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अफसोसजनक: दलमा से कई प्रजातियां हुईं विलुप्त

जमशेदपुर: एक ओर दलमा से वन्य प्राणी लगातार विलुप्त हो रहे हैं, वहीं हर साल मनाये जाने वाले पारंपरिक सेंदरा पर्व से भी उनके अस्तित्व पर खतरा मंडराता रहता है. आंकड़े बताते हैं कि दलमा वन्य प्राणी आश्रयणी से तेंदुआ समेत कई जानवर और पक्षी लुप्त हो चुके हैं या होने की कगार पर हैं. […]

जमशेदपुर: एक ओर दलमा से वन्य प्राणी लगातार विलुप्त हो रहे हैं, वहीं हर साल मनाये जाने वाले पारंपरिक सेंदरा पर्व से भी उनके अस्तित्व पर खतरा मंडराता रहता है. आंकड़े बताते हैं कि दलमा वन्य प्राणी आश्रयणी से तेंदुआ समेत कई जानवर और पक्षी लुप्त हो चुके हैं या होने की कगार पर हैं. जबकि प्रजातियों को बचाने के लिए ठोस रणनीति सरकार के पास नहीं है. वन विभाग के अधिकारी भी श्रम की कमी से परेशान है. उनकी चिंता है कि कैसे पशु-पक्षियों की देखरेख की जाये.
तीन वनरक्षी के भरोसे 193 वर्ग किलोमीटर. जंगली जानवरों की रक्षा के लिए जरूरी है कि ग्राउंट लेवल पर परिस्थितियों को ठीक किया जाये. इसमें वनरक्षी ज्यादा कारगर होते है. लेकिन दलमा जैसे विशाल जंगल, जिसका दायरा 193 वर्ग किलोमीटर के करीब है, वहां तीन वनरक्षी की कार्यरत है. यह स्थित पूर्व में तैनात वनरक्षी के रिटायर होने और नयी बहाली नहीं होने से उत्पन्न हुई है.
तीन साल से नहीं हुई जानवरों की गणना
दलमा में करीब तीन साल से जानवरों की गणना नहीं हो पायी है. जानवरों, पशु व पक्षियों के प्रति वन विभाग की गंभीरता से अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि यहां अंतिम बार 2012 में जानवरों की गणना हुई थी. उसके बाद लगातार तीन साल से गणना नहीं हो रही है.
जानवरों को बचाने का हर संभव प्रयास : विभाग
जानवरों को बचाने के लिए हर संभव प्रयास किया गया है. कुछ संसाधनों का अभाव है, जिस कारण सारी स्थिति बेहतर नहीं हो पायी है. लेकिन फिर भी किसी तरह का शिकार या किसी तरह के अवैध काम को रोकने में वन विभाग पूरी तरह कारगर है.
आरपी सिंह, आरएफओ, दलमा

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