गया. उन्होंने बताया कि वामन अवतार भगवान विष्णु का पांचवां अवतार है. भगवान की लीला अनंत है और उसी में से एक वामन अवतार है. इसके विषय में श्रीमद्भगवद पुराण में एक कथा है. वामन अवतार कथानुसार देव और दैत्यों के युद्ध में दैत्य पराजित होने लगते हैं.
पराजित दैत्य मृत एवं आहतों को लेकर अस्ताचल चले जाते हैं और दूसरी ओर दैत्यराज बलर इंद्र के वज्र से मृत हो जाते हैं तब दैत्यगुरु शुक्राचार्य अपनी मृत संजीवनी विद्या से बली और दूसरे दैत्य को भी जीवित एवं स्वस्थ कर देते हैं. राजा बली के लिए शुक्राचार्यजी एक यज्ञ का आयोजन करते हैं तथा अग्नि से दिव्य रथ, बाण, अभेद्य कवच पाते हैं. इससे असुरों की शक्ति में वृद्धि हो जाती है और असुर सेना अमरावती पर आक्रमण करने लगती हैं.
इंद्र को राजा बली की इच्छा का ज्ञान होता है कि राजा बली इस सौ यज्ञ पूरे करने के बाद स्वर्ग को प्राप्त करने में सक्षम हो जायेंगे. तब इंद्र भगवान विष्णु की शरण में जाते हैं. उन्होंने कहा कि तब भगवान विष्णु उनकी सहायता करने का आश्वासन देते हैं और भगवान विष्णु बावन रुप में माता अदिति के गर्भ से उत्पन्न होने का वचन देते हैं. दैत्यराज बली द्वारा देवों के पराभव के बाद कश्यपजी के कहने से माता अदिति पयोव्रत का अनुष्ठान करती हैं
जो पुत्र प्राप्ति के लिए किया जाता है. तब भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की द्वादशी के दिन माता अदिति के गर्भ से प्रकट हो अवतार लेते हैं तथा ब्रह्मचारी ब्राह्मण का रूप धारण करते हैं. महर्षि कश्यप ऋषियों के साथ उनका उपनयन संस्कार करते हैं बावन बटुक को महर्षि पुलह ने यज्ञोपवित, अगस्त्य ने मृगचर्म, मरीची ने पलाश दण्ड, आंगिरस ने वस्त्र, सूर्य ने छात्र, भृगु ने खड़ाऊ, गुरु देव जनेऊ तथा कमण्डलु, अदिति ने कोपीन, सरस्वती ने रुद्राक्ष माला तथा कुबेर ने भिक्षा पात्र प्रदान किए. तत्पश्चात भगवान वामन पिता से आज्ञा लेकर बलि के पास जाते हैं.
उस समय राजा बली नर्मदा के उत्तर तट पर अंतिम यज्ञ कर रहे होते हैं. वामन अवतारी श्रीहरि, राजा बली के यहां भिक्षा मांगने पहुंच जाते हैं. ब्राह्मण बने श्रीविष्णु भीक्षा में तीन पग भूमि मांगते हैं. राजा बली दैत्यगुरु शुक्राचार्य के मना करने पर भी अपने वचन पर अडिग रहते हुए श्रीविष्णु को तीन पग भूमि दान में देने का वचन कर देते हैं. वामन रूप में भगवान एक पग में स्वर्गादि उर्ध्व लोकों को ओर दूसरे पग में पृथ्वी को नाप लेते हैं. अब तीसरा पग रखने को कोई स्थान नहीं रह जाता है. बली के सामने संकट उत्पन्न हो गया. राजा बली यदि अपना वचन नहीं निभाए तो अधर्म होगा. इसलिए बली अपना सिर भगवान के आगे कर देता है और कहता है तीसरा पग आप मेरे सिर पर रख दीजिए.
वामन भगवान ने ठीक वैसा ही करते हैं और बलि को पटल लोक में रहने का आदेश करते हैं. बली सहर्ष भवदाज्ञा को शिरोधार्य करता है. बली द्वारा वचन पालन करने पर भगवान श्रीविष्णु अत्यंत प्रसन्न होते हैं और दैत्यराज बली को वर मांगने को कहते हैं. इसके बदले में बली रात-दिन भगवान को अपने सामने रहने का वचन मांग लेता है. श्रीविष्णु को अपना वचन का पालन करते हुए पातललोक में राजा बली का द्वारपाल बनना स्वीकार करते हैं. स्वामी जी ने कहा कि इसलिये किसी को अहंकारी नहीं होना चाहिए. अहंकार ही मनुष्य का नाश का कारण बनता है. प्रवचन खत्म होने के उपरांत आरती एवं प्रसाद वितरण किया गया.

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