– दशमत सोरेन –
जमशेदपुर : एक साहित्यकार अपनी सृजन क्षमता से न सिर्फ अपनी भाषा के साहित्य को समृद्ध करता है, बल्कि दूसरी भाषाओं की अच्छी रचनाओं को अपनी भाषा में अनुवाद कर उसे नया आयाम देता है.
37 वर्षीय सुनील मुमरू ने महाकवि कालिदास की कालजयी संस्कृत नाटक ‘अभिज्ञान शाकुंतलम्’ का संताली (ओलचिकि) में अनुवाद कर संताली और संस्कृत दोनों भाषाओं के लिए अमूल्य योगदान दिया है. संताली में इसका नाम ‘होरोक् चिह्न-शकुन्तोला’ रखा गया है. सुनील हस्तीनापुर के राजा और कण्व ऋषि की पालिता कन्या शकुन्तला के प्रेम व सौंदर्य का चित्रण कर संताली में ऐसे पहले साहित्यकार बन गये हैं, जिन्होंने संस्कृत से संताली में अनुवाद किया है.