जामताड़ा : मां जिसकी कोई परिभाषा नहीं. मां के आंचल की छांव में बच्च इस दुनिया से रूबरू होता है. बच्चे के दुख से मां दुखी हो जाती है, तो बच्चे की खुशी पर मां खुद को सबसे सुखी मानती है.
बदलते जमाने व आधुनिकता के इस दौर में पारिवारिक संबंधों का महत्व कम होता जा रहा है. इसके बावजूद मां का स्थान कोई नहीं ले सकता और उसकी कमी कोई पूरी नहीं कर सकता है.