।। आनंद मिश्र ।।
जमशेदपुरः कोल्हान विश्वविद्यालय शुरू से ही यहां कॉलेजों में शैक्षणिक माहौल तैयार करने जुगत में है, लेकिन कॉलेजों की वस्तुस्थिति ऐसी है, जो अच्छी-अच्छी योजनाओं को फेल कर दे.
किसी दूर-दराज के कॉलेज को छोडि़ए, शहर में ही ऐसे कॉलेज हैं, जहां शिक्षक हैं तो छात्र नहीं और कहीं छात्रों की अच्छी-खासी संख्या होने के बावजूद कई विभागों में शिक्षक ही नहीं हैं.
यह परिदृश्य है गोलमुरी स्थित एबीएम कॉलेज और करनडीह स्थित एलबीएसएम कॉलेज का. एक तरफ विद्यार्थी न होने की वजह से शिक्षक कॉलेज आने की औपचारिकता पूरी कर रहे हैं, तो दूसरी तरफ आदिवासी बहुल ग्रामीण क्षेत्रों के विद्यार्थी कक्षा व प्रैक्टिकल बगैर ही परीक्षा में बैठने को विवश हैं.
17 वर्ष से हिंदी पढ़ा रहे हैं मैथिली के शिक्षक
हिंदी चूंकि तीनों स्ट्रीम के विद्यार्थियों के लिए अनिवार्य विषय है. इसलिए विद्यार्थियों की संख्या अधिक है. शिक्षकों की कमी की वजह से मैथिली के शिक्षकों को ही प्राचार्य के स्तर से हिंदी पढ़ाने के लिए अधिकृत किया गया है. कॉलेज में मैथिली के शिक्षक डॉ अशोक झा ने बताया कि वह पिछले 17 वर्ष से मैथिली के अलावा हिंदी की भी कक्षाएं ले रहे हैं.
एबीएम कॉलेज : दो-तीन वर्ष में एक भी नामांकन नहीं
एबीएम कॉलेज के मैथिली विभाग में एक शिक्षक डॉ एसएन मेहता हैं. लेकिन पिछले कई वर्षों से यहां मैथिली विभाग में किसी विद्यार्थी ने दाखिला ही नहीं लिया. अभी स्नातक पार्ट टू व थ्री की परीक्षा के लिए किसी भी विद्यार्थी ने मैथिली से फार्म नहीं भरा है. छात्र भी बताते हैं कि इस भाषा (विषय) के छात्र नहीं हैं. इस तरह कॉलेज में मैथिली विभाग नाममात्र का रह गया है. इसे बंद भी नहीं किया जा सकता. जानकार बताते हैं कि अविभाजित बिहार के समय मैथिली भाषा के शिक्षकों की नियुक्ति हुई थी. तब से यहां मैथिली विभाग है, लेकिन पढ़नेवालों की संख्या में लगातार कम होती गयी. यह संख्या अब नाममात्र की रह गयी है.