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सिदो-कान्हू व तिलका मांझी आये याद

जामताड़ा : गांधी मैदान में मांझी परगना सरदार महासभा और जिला सरना धोरोम समिति द्वारा 160 वां संताल परगना जिला स्थापना दिवस मनाया गया. कार्यक्रम की अध्यक्षता मांझी परगना सरदार महासभा के कोषाध्यक्ष विशेश्वर मरांडी ने की. इस अवसर पर संताल हूल के अमर नायक वीर सिदो-कान्हू एवं तिलका मांझी के चित्र पर माल्यार्पण किया […]

जामताड़ा : गांधी मैदान में मांझी परगना सरदार महासभा और जिला सरना धोरोम समिति द्वारा 160 वां संताल परगना जिला स्थापना दिवस मनाया गया. कार्यक्रम की अध्यक्षता मांझी परगना सरदार महासभा के कोषाध्यक्ष विशेश्वर मरांडी ने की. इस अवसर पर संताल हूल के अमर नायक वीर सिदो-कान्हू एवं तिलका मांझी के चित्र पर माल्यार्पण किया गया. वहीं अंगरेज शासक द्वारा किये गये अत्याचार पर चर्चा की गयी.
महासभा के महासचिव बाबूलाल सोरेन ने कहा कि संताल विद्रोह का ही प्रत्यक्ष परिणाम संताल परगना जिला का निर्माण है. संताल समुदायों के विद्रोह से भयभीत ब्रिटिश शासक ने संताल रीति-रिवाज, परंपराओं के तहत शासित एक क्षेत्र ही अलग कर दिया. इन क्षेत्रों में ब्रिटिश प्रशासन के कायदे-कानून लागू नहीं थे. बल्कि संतालों को अपने परंपरागत स्वशासन व्यवस्था के तहत मांझी बाईसी, परगना बाईसी एवं दिसाम बाईसी (लॉ बीर बाईसी) के तहत शासन चलाने के लिये स्वतंत्र छोड़ दिया.
संप को लुटेरों से बचाना है
गेड़िया 44 परगना के परगनैत धोनोलाल हांसदा ने कहा कि हमारे पूर्वज वीर सिदो-कान्हू, चांद-भैरव, फूलो-सानो, शाम परगना, गारभू मांझी की शहादत से बना संताल परगना को बाहरी लुटेरों से रक्षा करने के लिये हमेशा सजग रहना होगा.
मांझी हड़ाम सुनील कुमार हेंब्रम ने कहा कि अंगरेज शासकों ने संताल हूल से भयभीत होकर 10 नवंबर 1855 को मार्शल लॉ लगा दिया जो तीन जनवरी 1856 तक जारी रहा.
उन्होंने कहा कि 22 दिसंबर 1855 का दिन संताल समुदाय के लिये हमेशा याद रहेगा एवं 29 दिसंबर 1856 को लागू संताल लॉ को किसी भी कीमत पर टूटने नहीं दिया जायेगा. युवा सरना प्रचारक निर्मल मरांडी ने कहा कि 22 दिसंबर का दिन संताल समुदायों का ऐतिहासिक दिन है. उसी दिन संताल परगना अंगरेजों के चंगुल से स्वतंत्र हुआ. संताल हूल को न तो इतिहासकारों ने और न ही साहित्यकारों ने सम्मान दिया.
मौके पर मांझी हड़ाम वैधनाथ हेंब्रम, चाकलादार जगेश्वर मुमरू, जिला सरना धोरोम सचिव सरयू सोरेन, श्रीजल हेंब्रम, जमादार सोरेन, प्रेमरंजन सोरेन, दिबुराम हेंब्रम, रंजीत हेंब्रम, महादेव हेंब्रम, कुमार हेंब्रम, सहदेव मुमरू, शिवठाकुर उपस्थित थे.

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