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झापीपा के महाधिवेशन में प्रो डॉ वीर भारत तलवार ने कहा, झारखंडी विरोधी ताकतों को पस्त करें

जमशेदपुर: झारखंडी जन को उनका हक व अधिकार दिलाने के लिए वैकल्पिक राजनीतिक पार्टी की आवश्यकता है, जो झारखंड के सामाजिक सांस्कृतिक एवं पारंपरिक व्यवस्था को बचा सके़ झारखंडियों की अस्तित्व बचाने के लिए केवल संघर्ष करना ही काफी नहीं है़ विरोधी ताकतों को मुंहतोड़ जवाब देने की जरूरत है़. उक्त बातें जेएनयू नयी दिल्ली […]

जमशेदपुर: झारखंडी जन को उनका हक व अधिकार दिलाने के लिए वैकल्पिक राजनीतिक पार्टी की आवश्यकता है, जो झारखंड के सामाजिक सांस्कृतिक एवं पारंपरिक व्यवस्था को बचा सके़ झारखंडियों की अस्तित्व बचाने के लिए केवल संघर्ष करना ही काफी नहीं है़ विरोधी ताकतों को मुंहतोड़ जवाब देने की जरूरत है़.

उक्त बातें जेएनयू नयी दिल्ली के प्रोफेसर डॉ वीर भारत तलवार ने कही़ वे सीतारामडेरा स्थित आदिवासी एसोसिएशन में आयोजित झारखंड पीपुल्स पार्टी के 7वें महाधिवेशन में बतौर मुख्य अतिथि मौजूद थे़ उन्होंने कृषि को प्रोत्साहित करने की वकालत करते हुए कहा कि छोटानागपुर एवं संताल परगना काश्तकारी अधिनियम पर संशोधन करने की बात करना यहां के झारखंडियों के कत्ल के समान है़ भाजपा राज्य से लेकर केंद्र तक झूठ एवं पूंजीपतियों का शासन स्थापित करना चाहती है़.

झारखंड समन्वय समिति संयोजक मंडली का हुआ गठन
झारखंड की जनता को उनका हक व अधिकार दिलाने के लिए झारखंड समन्चय समिति का एक संयोजक मंडली भी गठन किया़ इसमें अखिल भारतीय झारखंड पार्टी से सीआर माझी, आदिवासी मूलवासी अधिकार मंच से राजू महतो, झापीपा से सूर्यसिंह बेसरा, झारखंड आंदोलनकारी मोर्चा संथाल परगना से अशोक कुमार मुर्मू शामिल है़ इसमें समान विचारधारा वाले दलों को शामिल किया जायेगा़.
केंद्रीय कमेटी का पुनर्गठन
अध्यक्ष- सूर्य सिंह बेसरा
कार्यकारी अध्यक्ष- राजू महतो
प्रधान महासचिव- दिल बहादुर
महासचिव- प्रेमचंद किस्कू
कोषाध्यक्ष- राकेश श्रीवास्तव
उपाध्यक्ष- पंकज मंडल, परवीण मेहता, बाबूराम मुर्मू, अंथन लकडा, गौर चंद्र हेंब्रम
सचिव- वासुदेव टूडू, लालमनी कुमार सिन्हा, मुक्ता महतो, उमानाथ कोल, राजेश कुमार महतो
केंद्रीय प्रवक्ता- सुबोध कुमार दांगी
16 साल बाद भी नहीं बदली तसवीर : बेसरा
झापीपा के केंद्रीय अध्यक्ष सूर्य सिंह बेसरा ने कहा कि झारखंड अलग राज्य का गठन आदिवासी मूलवासी समुदाय को देखकर किया गया है, लेकिन राज्य गठन के 16 साल बाद भी झारखंड की जमीनी हकीकत में कोई बदलाव नहीं आया है़

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