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सस्ते कंप्यूटर बच्चों को बना रहे नेत्र रोगी

जमशेदपुर: घंटों कंप्यूटर या मोबाइल पर गेम खेलने की लत से बच्चों की आंखों का पानी सूख रहा है. पलक कम झपकाने से पुतली की नमी खत्म हो जाती है. इसका दुष्प्रभाव कॉर्निया पर भी पड़ रहा है, साथ ही आंखों की पुतलियों की मांसपेशियां कमजोर हो रही हैं. इस मामले में सस्ते लोकल कंप्यूटर […]

जमशेदपुर: घंटों कंप्यूटर या मोबाइल पर गेम खेलने की लत से बच्चों की आंखों का पानी सूख रहा है. पलक कम झपकाने से पुतली की नमी खत्म हो जाती है. इसका दुष्प्रभाव कॉर्निया पर भी पड़ रहा है, साथ ही आंखों की पुतलियों की मांसपेशियां कमजोर हो रही हैं. इस मामले में सस्ते लोकल कंप्यूटर और मोबाइल अधिक घातक साबित हो रहे हैं. इनसे हीट अधिक निकलती है. स्क्र ीन से निकली खतरनाक तरंगों के कारण सिर दर्द, मिचली की शिकायत होती है.

चिकित्सकों का कहना है ब्रांडेड मोबाइल और कंप्यूटर स्क्रीन पर कंपनियां विद्युतीय तरंगे नियंत्रित करने के लिए ब्लॉकर्स लगाती हैं. जबकि लोकल उत्पादों में ब्लॉकर्स नहीं होते. इससे ये अधिक खतरनाक होते हैं. नेत्र चिकित्सक डॉ जीबी सिंह ने कहा कि हाल ही में कई स्थानों पर लगाये गये शिविरों में ताजा ओपीडी सर्वेक्षण में जो तथ्य सामने आये हैं उसमें बताया गया कि जिन बच्चों को ड्राई आइ की समस्या थी उनकी आंखों की रोशनी कम हो रही थी.

वीडियो गेम के आदी वाले बच्चे पलकें कम झपकाते हैं, जिसकी वजह से पुतली की नमी उड़ जाती है. इससे पुतली पर खराशें पड़ जाती हैं, जिससे आंखों की पुतलियां गल सकती है. डॉ सिंह का कहना है कि ड्राइ आई की जो समस्या 40 साल की उम्र में होती थी, वह 14 साल के बच्चों को भी हो रही है. दिक्कत यह है कि कम उम्र के मरीज देर से आते हैं और वे अपनी समस्या घरवालों को सही ढंग से बता नहीं पाते हैं.

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